उत्तराखंड में ई-वे बिल में हुआ 8500 करोड़ का फर्जीवाड़ा
राज्य कर विभाग ने 8500 करोड़ के फर्जीवाड़े का खुलासा कर सबको चौंका दिया है। 55 टीमों ने राज्य कर आयुक्त सौजन्या के निर्देशन पर छापेमारी की कार्रवाई की।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 16 Dec 2019 08:28 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। प्रदेश में कर महकमे (वस्तु एवं सेवा कर) ने बड़ी कार्रवाई करते हुए ई-वे बिल में करीब 8500 करोड़ का ऑनलाइन फर्जीवाड़ा पकड़ा है। 70 बोगस फर्मों ने बीते दो महीनों में फर्जी तरीके से राज्य के भीतर और बाहर करीब 8500 करोड़ के ई-वे बिल बनाए। इन 70 में से 34 फर्म दिल्ली से मशीनरी और कंपाउंड दाना की खरीद के बिल बना रही थीं। 26 फर्मों के माध्यम से चप्पल की बिक्री अन्य राज्यों में दिखाई गई।
उत्तराखंड में जीएसटी लागू होने के बाद माल एवं वस्तु कर के तहत ई-वे बिल में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े का यह अपनी तरह का अलहदा मामला है। इस फर्जीवाड़े की आंच अन्य राज्यों दिल्ली, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और राजस्थान तक पहुंच रही है। वित्त सचिव अमित नेगी के निर्देश पर मंगलवार को कर आयुक्त जीएसटी की 55 टीमों ने कुल 70 फर्मों, ऊधमसिंहनगर में 68 और देहरादून में दो फर्मों के कार्यालयों पर छापे मारे गए। व्यापार स्थल पर किए गए सर्वे में इस फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। वित्त सचिव एवं कर आयुक्त सौजन्या ने बताया कि मंगलवार को मौके पर न कोई फर्म मिली और न ही कोई पंजीकृत व्यक्ति।
ज्यादातर वाहन पूर्वोत्तर में पंजीकृत
उन्होंने बताया कि राज्य में कुछ लोगों ने जीएसटी के तहत फर्जी तरीके से पंजीयन लेकर ई-वे बिल के करोड़ों रुपये के कारोबार को दिखाया। जांच करने पर पता चला कि 70 में से 34 फर्म ने दिल्ली से मशीनरी और कंपाउंड दाना की खरीद के 1200 करोड़ मूल्य के ई-वे बिल बनाए। इसके बाद फर्मों ने उक्त सामान की आपस में खरीद-बिक्री के साथ प्रदेश के बाहर की फर्मों को भी खरीद व बिक्री दिखाई, जिससे बिल की धनराशि करीब 8491 करोड़ तक पहुंच गई। फर्जी तरीके से बनाए गए ई-वे बिल में प्रयोग किए गए वाहनों की प्राथमिक जांच में यह सामने आया कि अधिकतर वाहन पूर्वोत्तर राज्यों में पंजीकृत हैं।
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21 मोबाइल नंबरों का इस्तेमालकर आयुक्त सौजन्या ने बताया कि कुल 80 लोगों ने 21 मोबाइल नंबर और ई-मेल आइडी का प्रयोग करते हुए दो-दो की साझेदारी में 70 फर्म पंजीकृत कीं। पंजीयन में दर्ज ब्योरे के मुताबिक सभी साझीदार हरियाणा व दिल्ली के रहने वाले हैं। एक व्यक्ति ने अलग-अलग नाम से अलग-अलग फर्मों में साझेदारी की है। किराए पर लिए गए स्थान का किरायानामा और बिजली का बिल लगाया गया है। जांच से पता चला कि मकान मालिक ने इसतरह का करार किसी फर्म से नहीं किया है।
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