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उत्तराखंड हिमालय में चारधाम यात्रा के साथ शीत केदार दर्शन भी, जानें इन मंदिरों का माहात्म्य

केदारनाथ धाम से तो देश-दुनिया परिचित है लेकिन पंचकेदार समूह के मंदिरों को कम ही लोग जानते हैं और शीत केदार समूह के मंदिरों को जानने वाले तो शायद गिनती के होंगे। ये वो मंदिर हैं जहां शीतकाल में पंचकेदार विराजते हैं। आश्चर्य देखिए कि ये सभी मंदिर उसी कालखंड के हैं जब पंचकेदार समूह के मंदिरों का निर्माण हुआ होगा और इनका महात्म्य भी वही है।

By Jagran News Edited By: Shivam Yadav Updated: Fri, 24 May 2024 06:53 PM (IST)
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उत्तराखंड हिमालय में चारधाम यात्रा के साथ शीत केदार दर्शन भी।
दिनेश कुकरेती, देहरादून। केदारनाथ धाम से तो देश-दुनिया परिचित है, लेकिन पंचकेदार समूह के मंदिरों को कम ही लोग जानते हैं और शीत केदार समूह के मंदिरों को जानने वाले तो शायद गिनती के होंगे। ये वो मंदिर हैं, जहां शीतकाल में पंचकेदार विराजते हैं। 

आश्चर्य देखिए कि ये सभी मंदिर उसी कालखंड के हैं, जब पंचकेदार समूह के मंदिरों का निर्माण हुआ होगा और इनका माहात्म्य भी वही है। आप स्वास्थ्य संबंधी या अन्य कारणों से यदि पंच केदार समूह के मंदिरों (केदारनाथ, द्वितीय केदार मध्यमेश्वर, तृतीय केदार तुंगनाथ, चतुर्थ केदार रुद्रनाथ व पंचम केदार कल्पेश्वर) में दर्शन को नहीं पहुंच पाए तो निराश होने की जरूरत नहीं है। 

इन मंदिरों में आकर पंचकेदार दर्शन का पुण्य अर्जित कीजिए। ये मंदिर हैं, ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर, मक्कूमठ स्थित मार्कंडेय (मर्कटेश्वर) मंदिर और गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर। पंचम केदार कल्पेश्वर मंदिर के कपाट बारहों महीने खुले रहते हैं, इसलिए इन्हें कहीं प्रवास पर नहीं जाना पड़ता। शीत केदार समूह के सभी मंदिर मोटर मार्ग से जुड़े हैं। 

आइए! शीत केदार समूह के इन मंदिरों का माहात्म्य जानें-

ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ

शीत केदार समूह के मंदिरों में पहला स्थान है ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ का। रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 1,311 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर भगवान केदारनाथ ही नहीं, द्वितीय केदार भगवान मध्यमेश्वर का भी शीतकालीन पूजा स्थल है। यहां पांचों केदार पिंडी रूप में विराजमान हैं, इसलिए इस मंदिर की ख्याति पंचगद्दीस्थल के रूप में भी है। 

आप जब मर्जी हो ओंकारेश्वर धाम जा सकते हैं, क्योंकि यह मंदिर सालभर दर्शन के लिए खुला रहता है। ऊखीमठ नगर में प्राकृतिक सुंदरता सर्वत्र बिखरी हुई है। यहां की सुरम्य वादियां, ठीक सामने नजर आने वाली चौखंभा की हिमाच्छादित चोटियां और बांज-बुरांश के घने जंगल हर किसी का मन मोह लेते हैं। 

नगर के मध्य में ओंकारेश्वर मंदिर स्थापित है। यह देश में अकेला मंदिर है, जिसका निर्माण अतिप्राचीन धारत्तुर परकोटा शैली में हुआ है। ऊखीमठ के आसपास चोपता, दुगलबिट्टा, देवरियाताल जैसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल स्थित हैं। इसके अलावा त्रियुगीनारायण व कालीमठ जैसे प्रमुख तीर्थ स्थलों के दर्शनों को भी आसानी से पहुंचा जा सकता है।

मार्कंडेय मंदिर मक्कूमठ

रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 2100 मीटर की ऊंचाई पर मक्कूमठ गांव स्थित मार्कंडेय (मर्कटेश्वर) मंदिर में तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ शीतकाल में प्रवास करते हैं।  यह मंदिर भी कत्यूरी शैली में बना हुआ है, जिसे गुप्तोत्तरकालीन मंदिर स्थापत्य कहा जाता है। रुद्रप्रयाग शहर से 44 किमी दूर ऊखीमठ तहसील का मक्कूमठ गांव चारों ओर से देवदार, बांज, बुरांश व थुनेर के घने जंगल से घिरा है। गांव का इतिहास प्रथम शताब्दी पूर्व से माना जाता है। 

प्राचीन आदिवासी जातियां ग्रीष्मकाल में अपने पशुओं के साथ बुग्यालों की प्राकृतिक सुषमा में और शीतकाल के दौरान मक्कू में रहकर जीवनयापन करती थीं। कालांतर में यहां आदि शंकराचार्य ने तुंगनाथ मठ की स्थापना की। वर्ष 1803 के भूकंप में प्राचीन सभ्यता का यह केंद्र तहस-नहस हो गया। तब गांव की परिधि चंद्रशिला शिखर तक फैली थी, जो समुद्रतल से 3,780 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।  इस क्षेत्र में भगवान तुंगनाथ के दो मंदिर हैं, एक मक्कूमठ में और दूसरा समुद्रतल से 3250 मी की ऊंचाई पर। ऊखीमठ के रास्ते मक्कू पहुंचने के लिए 32 किमी और भीरी के रास्ते 16 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। यह मंदिर वर्षभर दर्शन को खुला रहता है।

गोपीनाथ मंदिर गोपेश्वर

चमोली जिले में समुद्रतल से 4,290 फीट की ऊंचाई पर गोपेश्वर नगर स्थित गोपीनाथ मंदिर में शीतकाल के छह माह चतुर्थ केदार बाबा रुद्रनाथ प्रवास करते हैं। 71 फीट ऊंचा यह मंदिर एक वर्गाकार गर्भगृह पर नागर शैली के शिखर के साथ प्रांगण के केंद्र में स्थित है। जबकि, मंडप व अंतराल बाद में समान रेखा में निर्मित किए गए। मंदिर परिसर से ही दो कोठा भवन और परंपरागत तिबारी भी सटे हुए हैं, जो तत्कालीन पहाड़ी कला का बेजोड़ नमूना हैं। इस मंदिर में मौजूद अभिलेखों से कत्यूरी व नेपाली शासकों का इतिहास भी जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि गोपीनाथ मंदिर का निर्माण नवीं से 11वीं सदी के मध्य कत्यूरी राजाओं ने कराया था। मंदिर के प्रागंण में पत्थर के एक चबूतरे के आधार स्तंभ पर स्थापित पांच मीटर ऊंचे लौह त्रिशूल के मध्य फलक पर नागवंश के प्रतापी शासक गणपति नाग का दक्षिणी ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण अभिलेख है। इसमें गणपित नाग के अलावा तीन अन्य नाग राजाओं स्कंद नाग, विभु नाग व अंशु नाग का भी उल्लेख है। त्रिशूल के निचले फलक पर नेपाल के मल्ल राजा अशोक चल्ल का 1191 ईस्वी का लेख भी उत्कीर्ण है।

खाने-ठहरने के बेहतर इंतजाम

ऊखीमठ, मक्कूमठ व गोपेश्वर में खाने-ठहरने को पर्याप्त संख्या में होम स्टे, होटल व लाज उपलब्ध हैं। यहां वर्षभर किसी भी मौसम में जा सकते हैं। तीर्थयात्री व पर्यटक यहां पारंपरिक पहाड़ी व्यंजनों का जायका भी ले सकते हैं। इनमें मंडुवा व चौलाई की रोटी, आलू के गुटखे, राजमा, उड़द व तोर की दाल, हरी चटनी, चौलाई के लड्डू प्रमुख हैं।

ऐसे पहुंचे

ऋषिकेश से सार्वजनिक व निजी वाहन से ऊखीमठ, मक्कूमठ व गोपेश्वर पहुंचा जा सकता है। ऊखीमठ से मक्कूमठ व गोपेश्वर के लिए सार्वजनिक वाहन आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।

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