उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी में वोट बैंक की खातिर उगाई मलिन बस्तियां
दून शहर को पृथक राज्य उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी बने 18 साल बीत गए। इस दरमियां जिम्मेदारों ने राजधानी की बदरंग तस्वीर बदलने का राग अलापने के सिवा कुछ नहीं किया।
By BhanuEdited By: Updated: Sun, 31 Mar 2019 08:37 PM (IST)
देहरादून, अंकुर अग्रवाल। दून शहर को पृथक राज्य उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी बने 18 साल बीत गए। इस दरमियां जिम्मेदारों ने राजधानी की बदरंग तस्वीर बदलने का राग अलापने के सिवा कुछ नहीं किया। सरकार भाजपा की रही या कांग्रेस, दोनों ने यही दोहराया। पहले मेट्रो सिटी बनाने के जुमले को हवा दी गई तो गुजरे चार साल से स्मार्ट सिटी का सिगूफा छोड़ा हुआ है पर वोटबैंक की खातिर नेताओं ने जो मलिन बस्तियां शहर में उगाई गई हैं, उसका जवाब कौन देगा।
दून शहर में चौतरफा मलिन बस्तियां पसरी हुई हैं और दोनों ही दलों के नेता वोटबैंक की खातिर इन पर रोटियां सेंकने का काम करते आए हैं। वैध कालोनी में भले पेयजल या बिजली की लाइन न पहुंचे मगर इन अवैध बस्तियों में तमाम सुविधाएं इन्हीं नेताओं ने पहुंचाई है। सरकारी मशीनरी ने अतिक्रमण व अवैध बसावत हटाने की कोशिश कभी की तो राजनेता ही रोड़ा बनकर खड़े रहे।बुजुर्गों-सेवानिवृत्ति के बाद आमजन का पसंदीदा शहर कहे जाने वाले दून की सूरत अब बदरंग हो चुकी है। यहां अब न पहले जैसा सुकून रहा, न ताजगी। लीची के बाग व बासमती के खेत भी अब दून की पहचान नहीं रहे। उनकी जगह कंक्रीट के घने जंगल खड़े हो गए। हर तरफ गंदगी बिखरी है और दुर्गंध जीना दुश्वार कर रही है।
कहीं सीवर लाइन के लिए सड़कें खुदी पड़ी हैं तो कहीं पानी की लाइनें बिछाने को नई सड़कों की बलि चढ़ा दी गई। रही-सही कसर नदी व नालों के किनारे उगाई अवैध मलिन बस्तियों ने पूरी कर दी। दरअसल, उगाई बस्तियां ही चुनाव में नेताजी को संजीवनी प्रदान करती हैं।दून शहर का यह हाल तब है, जब यहां सरकार के साथ नीति-नियंताओं की फौज बैठती है। मगर, दून की बदरंग होती सूरत से किसी को भी कोई सरोकार नहीं। राज्य की पिछली कांग्रेस सरकार ने मलिन बस्तियों को नियमित करने का फैसला कर बस्तियों के चिह्नीकरण-नियमितीकरण के लिए कमेटी भी गठित कर दी थी और सार्वजनिक कार्यक्रम में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एलान भी कर डाला कि कोई भी मलिन बस्ती नहीं टूटेगी न ही तोड़ने दी जाएगी।
इसके बाद 2017 में चुनकर आई भाजपा सरकार भी मलिन बस्तियों को बचाने का विधेयक ले आई। सवाल उठता है कि जब खुद सरकार अतिक्रमणकारियों के संग खड़ी रहेगी तो विकास कैसे होगा। मलिन बस्तियों में रहने वालों के उद्धार के लिए केंद्र सरकार बीएसयूपी फ्लैट की एक योजना लाई थी, लेकिन इसमें भी नेताओं ने रोड़ा अटका दिया। इसी तरह से नेताओं ने ब्रह्मावाला खाला में हुए अतिक्रमण को तोड़ने से रोक दिया। अवैध संडे मार्केट पर भी नेताओं ने हाथ रखा हुआ है। मलिन बस्ती को सरकार ने श्रेणीवार बांट दिया है और इनके नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
सियासत का शिकार दून शहर
समय गवाह है कि दून हमेशा राजनीति का शिकार बना। सरकार चाहे भाजपा की रही हो या कांग्रेस की, वोट बैंक के लिए शहर में अवैध और मलिन बस्तियों की बसावत को बढ़ावा दिया जाता रहा। शहर के लिए सौंदर्यीकरण की योजनाएं बनी भी तो वह परवान नहीं चढ़ पाई। सरकार जिस भी पार्टी की रही, नेताओं ने शहर के विकास के बजाय सियासी फायदे को चुना। यही कारण है कि खामियाजा दूनवासी भुगत रहे हैं। 123 मलिन बस्तियां हुई थी चिह्नित
राज्य बनने से पहले नगर पालिका रहते हुए दून में 75 मलिन बस्तियां चिह्नित की गई थीं। राज्य गठन के बाद दून नगर निगम के दायरे में आ गया। वर्ष 2002 में मलिन बस्तियों की संख्या 102 चिह्नित हुई और वर्ष 2008-09 में हुए सर्वे में यह आंकड़ा 123 तक जा पहुंचा। तब से बस्तियों का चिह्नीकरण नहीं हुआ, लेकिन अगर गुजरे आठ साल का फौरी तौर पर आंकलन करें तो यह आंकड़ा 150 तक पहुंच चुका है। हालांकि, सरकारी आंकड़ों में बस्तियों की संख्या वर्तमान में 128 बताई जा रही है।
यहां हैं मलिन बस्तियांरेसकोर्स रोड, चंदर रोड, नेमी रोड, प्रीतम रोड, मोहिनी रोड, पार्क रोड, इंदर रोड, परसोली वाला, बद्रीनाथ कॉलोनी, रिस्पना नदी, पथरियापीर, अधोईवाला, बृजलोक कॉलोनी, आर्यनगर, मद्रासी कॉलोनी, जवाहर कॉलोनी, श्रीदेव सुमननगर, संजय कॉलोनी, ब्रह्मपुरी, लक्खीबाग, नई बस्ती चुक्खुवाला, नालापानी रोड, काठबंगला, घास मंडी, भगत सिंह कॉलोनी, आर्यनगर बस्ती, राजीवनगर, दीपनगर, बॉडीगार्ड, ब्राह्मणवाला व ब्रह्मावाला खाला, राजपुर सोनिया बस्ती।
यह है राजधानी का सूरते-हाल
-कंक्रीट का जंगल बना हरा-भरा दून-50 फीसद घट गई हरियाली, एक दशक में आबादी घनत्व 40 फीसद बढ़ा-चारों ओर फैली हैं अवैध और मलिन बस्तियां-सड़कों और फुटपाथ पर अतिक्रमण-नहरों का शहर अब बन चुका है नहर विहीन-ड्रेनेज सिस्टम की योजनाएं वर्षों से नहीं चढ़ी परवान-हर जगह लगे हैं कूड़े और गंदगी के ढेर, ट्रेंचिंग ग्राउंड योजना अधर में-जेएनएनयूआरएम के तहत सीवर लाइन व पेयजल लाइनें बिछाने का काम अधूरा-महायोजना तो बनी, मगर मूर्त रूप देने का काम अब तक अधूरा-वाहनों के बढ़ते दबाव के बावजूद नहीं हो रही सड़कें चौड़ी, हर वक्त जामलुट गई हजारों हेक्टेयर जमीनशहर में सौंदर्यीकरण व विकास की योजनाओं को पूरा करने के लिए दूसरों के आगे नगर निगम हाथ फैलाता रहता है, पर अपनी खुद की करोड़ों की संपत्ति वह फ्री में लुटा रहा है। शहर में बिखरी निगम की संपत्तियां करोड़ों की हैं, मगर निगम इनकी देखरेख करने की जहमत नहीं उठा रहा है। यही वजह है कि बीते कुछ सालों में निगम की करीब 7800 हेक्टेयर भूमि में से अब सिर्फ 240 हेक्टेयर शेष बची है। माफिया निगम की जमीनों की लूट-खसोट में लगे हुए हैं, लेकिन न सरकार की नींद टूट रही है और न ही निगम की।नगर निगम के पास बेशुमार संपत्ति तो है, लेकिन अफसरों की कमजोर इच्छाशक्ति, राजनीति दखलंदाजी और अन्य कारणों के चलते करोड़ों रुपये की संपत्ति अवैध कब्जे के दरिया में समा चुकी है। कहीं माफिया ने दबंगई से जमीनें कब्जा लीं तो कहीं नेताओं ने वोट बैंक की राजनीति की खातिर जिसे चाहे उसे इन जमीनों पर बसा डाला। छोटे-मोटे भूमाफिया के साथ ही अब बिल्डरों ने भी निगम की संपत्तियों पर कब्जा शुरू कर दिया है। यह भी पढ़ें: हरियाली से कम की जाएगी शीशमबाड़ा की दुर्गंध, पढ़िए पूरी खबरयह भी पढ़ें: चुनावी आहट में बीरपुर पुल को भूल गया लोनिवि, पढ़िए पूरी खबरयह भी पढ़ें: दून शहर में लग रहे जाम पर शासन सख्त, हरकत में आई पुलिस
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