हिम तेंदुओं की गिनती के लिए डब्ल्यूआइआइ की मदद
उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिम तेंदुओं की गिनती के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) की मदद ली जाएगी।
देहरादून, [केदार दत्त]: उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिम तेंदुओं की संख्या कितनी है, इसका पता लगाने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) की मदद ली जाएगी। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के सहयोग से राज्य में चल रही 'सिक्योर हिमालय' परियोजना के तहत अब वन महकमा यह दायित्व संस्थान को सौंपने जा रहा है। वजह यह कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में उसका पहले से ही एक प्रोजेक्ट भी चल रहा है। ऐसे में उम्मीद बंधी है कि इस साल के आखिर तक यह आंकड़ा आ जाएगा कि प्रदेश में हिम तेंदुओं की वास्तविक संख्या है कितनी।
राज्य के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में वन विभाग की ओर से लगाए गए कैमरा ट्रैप में हिम तेंदुओं की तस्वीरें अक्सर कैद होने से वहां इनकी मौजूदगी के पुष्ट प्रमाण मिलते आए हैं। बावजूद इसके अभी तक यह रहस्य ही बना है कि आखिर प्रदेश में हिम तेंदुओं की संख्या है कितनी।
जाहिर है कि आंकड़े न मिलने के कारण इनके संरक्षण के साथ ही वासस्थल विकास को योजनाएं बनाने में दिक्कतें भी आ रही हैं। ऐसे में प्रदेश में गंगोत्री नेशनल पार्क से लेकर अस्कोट अभयारण्य में पिछले साल प्रारंभ हुई सिक्योर हिमालय परियोजना उम्मीद की नई किरण लेकर आई है।
सिक्योर हिमालय परियोजना का एक अहम बिंदु हिम तेंदुओं का संरक्षण भी है। राज्य में इस परियोजना के नोडल अधिकारी एवं अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डॉ.धनंजय मोहन के मुताबिक भारतीय वन्यजीव संस्थान पहले से ही हिम तेंदुओं पर कार्य कर रहा है। ऐसे में सिक्योर हिमालय परियोजना में उसे ही यह कार्य सौंपा जाएगा। इसमें वन विभाग पूरी मदद करेगा।
डॉ. धनंजय के अनुसार इस पहल के परवान चढऩे पर ये पता लग सकेगा कि राज्य में हिम तेंदुओं की संख्या कितनी है। कौन-कौन से क्षेत्र इनके लिहाज से महत्वपूर्ण हैं। सही डाटा बेस मिलने के बाद उच्च हिमालयी क्षेत्र में इनके संरक्षण के साथ ही वासस्थल के लिए प्रभावी उपाय किए जा सकेंगे।
पेट्रोलिंग को खरीदेंगे उपकरण
डॉ. धनंजय ने बताया कि हिम तेंदुओं के साथ ही दूसरे वन्यजीवों की सुरक्षा के मद्देनजर सिक्योर हिमालय परियोजना में कैमरा ट्रैप, जीपीएस समेत अन्य उपकरण भी खरीदे जाएंगे। इसके साथ ही पेट्रोलिंग को वन कर्मियों के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्र के हिसाब से पोशाकें भी खरीदी जाएंगी।
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