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एंबुलेंस खरीद में मानकों को किया गया दरकिनार, कठघरे में स्वास्थ्य विभाग

एंबुलेंस खरीद में केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित मानक दरकिनार कर दिए गए। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग कठघरे में है। 61 नए वाहन स्वास्थ्य महानिदेशालय में खड़े धूल फांक रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 09 Aug 2018 12:15 PM (IST)
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एंबुलेंस खरीद में मानकों को किया गया दरकिनार, कठघरे में स्वास्थ्य विभाग
देहरादून, [जेएनएन]: प्रदेश में 108 एंबुलेंस की खरीद को लेकर स्वास्थ्य विभाग कठघरे में है। करीब पांच माह बाद भी 61 नए वाहन स्वास्थ्य महानिदेशालय में खड़े धूल फांक रहे हैं। अब इसे लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। एंबुलेंस खरीद में केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित मानक दरकिनार कर दिए गए। वाहनों का फैब्रिकेशन अभी हुआ नहीं पर पंजीकरण एंबुलेंस के तौर पर हो चुका है। उधर, नर्सेज एसोसिएशन के दो गुटों के बीच उपजा विवाद कम होता नहीं दिख रहा है। इस विवाद का साया अब पदोन्नति और तैनाती पर भी दिख रहा है।

दरअसल, सरकार को एक साल पूरा होने पर परेड मैदान में आयोजित कार्यक्रम में सीएम ने नई एंबुलेंस को फ्लैग ऑफ किया था। लेकिन यह वाहन अभी एंबुलेंस के नाम पर दिखावा भर हैं। क्योंकि इनमें तमाम उपकरण नहीं लगे हैं। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने एक अप्रैल से एम्बुलेंस कोड लागू करने के साथ ही ऑटोमोटिव इंडस्ट्री स्टैंडर्ड (एआइएस)-125 के मानक लागू किए हैं। जिसके तहत एम्बुलेंस निर्माण और उसके सुरक्षा उपायों के लिए अनिवार्य दिशा-निर्देश हैं।

जिनका न केवल निर्माता द्वारा पालन किया जाना है, बल्कि एम्बुलेंस के पंजीकरण में भी एआइएस-125 का पालन होना है। लेकिन इनकी भी अनदेखी की गई। बताया गया कि एंबुलेंस खरीद में चार निविदाएं आई थीं। जिनमें दो कंपनी ने निविदा में एआइएस-125 के अनुसार स्ट्रेचर कम ट्रॉली व अन्य उपकरण का उल्लेख ही नहीं किया। निविदा निरस्त हो जानी चाहिए थी, पर ऐसा हुआ नहीं। इतना ही नहीं वाहनों के पंजीकरण में भी खेल किया गया। 

किसी भी वाहन में फैब्रिकेशन कार्य नहीं हुआ है, लेकिन इनका पंजीकरण एंबुलेंस के तौर पर कराया गया है। यानी मामला सरकारी खरीद से जुड़ा होने के कारण परिवहन विभाग ने भी इस तरफ आंखें मूंद लीं। बिना उपकरण लगी गाड़ी को एंबुलेंस में पंजीकृत कर लिया। जबकि यह काम फैब्रिकेशन के बाद किया जाना चाहिए था। इधर, स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. टीसी पंत का कहना है कि नियमों की अनदेखी नहीं हुई है। जहां तक फैब्रिकेशन का प्रश्न है, इसके टेंडर हो चुके हैं। यह काम भी कुछ समय में हो जाएगा। 

क्या है एंबुलेंस कोड

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने सड़कों पर एंबुलेंस की सुरक्षा और उनके स्तर में सुधार के लिए राष्ट्रीय एंबुलेंस संहिता मंजूर की है। इस संहिता में एंबुलेंस गाडिय़ों के निर्माण और कामकाज की जरूरतों के बारे में न्यूनतम मानक और दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए हैं। इनमें मरीजों की सुरक्षा, डिजाइन और संक्रमण नियंत्रण जैसे पहलुओं पर विशेष जोर दिया गया है। इसका मकसद यह है कि एंबुलेंस का डिजाइन एक जैसा और निर्धारित मानकों के अनुसार हो और इनमें मरीजों की देखभाल के लिए जरूरी स्टाफ  और उपकरण रहें।

विवाद का साया अब नर्सों की तैनाती पर

नर्सेज एसोसिएशन के दो गुटों के बीच उपजा विवाद कम होता नहीं दिख रहा है। इस विवाद का साया अब पदोन्नति और तैनाती पर भी दिख रहा है। तभी बीती एक अगस्त को जारी आदेश पर दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल प्रबंधन को कदम पीछे खींचने पड़े। एक गुट से जुड़ी नर्सों के भारी विरोध के बाद अस्पताल प्रबंधन ने पूर्व में जारी आदेश निरस्त कर दिया है। 

दरअसल, दूसरे गुट की अध्यक्ष कृष्णा रावत को दून मेडिकल कॉलेज के चिकित्सालय (पुरुष/महिला) में प्रभारी सहायक नर्सिंग अधीक्षक के पद पर तैनात करने के आदेश हुए थे। इसके लिए मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य ने भी संस्तुति की थी। इसकी भनक लगते ही दूसरे गुट की अध्यक्ष मीनाक्षी जखमोला व अन्य नर्सों ने विरोध शुरू कर दिया।

उनका कहना था कि मेडकल कॉलेज के टीचिंग अस्पताल में प्रभारी सहायक नर्सिंग अधीक्षक का पद ही नहीं है। बढ़ते विरोध के बीच चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा ने बुधवार को पूर्व में जारी आदेश को निरस्त कर दिया है। कृष्णा रावत को पूर्व की भांति जिला महिला चिकित्सालय में सहायक नर्सिंग अधीक्षक के पद पर तैनात रहने के निर्देश दिए हैं। 

इधर, कृष्णा रावत का कहना है कि सहायक नर्सिंग अधीक्षक का पद नहीं है, तो उन्हें नियुक्ति दी क्यों गई। उन्हें चार्ज प्राचार्य के आदेश व वरिष्ठता को देख दिया गया था। अस्पताल प्रशासन के इस कृत्य से उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची है।

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