पहाड़ में नहीं टिक रही मिट्टी, सालाना हो रहा इतने टन का क्षरण
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार मिट्टी का क्षरण हो रहा है। ये औसत से बेहद अधिक है। ये खुलासा एक ताजा सर्वेक्षण में हुआ है।
By Edited By: Updated: Mon, 23 Jul 2018 05:12 PM (IST)
देहरादून, [जेएनएन]: पहाड़ के पानी और जवानी के उत्तराखंड से निरंतर दूर होने के बाद अब मिट्टी के भी मुट्ठी से फिसलने की बेहद चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। प्रदेश का करीब 70 फीसद कृषि भूभाग मिट्टी के गंभीर क्षरण से जूझ रहा है और इस दायरे में समूचा पर्वतीय क्षेत्र शामिल है। यहां प्रति हेक्टेयर 15 टन से अधिक मिट्टी हर साल खेतों से दूर हो रही है, जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में मिट्टी के क्षरण की दर 2.5 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
मृदा क्षरण की यह तस्वीर भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान व राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो के अध्ययन में सामने आई। भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. गोपाल कुमार के अनुसार करीब 32 फीसद पर्वतीय क्षेत्र ऐसा भी है, जहां मृदा क्षरण की दर 80 टन तक भी है। उत्तराखंड के सामान्य ढाल वाले खेतों में मृदा क्षरण की दर प्रति हेक्टेयर 12.5 टन से अधिक नहीं होनी चाहिए, इस लिहाज से 15 टन की दर उतनी चिंताजनक नहीं है। हालांकि प्रदेश में कुल मिट्टी के बह जाने का आकलन फसल उत्पादन से किया जाए तो सालाना 13 से अधिक मिलियन टन उपज कम हो रही है। वर्ष 2008-09 के न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से कम कृषि उपज का यह नुकसान लगभग ढाई अरब रुपये बैठता है।
सुरक्षा उपाय में लग जाते हैं 10 साल डॉ. गोपाल कुमार ने बताया कि मिट्टी के क्षरण को लेकर सबसे जटिल बात यह कि जब भी मिट्टी की सुरक्षा के उपाय किए जाएं तो कम से कम 10 साल में उसका असर नजर आता है।
मृदा क्षरण की तस्वीर-32.72 फीसद क्षेत्र में प्रति वर्ष 40 से 80 टन तक मिट्टी का कटाव हो रहा है।
-8.84 फीसद क्षेत्र में यह दर 20 से 40 टन है। -6.71 फीसद क्षेत्र में 15 से 20 टन मिट्टी प्रति हेक्टेयर की दर से फिसल रही है।
इन जिलों में सर्वाधिक क्षरण देहरादून, उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली व बागेश्वर में 17.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल अत्यंत गंभीर रूप से ग्रसित है। यह राज्य के कुल क्षेत्रफल का 32 फीसद से अधिक है।
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