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उपभोक्ता के टैरिफ की तरह बढ़ाएं स्टाफ का मासिक चार्ज, पढ़िए पूरी खबर

ऊर्जा निगम में अधिकारी-कर्मी पेंशनर्स को दी जाने वाली बिजली की रियायती दरों को संशोधित करने के लिए उप्र फार्मूला को कर्मचारी संगठनों ने सिरे से खारिज कर दिया है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 19 Nov 2019 08:47 PM (IST)
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उपभोक्ता के टैरिफ की तरह बढ़ाएं स्टाफ का मासिक चार्ज, पढ़िए पूरी खबर
देहरादून, जेएनएन। ऊर्जा निगम में अधिकारी-कर्मी, पेंशनर्स को दी जाने वाली बिजली की रियायती दरों को संशोधित करने के लिए उप्र फार्मूला को कर्मचारी संगठनों ने सिरे से खारिज कर दिया है। सभी कर्मचारी संगठनों ने एक सुर में बीते 10 सालों में उपभोक्ताओं के बढ़ाए हुए टैरिफ के अनुसार शुल्क बढ़ाने की मांग की है।

ऊर्जा निगम में 2009 में अधिकारी- कर्मी, पेंशनर्स के लिए शुल्क संशोधित किया गया था। तब से करीब 10 साल बीतने के बाद रेट नहीं बढ़ा। इधर यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड प्रबंधन की नींद टूटी। अब प्रबंधन उप्र में फरवरी 2018 में लागू किए फार्मूले के आधार पर उत्तराखंड में भी रियायती दरें संशोधित करने की तैयारी में है। मगर कर्मचारी संगठनों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया है। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि उत्तराखंड में उप्र फार्मूला किसी भी दशा में लागू नहीं होगा। उनका कहना है कि 2009 से अब तक विद्युत नियामक आयोग ने जिस दर से आम विद्युत उपभोक्ता के मासिक टैरिफ में बढ़ोत्तरी की है, इसी आधार पर ऊर्जा निगम के अधिकारी-कर्मी, पेंशनर्स से वसूले जा रहे शुल्क में वृद्धि की जाए। कर्मचारी संगठनों ने चेतावनी दी कि यदि उप्र फार्मूले को लागू किया गया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा।

उप्र फार्मूले को खारिज करने की ये वजह

- उप्र थर्मल बिजली उपयोग करता है जबकि उत्तराखंड में हाइड्रो बिजली उपयोगी होती है जो थर्मल के मुकाबले सस्ती होती है।

- उप्र में 9,14,19 का एसीपी है जबकि यहां 10,20,30 हो गया है। जब उप्र का एसीपी लागू नहीं हो तो फार्मूला भी स्वीकार्य नहीं होगा।

- उप्र से उत्तराखंड में आने के समय तय हुआ था कि शर्तों का उल्लंघन नहीं होगा, यह सेवा शर्त का भी उल्लंघन है।

जीएन कोठियाल (केंद्रीय अध्यक्ष, पावर जूनियर इंजीनियर्स एसोसिएशन, देहरादून) का कहना है कि हाइड्रो से बनने वाली बिजली थर्मल से सस्ती होती है इसलिए उप्र का फार्मूला यहां लागू नहीं किया जा सकता है। प्रबंधन को इस पर पुनर्विचार की जरूरत है।

युद्धवीर सिंह तोमर (प्रांतीय अध्यक्ष पावर इंजीनियर्स एसोसिएशन, देहरादून) का कहना है कि विद्युत नियामक आयोग ने 2009 से अभी तक जिस दर से उपभोक्ताओं का टैरिफ बढ़ाया है, उसी दर से स्टाफ के लिए भी शुल्क बढ़ाना चाहिए। उप्र फार्मूला यहां मान्य नहीं होगा।

दीपक बेनीवाल (कार्यकारी अध्यक्ष, ऊर्जा कामगार संगठन, देहरादून) का कहना है कि उप्र का एसीपी, पे बैंड जब यहां लागू नहीं हो सकता है तब कर्मचारियों से शुल्क वसूलने का फार्मूला कैसे लागू होगा। उपभोक्ताओं के टैरिफ के अनुसार कर्मियों का टैरिफ बढ़ाएं। 

डीसी गुरुरानी (केंद्रीय अध्यक्ष, ऊर्जा ऑफिसर्स सुपरवाइजर्स स्टाफ एसोसिएशन) का कहना है कि उप्र और यहां की स्थिति अलग है। वहां थर्मल और यहां हाइड्रो बिजली है दोनों के दामों में भारी अंतर है। ऐसे में उप्र का फार्मूला यहां लागू नहीं हो सकता है। प्रबंधन ने मनमानी की तो आंदोलन की रणनीति बनाई जाएगी।

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 क्या है उप्र फार्मूला

उप्र में सात फरवरी 2018 को ऊर्जा निगम के अधिकारी-कर्मी, पेंशनर्स के लिए नया प्लान लागू किया गया। इसमें श्रेणी के अनुसार न्यूनतम फिक्स चार्ज और एनर्जी शुल्क वसूलने का प्रावधान है। इस तरह चतुर्थ श्रेणी को कुल 370 रुपये, तृतीय श्रेणी को कुल 450 रुपये, जेई एवं समान संवर्ग को कुल 740 रुपये, एई एवं समान संवर्ग को कुल 910 रुपये, ईई एवं समान संवर्ग को कुल 970 रुपये, डीजीएम एवं समान संवर्ग को कुल 1355 रुपये, जीएम एवं समान संवर्ग को कुल 1530 रुपये मासिक शुल्क देना होगा। वहीं एसी के लिए सभी संवर्ग को 650 रुपये अलग से देने होंगे।

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