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लैपटाप-टैब से जुड़ा अजीब इत्तेफाक, ख्वाब कई दफा बुने गए, लेकिन कोई न कोई बाधा उत्पन्न हो जाती

उत्तराखंड बोर्ड के 11वीं व 12वीं के छात्र-छात्राओं के हाथ हर बार मायूसी लग रही है। अजीब इत्तेफाक है। अपेक्षाकृत कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले इन छात्र-छात्राओं को लैपटाप या टैबलेट देने के ख्वाब कई दफा बुने गए लेकिन कोई न कोई बाधा उत्पन्न हो जाती है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 08 Jul 2021 08:41 AM (IST)
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प्रदेश में स्कूली छात्र-छात्राओं को लैपटाप या टेबलेट देने की योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है।
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। उत्तराखंड बोर्ड के 11वीं व 12वीं के छात्र-छात्राओं के हाथ हर बार मायूसी लग रही है। अजीब इत्तेफाक है। अपेक्षाकृत कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले इन छात्र-छात्राओं को लैपटाप या टैबलेट देने के ख्वाब कई दफा बुने गए, लेकिन कोई न कोई बाधा उत्पन्न हो जाती है। पिछली तीरथ सरकार ने छात्र-छात्राओं को टैबलेट देने का फैसला किया। मुख्यमंत्री कार्यालय ने बाकायदा शिक्षा विभाग को इस संबंध में प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए। तैयारी की ओर बढ़ रहे इस प्रस्ताव को जल्द कैबिनेट में रखा जाना था, तभी तीरथ सरकार को विदा होना पड़ा। ऐसा ही वाकया 2014 में भी हुआ। तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने जनवरी, 2014 में 10वीं व 12वीं की बोर्ड परीक्षा में मेरिट सूची में आने वाले छात्र-छात्राओं को लैपटाप देने का फैसला किया था। कुछ दिनों बाद ही 31 जनवरी को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। इसे क्या कहा जाए संयोग या दुर्योग।

धूमधाम से फिर मनेगा हरेला

प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में चालू माह के पहले पखवाड़े में जोशोखरोश के साथ शुरू हुआ हरेला पर्व पर अब सीन से गायब है। शुरुआती दो दिन ताबड़तोड़ तरीके से पर्व को मनाना प्रारंभ ही किया गया था कि सूबे में सत्ता परिवर्तन हो गया। तकरीबन चार दिन बाद हालात फिर से पटरी पर आ चुके हैं। यानी दोबारा शिक्षा मंत्री के रूप में कमान अरविंद पांडेय के हाथों में आ चुकी है। मंत्रीजी फुलफार्म में हैं। आते ही फरमान सुनाया कि विद्यालय छात्र-छात्राओं के लिए भले ही बंद हों, लेकिन शिक्षकों को पहुंचना होगा। अब विद्यालयों में शिक्षक पहुंचेंगे और आनलाइन पढ़ाई कराएंगे। विद्यालयों में चहल-पहल होते ही हरेला पर्व का अधूरा अभियान दोबारा से धूमधाम से गति पकड़ेगा। इस बार यह गति कुछ और तेज रहने जा रही है। दरअसल चुनावी साल है, शिक्षकों को तबादलों का बेसब्री से इंतजार है और मंत्रीजी भी पूरी तरह तैयार हैं।

आनलाइन पंजीकरण से बनी दूरी

कमजोर व वंचित वर्ग के बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिलों के लिए आनलाइन पंजीकरण की व्यवस्था रास नहीं आ रही है। छह जिलों में लागू आनलाइन पंजीकरण की व्यवस्था का नतीजा देखिए। 22807 सीटों में से करीब 63 फीसद ही पंजीकरण हुए, 37 फीसद बच्चे पंजीकरण ही नहीं करा सके। लाटरी के आधार पर चयनित हुए बच्चों की संख्या और चौंकाने वाली है। सिर्फ 8490 बच्चों को ही दाखिला मिला। यह करीब 58 फीसद है। अब उन सभी जिलों पर निगाह डालते हैं, जहां आफलाइन पंजीकरण हुए। ऐसे सात जिलों में कुल आरक्षित 2476 सीटों में से 2236 आवेदन मिले। 90 फीसद से ज्यादा बच्चों ने दाखिले के लिए आवेदन किया। इनमें से 2095 यानी 84 फीसद से ज्यादा बच्चे दाखिले के पात्र हो गए। पहले छह जिलों में देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर और नैनीताल जैसे मैदानी जिले भी हैं। इन जिलों में निजी स्कूलों की संख्या भी ज्यादा है।

तकनीकी ने दिखाया कारगर समाधान

जहां चाह, वहां राह। कोरोना महामारी के दौर में आनलाइन पढ़ाई जरूरत बन गई है। बदले हालात में जो जितना तेजी से बदलेगा, वही आगे बढ़ेगा। उच्च शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक में कई दफा परीक्षा के फार्मूले पर मंथन हो चुका है। विश्वविद्यालयों ने कठिनाई, खामियां गिनाईं, बेहतर राह दिखाने की इच्छाशक्ति नहीं दिखी। ऐसे में उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय ने विशेष फीचरयुक्त साफ्टवेयर के माध्यम से बीटेक की परीक्षाएं प्रारंभ कर दीं। परीक्षा आब्जेक्टिव नहीं, पारंपरिक सब्जेक्टिव पैटर्न पर कराई जा रही है। तीन घंटे की परीक्षा अवधि में सुपरविजन सेंटर से लेकर छात्रों की प्रत्येक हलचल पर निगरानी रखी जा रही है। विश्वविद्यालय प्रशासन का दावा है कि रियल टाइम लाइव निगाह की बदौलत यह आनलाइन परीक्षा पूरी तरह नकल विहीन है। छात्र ने अनुचित साधन का इस्तेमाल किया तो आनलाइन परीक्षा से तुरंत लागआउट। अन्य विश्वविद्यालय भी इस तकनीक का फायदा उठा सकते हैं।

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