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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन करने के बाद तय करेंगे रणनीति

उत्तराखंड एससी-एसटी इंप्लाइज फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष करमराम ने कहा सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा गया है कि पदोन्नति में आरक्षण देने का निर्णय सरकार पर है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 08 Feb 2020 04:01 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन करने के बाद तय करेंगे रणनीति
देहरादून, जेएनएन। पदोन्नति में आरक्षण को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उत्तराखंड एससी-एसटी इंप्लाइज फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष करमराम ने कहा सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा गया है कि पदोन्नति में आरक्षण देने का निर्णय सरकार पर है। अब सरकार क्या कदम उठाती है, यह देखने वाली बात होगी। हमारा मानना है कि सरकार सभी के हितों को ध्यान में रखते हुए कोई कदम उठाएगी। फिलहाल अभी फैसले का अध्ययन किया जा रहा है। फैसले को पूरी तरह समझने और सरकार के रुख के बाद विधिक सलाहकार की राय के बाद आगे की रणनीति पर विचार किया जाएगा।

फेडरेशन के अध्यक्ष करमराम ने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण को लेकर राज्य कर विभाग के कर्मचारी ज्ञानचंद करीब एक वर्ष से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। हमारा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखा होगा। आदेश में कहा गया है कि पदोन्नति में आरक्षण देने का निर्णय सरकार को लेना है। फिलहाल फैसले को लेकर अभी इससे अधिक कुछ कहना उचित नहीं होगा, क्योंकि जब तक फैसले को बारीकी से पढ़ न लिया जाए, तब तक उसके निहितार्थ निकालना ठीक नहीं होगा। फैसले के आलोक में सरकार आने वाले दिनों में क्या कदम उठाएगी। यह भी देखने वाली बात होगी। हमारा यह भी मानना है कि सरकार सभी के हितों को ध्यान में रखेगी। सरकार के रुख को देखने के बाद मामले को लेकर विधिक राय ली जाएगी। और तभी निर्णय लिया जाएगा कि फैसले के खिलाफ अपील की जाए या नहीं।

पदोन्नति में आरक्षण पर कब क्या हुआ

कब क्या हुआ

  • साल 2010 में विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने पदोन्नति में लागू आरक्षण के  खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
  • दो साल बाद 2012 में 10 जुलाई को विनोद प्रकाश नौटियाल बनाम उत्तराखंड सरकार मामले में हाई कोर्ट से फैसला आया था। जिसमें पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगा दी गई।
  • पांच सितंबर 2012 को सरकार ने शासन आदेश निकाल कर नई व्यवस्था प्रदेश में लागू करते हुए पदोन्नति में आरक्षण को खत्म कर दिया।
  • मार्च 2019 में एक कर्मचारी ज्ञानचंद्र ने राज्य में लागू नई व्यवस्था के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
  • 31 मार्च तक पदोन्नति में आरक्षण नहीं मिलने की व्यवस्था लागू रही।
  • एक अप्रैल 2019 को हाईकोर्ट ने सरकार के साल 2012 में लागू शासन आदेश को समाप्त कर दिया।
  • हाईकोर्ट के शासन आदेश को समाप्त करने के बाद प्रदेश में पदोन्नति पर भी रोक लग गई।
  • मई 2019 में विनोद प्रकाश नौटियाल समेत अन्य कर्मचारी प्रतिनिधियों ने हाईकोर्ट में शासन आदेश को समाप्त करने पर रिव्यू लगाई।
  • 15 नवंबर 2019 को हाईकोर्ट ने अपने ही फैसले में संशोधन करते हुए सरकार से पिछड़े जनों उनके प्रतिनिधियों समेत अन्य कई विषयों पर पिछड़े वर्गों का क्वांटिफिएबल (मात्रात्मक) डाटा तलब किया। हाई कोर्ट ने सरकार को इसके लिए चार महीने का समय दिया।
  • विनोद प्रकाश नौटियाल समेत अन्य कर्मचारी प्रतिनिधियों ने हाईकोर्ट के आंशिक फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया।
  • प्रदेश सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चैलेंज किया। सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पिछड़े वर्ग का क्वांटिफिएबल डाटा सार्वजनिक करना या किसी को उपलब्ध करना केवल सरकार की मर्जी होती है। इसके लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता।
  • 15 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रख दिया।
  • सात फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सार्वजनिक करते हुए प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण को समाप्त कर दिया।
 योग्य अधिकारी-कर्मचारियों को मिलेगा न्याय

कर्मचारी संगठनों ने लंबे समय से प्रदेश में रुकी पदोन्नति की प्रक्रिया जल्द शुरू होने की उम्मीद जताई है। कर्मचारी नेताओं में इस बात को लेकर भी खुशी है कि अब योग्य अधिकारियों व कर्मचारियों को न्याय मिलेगा। बीते महीनों में कई अधिकारी-कर्मचारी बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो गए।

  • दीपक जोशी (प्रांतीय अध्यक्ष उत्तराखंड जनरल ओबीसी एम्पलाइज एसोसिएशन) का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसले स्वागत योग्य है। इस फैसले के आने से पहले कई अधिकारी व कर्मचारी सेवानिवृत्त का लाभ नहीं पा सके, लेकिन अब सभी को न्याय मिलेगा। उन संगठनों, अधिकारियों व कर्मचारियों की भी जीत है जो इस लड़ाई में कदम-कदम पर उनके साथ रहे।
  • सीताराम पोखरियाल (मुख्य संयोजक, उत्तराखंड जनरल ओबीसी एम्पलाइज एसोसिएशन) का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सभी जनरल-ओबीसी कर्मचारियों की निगाह लगी हुई थी। अब सरकारी कर्मचारियों को उनकी योग्यता के आधार पर पदोन्नति मिलेगी। जो नैसर्गिक न्याय होगा।
  • पूर्णानंद नौटियाल (प्रांतीय प्रवक्ता उत्तराखंड अधिकारी कर्मचारी समन्वय मंच) का कहना है कि कई कार्मिक बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो रहे थे। अब सरकार को तत्काल पदोन्नति से रोक हटाने का आदेश कर देना चाहिए। ताकि सेवानिवृत्त होने वाले कार्मिकों को पदोन्नति का लाभ मिल सके।
  • प्रहलाद सिंह (प्रदेश अध्यक्ष राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद) का कहना है कि पदोन्नति में आरक्षण को लेकर चल रही खींचतान को यहीं खत्म कर सरकार के निर्णय पर भरोसा करना चाहिए। सरकार को भी चाहिए कि अधिकारी-कर्मचारी योग्य हैं तो उन्हें पदोन्नति मिलनी चाहिए।
  • हीरा सिंह बसेड़ा (संगठन सचिव उत्तराखंड जनरल ओबीसी एम्पलाइज एसोसिएशन) का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला अधिक महत्वपूर्ण है। इस निर्णय के उपरांत राज्य में पात्र कार्मिक वरिष्ठता और योग्यता के आधार पर पदोन्नति पा सकेंगे। आरक्षण के आधार पर नहीं।
  • अशोक चौधरी (प्रदेश महामंत्री, उत्तरांचल रोडवेज कर्मचारी यूनियन)  का कहना है कि पदोन्नति आरक्षण होना भी नहीं चाहिए। योग्यता और वरिष्ठता को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रखकर आगे कदम बढ़ाए।
  • अरुण पांडे (कार्यकारी महामंत्री, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद, उत्तराखंड) का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धांत पर मुहर लगा दी कि आरक्षण का लाभ मात्र एक बार ही लिया जा सकता है। पदोन्नति में भी आरक्षण समानता के अधिकार के विरुद्ध था। यह किसी की भी हार या जीत नहीं है यह न्याय की जीत है।
  • दिग्विजय सिंह चौहान (प्रदेश अध्यक्ष, उत्तराखंड प्राथमिक शिक्षक संघ) का कहना है कि नियुक्ति के समय जब पहले ही आरक्षण दिया जा रहा है तो पदोन्नति में आरक्षण नहीं लागू होना ही उचित है। कोर्ट के फैसले के बाद प्रदेश में पदोन्नति की राह भी खुल गई है। कोर्ट के फैसले का स्वागत है।
  • केके डिमरी (प्रदेश अध्यक्ष, राजकीय शिक्षक संघ) का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत है। प्रदेश के 1939 शिक्षकों की डीपीसी हो चुकी है। सरकार से आशा है कि रुके हुए शिक्षकों की पदोन्नति जल्द की जाएगी।
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  • गुड्डी मटूड़ा (प्रांतीय प्रवक्ता, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद) का कहना है कि पदोन्नति प्राप्त करना कर्मचारी का अधिकार है। सरकार को चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए जल्द पदोन्नति से रोक हटाए। महिला कार्मिकों को भी प्रोन्नत किया जाए और उनके लिए प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की जाए।
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