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Surya Grahan 2022 का साया, बंद रहे चारधाम समेत मठ-मंदिर, हरिद्वार में नहीं हुई सुबह की गंगा आरती

Surya Grahan 2022 उत्‍तराखंड के चारों धाम बंद किए गए हैं। शाम को ग्रहण काल समाप्‍त होने के बाद मंदिरों में साफ सफाई कर द्वार खोले जाएंगे और पूजा की जाएगी। शाम 5 बजकर 32 मिनट तक ग्रहण काल रहेगा।

By Jagran NewsEdited By: Nirmala BohraUpdated: Tue, 25 Oct 2022 09:29 PM (IST)
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Surya Grahan 2022 : सूर्य ग्रहण के सूतक काल के चलते गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट बंद कर दिए गए।
टीम जागरण, गोपेश्वर : Surya Grahan 2022 : मंगलवार को इस साल का अंतिम सूर्यग्रहण खंडग्रास के रूप में नजर आया। इस दौरान राज्य में चारों धाम बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री समेत विभिन्न मठ व मंदिरों के पट ग्रहण के 12 घंटे पहले सूतककाल के दौरान बंद रहे।

गंगाजल के शुद्धिकरण और आरती के बाद पट खोले

हरिद्वार में ग्रहण के प्रभाव के चलते सुबह की गंगा आरती नहीं हुई। वहीं ग्रहण का समय बीत जाने के बाद शाम को मंदिरों में गंगाजल के शुद्धिकरण और आरती के बाद श्रद्धालुओं के लिए पट खोले गए।

हरिद्वार में हरकी पैड़ी व ऋषिकेश में शाम को त्रिवेणी घाट पर काफी संख्या में श्रद्धालुओं ने स्नान किया। सूर्य ग्रहण मंगलवार शाम चार बजकर 22 मिनट से शुरू होकर शाम छह बजकर 23 मिनट तक रहा। जिसे उत्तराखंड में चार बजकर 55 मिनट से पांच बजकर 26 मिनट तक विभिन्न क्षेत्रों से देखा गया।

विभिन्न मंदिरों के पट बंद रहे

वहीं, सुबह चार बजकर 22 मिनट से देहरादून के सिद्धपीठ डाटकाली मंदिर, टपकेश्वर महादेव मंदिर गढ़ी कैंट, दुर्गा मंदिर सर्वे चौक, पृथ्वीनाथ महादेव मंदिर सहारनपुर चौक, श्याम सुंदर मंदिर पटेलनगर, प्राचीन शिव मंदिर धर्मपुरी, सनातन धर्म मंदिर प्रेमनगर, प्राचीन स्वर्गापुरी देवी मंदिर निरंजनपुर समेत विभिन्न मंदिरों के पट बंद रहे।

शाम को प्रतिमा को गंगाजल से स्नान और मंदिर परिसर की धुलाई के बाद पंडितों द्वारा आरती की गई। इसके बाद श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चना की। घरों में भी ग्रहणकाल के बाद ही खाना बनाने की तैयारी की गई।

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डाटकाली मंदिर गेट पर माथा टेक वापस लौटे श्रद्धालु

सिद्धपीठ डाटकाली मंदिर में कई श्रद्धालु दर्शन व पूजा करने पहुंच गए। लेकिन सूर्यग्रहण के सूतककाल के चलते मंदिर के कपाट बंद रहे। जिसके कारण श्रद्धालु गेट पर ही माथा टेककर वापस आए।

मंदिर के महंत रमन प्रसाद गोस्वामी ने बताया कि शाम को ग्रहण के खत्म होने के बाद मंदिर के पिछले वाले भाग में हवन किया गया। जबकि प्रतिमा को स्नान कराने के बाद आरती हुई। इसके बाद ही श्रद्धालुओं को प्रवेश दिया गया।

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