दून की अंधेरी और गंदी सड़कों पर चल रहे सवा दो लाख ग्रामीण
दून में शामिल करने का सब्जबाग दिखाकर शहरी क्षेत्र में सवा दो लाख ग्रामीणों को शामिल तो कर लिया गया, लेकिन ये ग्रामीण आज भी गंदी और अंधेरी सड़कों पर गुजरने को मजबूर हैं।
By BhanuEdited By: Updated: Thu, 27 Dec 2018 09:00 PM (IST)
देहरादून, अंकुर अग्रवाल। स्मार्ट सिटी बन रहे दून में शामिल करने का सब्जबाग दिखाकर शहरी क्षेत्र में सवा दो लाख ग्रामीणों को शामिल तो कर लिया गया, लेकिन ये ग्रामीण आज भी गंदी और अंधेरी सड़कों पर गुजरने को मजबूर हैं। न तो यहां सफाई की कोई व्यवस्था है न पथ प्रकाश की।
नगरीय क्षेत्र में शामिल नगर से सटी 72 ग्राम सभा के लोग सरकारी उपेक्षा से नाराज हैं। ग्रामीणों को शहरी नागरिक बने तीन तिमाही गुजर गईं, लेकिन गांवों में सफाई, सीवर-लाइन, कूड़ा उठान और पथ प्रकाश को लेकर न तो सरकार कोई ध्यान दे रही न ही नगर निगम। चाहे मोथरोवाला, नकरौंदा, रांझावाला, मालसी, नेहरूग्राम हों या फिर सेवलाकलां या आरकेडिया। नगर निकाय चुनाव में वोटों की खातिर सरकार ने शहर का विस्तार तो किया, लेकिन इसके लिए कोई कार्ययोजना नहीं बनाई। इसके लिए न तो नगर निगम को अतिरिक्त स्टॉफ दिया, न ही ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अतिरिक्त बजट दिया गया। पहले साठ वार्डों में जो मानव-शक्ति व संसाधन काम कर रहे थे, उन्हीं के भरोसे सौ वार्ड सुपुर्द कर दिए।
खंभे और स्ट्रीट लाइटें भी नहीं
सभी गांवों में बिजली है, लेकिन खंभे पर्याप्त नहीं हैं। सौ-सौ मीटर दूर लगे खंभे से लोगों ने खुद अपने केबल डाले हुए हैं। इसकी वजह से एक-एक खंबे पर केबल का जाल सा बना हुआ है। केबल सड़कों पर सात से आठ फीट ऊंचाई पर झूल रहे हैं, जिनकी वजह से हादसा होने का खतरा बना हुआ है। खंभे नहीं होने की वजह से स्ट्रीट लाइटों की भी व्यवस्था नहीं है। ऐसे में गांवों में आपराधिक घटनाएं भी होती रहती हैं। रात में महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों का अंधेरी सड़कों पर गुजरना किसी जोखिम से कम नहीं होता। नगर निगम का दावा है कि ग्रामीण इलाकों में पथ प्रकाश की व्यवस्था की जा रही है।
सफाई, कूड़ा उठान की व्यवस्था नहीं
देश भर में स्वच्छ भारत अभियान चल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने दो अक्टूबर 14 से इसकी शुरूआत की थी। शहर में नगर निगम भी इन दिनों पंद्रह दिन का अभियान चलाने का दावा कर रहा, लेकिन गांवों की तरफ कोई अधिकारी व कर्मचारी नहीं जा रहा। पित्थूवाला के ग्रामीणों ने बताया कि दो दिन पूर्व दिखावे के लिए निगम के कुछ कर्मचारी आए थे लेकिन मुख्य सड़कों पर झाड़ू लगाकर चले गए। यही नहीं, सड़कों के किनारे ही कूड़ा फैला दिया गया। शेष 71 गांवों की स्थिति भी ऐसी ही है। गांवों में व्यक्तिगत व निजी सहयोग से सड़कें व गलियां साफ की जा रहीं। नालियां तक भी ग्रामीण खुद साफ कर रहे। यहां निगम की कूड़ा उठान की गाड़ियां एक दिन भी नजर नहीं आईं।
मच्छर फैला रहे बीमारियां
ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की निकासी की व्यवस्था न होने से सड़कें व खाली प्लॉट तालाब सरीखे बने हुए हैं। वर्षा में हालत और खराब रहती है। ऐसे में यहां मच्छरों का प्रकोप बना रहता है। ग्रामीणों ने बताया कि बुखार और अन्य बीमारियां भी मच्छरों के चलते फैली रहती हैं। नगर निगम ग्रामों में आज तक फागिंग तक नहीं करा पाया। पुरानी लाइटों से रोशन करेंगे गांव
नगर निगम क्या कर दे, कहा नहीं जा सकता। जिन गांवों को नई एलईडी स्ट्रीट लाइटों से जगमग करने का सपना दिखाया गया था, वहां निगम शहर की उतरी पुरानी सोडियम लाइटें लगाने जा रहा। बताया जा रहा कि इनमें ज्यादातर लाइटें खराब हैं व इन्हें जुगाड़बाजी से ठीक कराया जा रहा। जिन गांव में पांच-सात लाइटें ठीक कराने के बाद लगाई गई हैं, वे हफ्तेभर में फिर खराब हो गईं।
ग्रामीण क्षेत्रों से ही मांगे थे वोटनगर निकाय चुनाव के दौरान भाजपा के महापौर प्रत्याशी सुनील उनियाल गामा की नजर सबसे पहले ग्रामीण वोटों पर ही थी। उन्होंने अपने प्रचार की शुरूआत भी ग्राम हर्रावाला से की थी। उनकी भागदौड़ इसके बाद भी लगातार ग्रामीण क्षेत्रों की ओर ही रही। दरअसल, भाजपा को अनुमान था कि शहर में उनकी गद्दी सुरक्षित है मगर गांव समीकरण बिगाड़ सकते हैं। क्योंकि, ग्राम सभाओं में ज्यादातर जनप्रतिनिधि कांग्रेसी थे। लिहाजा, बड़े नेताओं ने भी गांवों की तरफ फोकस कर विकास के दावे कर वोट मांगे। जनता ने भी विकास की लालसा में भाजपा को जमकर वोट दिए और महापौर से लेकर निगम बोर्ड में भाजपा विजयी भी हुई। लेकिन, इसके बाद ग्रामीणों को उनके पुराने हाल पर छोड़ दिया गया। अब ग्रामीण करेंगे आंदोलन ओली गांव रायपुर निवासी नीरज राणा के अनुसार स्ट्रीट लाइटों व सफाई के लिए हम कईं बार नगर निगम में प्रार्थना पत्र दे चुके हैं, मगर आज तक हमारी सुनवाई नहीं हुई है। यदि ग्रामीणों को बुनियादी जरूरतें न मिलीं तो हम आंदोलन करने को बाध्य होंगे। पानी की निकासी न होने से जलभराव रांझावाला निवासी गीता नौटियाल के अनुसार पानी की निकासी नहीं होने की वजह से गांव में जलभराव है। सड़क और खाली प्लॉट तालाब बने हुए हैं। इसकी वजह से बीमारियां भी फैल रही हैं। स्ट्रीट लाइटें न होने की वजह से रात के अंधेरे में चोरियां होने का खतरा रहता है। घर की दीवारों में आई दरार चंद्रबनी निवासी सुबोध रतूड़ी का कहना है कि हमने बड़ी मुश्किल से प्लॉट खरीदकर मकान बनाए हैं, लेकिन यहां खाली प्लॉट में जलभराव की वजह से घर की दीवारों में दरार आ गई हैं। यदि नाले और नालियां बन जाएं तो आधी समस्या दूर हो सकती है। सड़क और बिजली की व्यवस्था भी दुरुस्त होनी चाहिए। न गांव के रहे और न ही शहर के सेवलाकलां निवासी प्रदीप भंडारी के मुताबिक इससे तो बेहतर हम गांव में ही थे। शहर में आकर न तो हम गांव के रहे और न ही शहर के बन सके। जनप्रतिनिधियों व नगर निगम के नियंता हमारी अनदेखी कर रहे और कुछ नहीं। चुनाव के समय हमें इस्तेमाल किया और अब भगवान भरोसे सुविधाओं को छोड़ दिया। यह भी पढ़ें: विकास के नाम पर गांवों को मिलाया, सड़कों के ख्वाब में ठगे गए ग्रामीण यह भी पढ़ें: नगर निगम का चुनाव तो जीते, लेकिन भूल गए सुविधाओं का खाका यह भी पढ़ें: 72 गांवों को शामिल कर बदला नगर निगम का भूगोल, नहीं बदली सूरत
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