मेडिकल कॉलेज में दाखिले से महरूम छात्रों ने हार्इ कोर्ट से गुहार
सीट आवंटित होने के बाद भी दाखिला नहीं मिलने से नाराज छत्रों ने हार्इ कोर्ट में गुहार लगार्इ है। हिमालयन इंस्टीट्यूट के इन्कार के बाद छात्र ये कदम उठाने को मजबूर हुए हैं।
By Edited By: Updated: Thu, 12 Jul 2018 05:09 PM (IST)
देहरादून, [जेएनएन]: नीट स्टेट काउंसिलिंग में सीट आवंटित होने के बावजूद दाखिले से महरूम छात्रों ने अब कोर्ट में दस्तक दी है। हिमालयन इंस्टीट्यूट के इन्कार पर छात्र हाईकोर्ट चले गए हैं। उधर, चिकित्सा शिक्षा विभाग भी इस मामले के जल्द समाधान का दावा कर रहा है।
बता दें, निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस का मामला लंबे वक्त से अनसुलझा है। बीते वर्ष भी इसे लेकर विवाद की स्थिति बनी थी। तब भी मामला हाईकोर्ट पहुंच गया था। हाईकोर्ट के आदेश पर कॉलेजों ने छात्रों से इसे लेकर शपथ पत्र लिया कि बाद में जो भी फीस तय होगी, वह उन्हें मान्य होगी। इस बीच राज्य सरकार ने निजी कॉलेजों को फीस निर्धारण का अधिकार दे दिया। जिस पर कॉलेजों ने फीस में कई गुना वृद्धि कर दी। छात्रों के आंदोलन पर सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा था। सरकार के हस्तक्षेप के बाद कॉलेजों ने फैसला वापस लिया। बहरहाल, अभी तक फीस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है। शुल्क निर्धारण का मामला उच्च न्यायालय के साथ ही प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति में विचाराधीन है। शासन ने तय किया है कि इस पर निर्णय हो जाने तक कॉलेज पूर्व निर्धारित फीस ही लेंगे। लेकिन, इस बीच कॉलेजों का तर्क है कि वह निजी विवि के अधीन हैं। एक्ट के तहत शुल्क और सीट निर्धारण का अधिकार विवि का है।
नीट-यूजी की काउंसिलिंग के प्रथम चरण में सीट आवंटन की प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है और 12 जुलाई प्रवेश की अंतिम तिथि है। लेकिन हिमालयन इंस्टीट्यूट ने पुरानी फीस पर दाखिले करने से साफ इन्कार कर दिया है। चिकित्सा शिक्षा निदेशक डॉ. आशुतोष सयाना ने बताया कि इस मामले से शासन को अवगत करा दिया है। बुधवार तक इस समस्या का कोई न कोई समाधान निकल आएगा।अभिभावकों ने मुख्य न्यायाधीश को भेजा पत्र निजी मेडिकल विश्वविद्यालय संयुक्त अभिभावक संघ ने इस मामले में मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजा है। संगठन के मुख्य संरक्षक रविंद्र जुगरान का कहना है कि शुल्क संबंधी मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन होने के बावजूद निजी कॉलेज इस पर मनमानी कर रहे हैं। हिमालय इंस्टीट्यूट ने बकायदा सार्वजनिक सूचना के माध्यम से कहा कि उत्तराखंड के अभ्यर्थियों से 11 लाख व बाहरी छात्रों से पंद्रह लाख रुपये सालाना फीस ली जाएगी।
एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज ने भी अपनी वेबसाइट पर तय शुल्क से अलग फीस प्रदर्शित की है। जबकि फीस निर्धारण का अधिकार उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 2006 में पारित निर्णय के आधार पर केवल राज्य सरकार द्वारा गठित शुल्क नियामक समिति ही कर सकती है। कोर्ट के आदेश से छात्रों के माथे पर शिकन मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय ने नीट में सफल अभ्यर्थियों के माथे पर शिकन डाल दी है। न्यायालय ने नीट के योग्य उम्मीदवारों की सूची को संशोधित कर इसे फिर से जारी करने का आदेश दिया है। जबकि ऑल इंडिया काउंसिलिंग का पहला चरण पूरा हो चुका है और छात्र दाखिला भी ले चुके हैं। वहीं, राज्य कोटा के तहत प्रथम चरण के दाखिले अभी चल रहे हैं। ऐसे में इस आदेश ने छात्रों को परेशानी में डाल दिया है। बता दें, देशभर के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए ली गई नीट परीक्षा पर मद्रास उच्च न्यायालय ने सीबीएसई को आदेश दिया कि तमिल में परीक्षा देने वाले सभी प्रतिभागियों को 196 ग्रेस अंक दिए जाएं। परीक्षा में कुल 49 प्रश्नों का अनुवाद गलत था, जिनके लिए प्रति प्रश्न चार अंक देने का आदेश दिया गया है। नीट की संशोधित मेरिट जारी होने से कई लाख छात्र इससे प्रभावित होंगे।
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