swatantrata ke sarthi: हिम्मत से पक्षाघात को दी मात, अब बच्चों को सिखा रही हैं योग
swatantrata ke sarthi पैरालिसिस होने के बाद भी रेखा ने हार नहीं मानी और स्वस्थ होने के साथ अब वह खुद का संस्थान संचालित कर बच्चों को योग का प्रशिक्षण दे रही हैं।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sun, 09 Aug 2020 08:59 AM (IST)
देहरादून, जेएनएन। swatantrata ke sarthi हौसले मजबूत हों तो बड़ी से बड़ी बीमारी भी घुटने टेकने को मजबूर हो जाती है। इसे साबित कर दिखाया देहरादून स्थित चंद्रबनी निवासी रेखा रतूड़ी ने। पैरालिसिस (पक्षाघात) होने के बाद रेखा के मात्र 20 फीसद अंग ही काम कर रहे थे। उनके इलाज कर रहे डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए थे, लेकिन वह मन से नहीं हारीं और पूरे मनोयोग से योग की शरण में चली गईं। नतीजा यह हुआ कि स्वस्थ होने के साथ अब वह खुद का संस्थान संचालित कर बच्चों को योग का प्रशिक्षण दे रही हैं। इतना ही नहीं, जो बच्चे फीस नहीं दे सकते, उन्हें वह निश्शुल्क प्रशिक्षण देती हैं।
मूलरूप से पौड़ी जिले के पाबौ ब्लॉक स्थित त्रिपालीसैंण निवासी रेखा रतूड़ी का परिवार वर्तमान में सुभाषनगर चंद्रबनी में रहता है। पिता शिरोमणि रतूड़ी सेना से सेवानिवृत्त हैं, जबकि मां राजेश्वरी देवी गृहणी। रेखा को छह अक्टूबर 2019 में डेंगू हुआ और 16 अक्टूबर को पैरालिसिस का अटैक पड़ गया। स्वजनों ने दून और चंडीगढ़ के विभिन्न अस्पतालों में उनका इलाज कराया। लेकिन, दस दिनों तक आइसीयू में रखने के बावजूद कोई फर्क नही पड़ा, तो डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए। इससे स्वजनों की हिम्मत भी टूट गई थी। कारण, रेखा के 20 फीसद अंग ही कार्य कर रहे थे और दिमाग भी सुन्न पड़ने लगा था। सो, स्वजन रेखा को लेकर नवंबर में घर लौट आए।
हालांकि, रेखा ने अभी भी हार नहीं मानी थी। उन्होंने घर लौटते ही लेटे-लेटे प्रतिदिन प्राणायाम करना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में वह धीरे-धीरे बैठने भी लगीं। जैसे-जैसे उनके अंगों ने काम करना शुरू किया, उन्होंने योग की विभिन्न क्रियाओं का अभ्यास शुरू कर दिया। इसी का नतीजा रहा कि फरवरी आखिर तक वह चलने भी लगीं।
रेखा बताती हैं कि उन्होंने मन से कभी हार नहीं मानी। पूरा विश्वास था कि एक दिन वह ठीक हो जाएंगी। अब वह पूरी तरह स्वस्थ हैं। कहती हैं कि गर्दन से नीचे पूरा शरीर सुन्न था, इसलिए लेटकर ही बिस्तर पर प्राणायाम करना शुरू किया। 15 से 20 दिन में शरीर के अन्य हिस्सों ने थोड़ा-थोड़ा काम करना शुरू कर दिया। इसके बाद वह सुबह-शाम एक-एक घंटे प्राणायाम के साथ नाड़ी शोधन व अन्य आसन भी करने लगीं। तकरीबन दो महीने तक इन सब आसनों को करने के बाद वह बिना सहारे के धीरे-धीरे खड़ी होने लगीं। स्वजनों के साथ रिश्तेदार भी अचंभित थे कि आखिर योग के जरिए यह सब कैसे संभव हो गया।
यह भी पढ़ें: Handloom Day: उत्तराखंड में हाथों के हुनर से साकार कर रहे हैं सपनेऑनलाइन दे रहीं योग का प्रशिक्षणरेखा बताती हैं कि जिस हिम्मत और योग की मदद से वह आज ठीक हुई हैं, उसी का प्रशिक्षण दूसरों को भी दे रही हैं। कोरोना काल के चलते इन दिनों उनका जीएमएस रोड स्थित संस्थान बंद है, ऐसे में वह सुबह व शाम के बैच को ऑनलाइन योग का प्रशिक्षण दे रही हैं। इससे जुडऩे के लिए कई लोग उनसे संपर्क भी कर रहे हैं। कई लोग ऐसे भी हैं, जो योग करना चाहते हैं, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण फीस जमा नहीं कर पाते। उन्हें निश्शुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है। बताया कि वर्तमान में चंद्रबनी व बिंदाल पुल से आठ बच्चे योग का निश्शुल्क प्रशिक्षण ले रहे हैं।
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