काल, कर्म, स्वभाव और गुण हैं दुख के चार कारण, श्रीरामचरितमानस में कर्मयोग पर बोले स्वामी मैथिलीशरण
सनातन धर्म सभा देहरादून की ओर से आयोजित नौ दिवसीय कार्यक्रम के पहले दिन श्रीरामचरितमानस में कर्मयोग पर प्रवचन देते हुए स्वामी मैथिलीशरण ने कहा कि यदि व्यक्ति चाहे तो जीवन में पराजय को भी भगवान की भक्ति का उपादान बना सकता है।
जागरण संवाददाता, देहरादून: काल, कर्म, स्वभाव और गुण, ये चार दुख के कारण हैं। यदि व्यक्ति चाहे तो जीवन में पराजय को भी भगवान की भक्ति का उपादान बना सकता है। अपने समस्त कर्मों को भगवान की कृपा, नाम, रूप, लीला और धाम से जोड़कर ही धन्य किया जा सकता है। तब हमारे जो भी कर्म होंगे, वे कर्म के बंधन से मुक्त होंगे। यह उद्गार श्रीरामकिंकर विचार मिशन के परमाध्यक्ष स्वामी मैथिलीशरण ने राजा रोड स्थित गीता भवन में श्रीरामचरितमानस में कर्मयोग के महत्व को रेखांकित करते हुए व्यक्त किए।
स्वामी मैथिलीशरण ने श्रीरामचरितमानस में कर्मयोग पर दिए प्रवचन
सनातन धर्म सभा देहरादून की ओर से आयोजित नौ दिवसीय कार्यक्रम के पहले दिन श्रीरामचरितमानस में कर्मयोग पर प्रवचन देते हुए स्वामी मैथिलीशरण ने कहा कि बाली मानस का एक ऐसा पात्र है, जो प्रथम चरण में अहंकार के वशीभूत होकर स्वयं भगवान के बल को भी चुनौती दे देता है। लेकिन, श्रीराम के वाण प्रहार के बाद बाली का यही युद्ध उसके जीवन की भक्ति और उपलब्धि बन गया।
बाली ने भगवान के चरणों में अर्पित किया अपना अहंकार
भगवान ने जब बाली से कहा कि तुम चाहो तो वह तुम्हारे इस पंचभौतिक शरीर में पुन: जीवन का संचार कर देंगे, तो बाली का कहना था कि ऐसी कामना करने वाला तो कोई दुर्भाग्यशाली ही हो सकता है। यह कहकर बाली ने अपना अहंकार भगवान के चरणों में अर्पित कर अपने पुत्र अंगद का हाथ उनके हाथों में सौंप दिया।
26 वर्ष तक युग तुलसी श्री रामकिंकर महाराज को सुना
प्रवचन से पूर्व भक्ति संगीत के कार्यक्रम भी हुए। इस मौके पर श्री सनातन धर्म सभा गीता भवन के अध्यक्ष राकेश ओबराय ने कहा कि गीता भवन की इसी व्यासपीठ पर 26 वर्ष तक युग तुलसी श्री रामकिंकर महाराज को सुना। अब हम उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। कार्यक्रम में गुलशन खुराना, विपिन नागलिया, साधना जयराज, जयराज समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।
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