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पढ़ने-लिखने की उम्र में बांट रहे हैं मौत की पुड़िया

नशे के धंधेबाज बेरोजगार युवाओं को अपने जाल में फांस रहे हैं। तीन साल में नशे के धंधे में पकड़े गए कुल 1404 अभियुक्तों में से 657 काम की तलाश में भटकने वाले बेरोजगार हैं

By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 07 Feb 2019 09:12 PM (IST)
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पढ़ने-लिखने की उम्र में बांट रहे हैं मौत की पुड़िया
देहरादून, अंकुर अग्रवाल। कम मेहनत, मजा पूरा और कमाई भी अच्छी। शायद यही 'चारा' फेंककर नशे के धंधेबाज बेरोजगार युवाओं को अपने जाल में फांस रहे हैं। पुलिस के आंकड़े बता रहे कि तीन साल में नशे के धंधे में पकड़े गए कुल 1404 अभियुक्तों में से 657 काम की तलाश में भटकने वाले बेरोजगार हैं। इनमें ज्यादातर आरोपी युवा और गरीब तबके के हैं। इतना ही नहीं कुछ युवाओं को तो पता ही नहीं होता कि वे जिसकी सौदेबाजी कर रहे हैं वह 'मीठी मौत' की पुड़िया है। एक चौंकाने वाला पहलू यह भी है कि लगभग बीस फीसद आरोपी बाहरी राज्यों या शहरों के हैं। इनमें कुछ तो दून में शिक्षा के लिए आए थे जबकि कुछ नौकरी की तलाश में। वहीं, कुछ आरोपी सिर्फ नशे की सौदेबाजी के लिए यहां आते-जाते रहते थे। धंधेबाजों का नेटवर्क इतना बड़ा है कि इसे ध्वस्त करना पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ है।

एजुकेशन हब से नाम से पहचान रखने वाले देहरादून में पिछले एक दशक से नशे का कारोबार चरम पर पहुंच चुका है। नशे की मंडी की तर्ज पर यहां हर तरह का नशा पहुंच रहा है। शिक्षण संस्थान, हास्टल से लेकर बाजारों तक नशे के तस्करों ने नेटवर्क फैलाया हुआ है। चंद पैसों की खातिर 'मीठी मौत' बांट रहे हैं। गांजा, अफीम, सुल्फा से लेकर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बिकने वाले मादक पदार्थ हेरोइन, स्मैक और ड्रग पेपर तक की डिलीवरी दून शहर में हो रही है।

नशे के सामान की डिलीवरी में सिर्फ बेरोजगार ही नहीं, बल्कि स्कूल व कालेज के छात्र-छात्राएं व कुछ झोलाछाप तक शामिल रहे। पुलिस ऐसे तत्वों पर कार्रवाई भी करती है, लेकिन इस गोरख धंधे में शामिल छोटी मछलियों को छोड़कर पुलिस कभी भी इनके नेटवर्क को ठीक से भेद नहीं पाई। आंकड़ों पर गौर करें तो तस्वीर चौकाने वाली ही सामने आती है। गत तीन साल में पुलिस ने 275 किलो चरस, सात किलो स्मैक,  किलो से अधिक स्मैक और करीब 29 हजार नशीली गोलियां-इंजेक्शन बरामद किए।

तीन साल में नशे की सौदेबाजी में पकड़े गए अभियुक्त

वर्ष---अभियुक्त----बेरोजगार ----बाहरी

2016----391----163----89

2017----561----289----97

2018----452----205----83

तीन साल में पकड़े गए छात्र

वर्ष-----स्कूली----कॉलेज 

2016----17----57

2017----29----34

2018----23----43

झोलाछाप भी आए फंदे में 

नशे का कारोबार करने में पुलिस ने कुछ झोलाछाप भी दबोचे। इनमें पिछले वर्ष तो प्रतिबंधित दवाएं बेचने के आरोप में तीन मेडिकल स्टोर संचालक भी पुलिस की गिरफ्त में आए।

यूपी और हिमाचल है गढ़

दून में पकड़े गए आरोपियों ने पुलिस पूछताछ में खुलासा किया कि वह मादक पदार्थों की खेप उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश से लाते हैं। पुलिस के अनुसार नशे की दवाओं का गढ़ उत्तर प्रदेश का बरेली, मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ, सहारनपुर और मुजफ्फरनगर है। चरस, स्मैक, हेरोइन, ड्रग पेपर का गढ़ हिमाचल प्रदेश का मनाली व शिमला बताया जाता है। 

व्यापक स्तर पर नहीं हुई कार्रवाई 

पुलिस अधिकारी भी मान रहे कि नशे का नेटवर्क तोडऩे के लिए जो व्यापक कार्रवाई होनी चाहिए वह अब तक नहीं हो पाई है। खुद पुलिस के आला अधिकारी भी मानते हैं कि नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए बड़ी कार्रवाई की जरूरत है। इस पर काम किया जा रहा है।

एसएसपी  निवेदिता कुकरेती का कहना है कि नशे के कारोबार को दून से उखाड़ने के लिए पुलिस युद्धस्तर पर काम कर रही है। कार्रवाई और जागरूकता के लिए एक पूरी रणनीति बनाई गई है। धंधेबाज सलाखों के पीछे होंगे।नशाखोरी रोकना सामूहिक जिम्मेदारी

डॉ.अजय सक्सेना (प्राचार्य, डीएवी पीजी कॉलेज) का कहना है कि ड्रग की तस्करी और नशाखोरी को रोकने की जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति एवं संस्थान की न होकर सामूहिक है। ड्रग के मकडज़ाल में फंसने वाले युवा न केवल खुद व परिवार के लिए नुकसानदायक हैं, बल्कि वह समाज के लिए भी खतरनाक हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ड्रग तस्करी के कई मामले सामने आ चुके हैं। इसलिए ड्रग की तस्करी रोकने में आमजन पुलिस का सहयोग करें। शिक्षा संस्थानों के आसपास नशे की बिक्री पूर्ण प्रतिबंधित होनी चाहिए। युवाओं को भी नशा छोड़ अपनी ऊर्जा सकारात्मक दिशा में लगाना चाहिए। इससे न केवल उनका खुद का भला होगा, बल्कि समाज भी तेजी से आगे बढ़ेगा। स्कूल, कॉलेजों व विवि स्तर पर नशा रोकने एवं इसके दुष्प्रभाव पर जागरूकता रैलियां आयोजित की जानी चाहिए। अभिभावक भी अपने बच्चों पर नजर रखें कि उनकी दोस्ती किस प्रकार के युवाओं से है। नशाखोरी रोकने के लिए कड़े कानून की भी दरकार है। 

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