सर्वे तक सिमटा उत्तराखंड की झीलों व बांधों में सोलर प्लांट
प्रदेश की झीलों व बांधों पर छोटे-छोटे सोलर प्लांट बनाकर ऊर्जा उत्पादन करने और प्रदेश में ऊर्जा के नए स्रोत बनाने को प्रदेश की झीलों में फ्लोटिंग सोलर प्लांट लगाने की योजना बनाई गई। सबसे पहले टिहरी झील में इसे लगाने का निर्णय लिया गया।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 19 Mar 2021 03:36 PM (IST)
विकास गुसाईं, देहरादून। प्रदेश की झीलों व बांधों पर छोटे-छोटे सोलर प्लांट बनाकर ऊर्जा उत्पादन करने और प्रदेश में ऊर्जा के नए स्रोत बनाने को प्रदेश की झीलों में फ्लोटिंग सोलर प्लांट लगाने की योजना बनाई गई। सबसे पहले टिहरी झील में इसे लगाने का निर्णय लिया गया। कहा गया कि प्लांट टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड (टीएचडीसी) से अलग होगा। टिहरी में फ्लोटिंग प्लांट को लगाने से पहले इसकी क्षमता निर्धारण का निर्णय लिया गया। इसके लिए बाकायदा एक सर्वे कर रिपोर्ट भी तलब की गई। यह सर्वे कहां पर होगा, इसके लिए उरेडा, मत्स्य विभाग, पर्यटन, नागरिक उड्डयन व टीएचडीसी के प्रतिनिधियों को समाहित करते हुए एक समिति बनाने की बात हुई। सर्वे के उपरांत इस परियोजना के निर्माण के लिए कार्यदायी संस्था के चयन प्रक्रिया की भी बात हुई। मुख्य सचिव की बैठक में इसका पूरा खाका खींचा गया। बावजूद इसके इस पर अभी तक कोई भी काम नहीं हो पाया है।
ई-गवर्नेंस की अभी पूरी नहीं हुई तैयारी प्रदेश में कोरोना काल के बाद ई-गवर्नेंस की दिशा में तेजी से काम हो रहे हैं। विभाग में हर काम आनलाइन करने की तैयारी चल रही हैं। अब स्थिति यह है कि सरकारी दबाव में नई योजना पर तो काम हो रहे हैं लेकिन पुराने आदेशों को भुला दिया गया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण विभागों की वेबसाइट का सालों से अपडेट न होना है। सरकार की मुख्य वेबसाइट के हाल भी इनसे जुदा नहीं है। यह स्थिति तब है जब शासन द्वारा समय-समय पर सभी विभागों से जारी होने वाले शासनादेशों की एक प्रति सरकारी वेबसाइट पर पर भी अपलोड करने के निर्देश दिए जाते रहे हैं। मकसद यह कि आमजन सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों की जानकारी रख सके। पहले यह काम एनआइसी करता था, बाद में उसने विभागों से ही खुद शासनादेश वेबसाइट पर डालने को कहा। विभागों पर जिम्मा आया तो उन्होंने इस ओर गौर ही नहीं किया।
बिना बिजली स्कूलों में कैसी आधुनिक शिक्षाऊर्जा प्रदेश बनने की हसरत पाल रहे उत्तराखंड में विद्या के सैकड़ों मंदिरों में अभी तक अंधेरा पसरा हुआ है। इसका उदाहरण प्रदेश के पर्वतीय व ग्रामीण क्षेत्रों में दो हजार से अधिक ऐसे स्कूल हैं जहां आज तक बिजली का कनेक्शन नहीं लग पाया है। बिजली का कनेक्शन न होने के कारण इन स्कूलों के छात्र कंप्यूटर शिक्षा व विज्ञान सीखने के लिए बुनियादी प्रयोग से भी वंचित चल रहे हैं। इन स्कूलों में बिजली पहुंचाने के लिए तमाम जतन किए गए पर अभी तक प्रयास धरातल पर नहीं उतर पाए। इसका मुख्य कारण यहां की भौगोलिक स्थिति बताई गई। पर्वतीय क्षेत्रों में स्कूलों तक कनेक्शन पहुंचाने में विभाग कई परेशानियां गिना रहा है। इसे देखते हुए यहां सोलर ऊर्जा पैनल लगाने का निर्णय लिया गया। स्कूल बंद होने पर बंदरों द्वारा इसे तोडऩे के खतरे गिनाए गए। स्थिति यह है कि समस्या गिनाने वाला विभाग इनका हल नहीं खोज पाया है।
सीमांत क्षेत्रों में संचार सेवाएं की चुनौतीप्रदेश में जहां मोबाइल कंपनियां अब फोर जी से फाइव जी की ओर कदम बढ़ा रही हैं वहीं सीमांत क्षेत्रों में संचार सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हैं। स्थिति यह है कि सामरिक दृष्टि से बेहद अहम इन गांवों में मोबाइल टावर लगाने में सरकार के पसीने छूट रहे हैं। इससे यहां इंटरनेट कनेक्टिविटी तो दूर, मोबाइल फोन पर बात करने तक के लिए ही पर्याप्त सिग्नल नहीं आते। इस कारण स्थिति यह है कि नेपाल सीमा से लगे क्षेत्रों में उत्तराखंड के लोग बेहतर संचार सेवाओं के लिए नेपाल की मोबाइल कंपनियों के सिम का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह कदम देश की सुरक्षा के लिए भी घातक साबित हो सकता है। यह बात जनप्रतिनिधियों द्वारा विधानसभा के भीतर भी पुरजोर तरीके से उठाई जा चुकी है। इसके लिए प्रदेश सरकार हमेशा से ही केंद्र की योजना के जरिये सुधार लाने की बात कहती है लेकिन इसमें बहुत अधिक काम नहीं हुआ है।
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