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Regular Power Supply: उत्‍तराखंड में नियमित बिजली आपूर्ति में सिस्टम भी बड़ी बाधा

उत्‍तराखंड में नियमित बिजली आपूर्ति नहीं हो रही है। राज्‍य में यह स्थिति तब है जब यहां मांग की तुलना में बिजली का उत्‍पादन अधिक हो रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ी बाधा सिस्टम ही है। उपकरणों का समुचित रखरखाव न होना और बिजली चोरी मुख्‍य कारण हैं।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Wed, 08 Sep 2021 01:44 PM (IST)
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ऊर्जा प्रदेश कहलाने वाले उत्तराखंड में बिजली की चौबीसों घंटे आपूर्ति का सपना अभी अधूरा है।
विजय जोशी, देहरादून। Regular Power Supply: ऊर्जा प्रदेश कहलाने वाले उत्तराखंड में बिजली की चौबीसों घंटे आपूर्ति का सपना अभी अधूरा है। यह स्थिति तब है, जबकि प्रदेश में कुल मांग की तुलना में बिजली का उत्पादन आंकड़ा अधिक है। उपकरणों का समुचित रखरखाव न होना और बिजली चोरी में अपेक्षित कमी लाना जैसी चुनौतियां इस राह में रोड़ा बनी हुई है। ऊर्जा निगम इस मर्ज का अभी तक ठीक से उपचार नहीं कर पाया है। नतीजतन उपभोक्ताओं को बिजली कटौती के रूप में इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

कटौती का सच

ऊर्जा निगम के आंकड़ों में भले ही प्रदेश में बिजली कटौती दर्ज न हो या फिर नाममात्र की दर्शायी जाती हो, पर असलियत इसके उलट है। उपभोक्ताओं को लगभग हर रोज बिजली कटौती (रोस्टिंग) झेलनी पड़ती है। यह अलग बात है कि अघोषित कटौती निगम के रिकार्ड में नहीं होती है, लेकिन कई इलाकों में आज भी अघोषित कटौती पांच से सात घंटे तक हो रही है। गर्मियों में मांग बढ़ने के चलते ऊर्जा निगम की व्यवस्थाएं चरमरा जाती हैं। लगभग हर मोहल्ले व गांव में दिन में औसतन दो से तीन घंटे की घोषित बिजली कटौती की जाती है, जबकि अघोषित कटौती कई बार पूरे-पूरे दिन की जाती है।

ये बनाए जाते हैं बहाने

ऊर्जा निगम बिजली कटौती को सीधे स्वीकार करने की बजाय तमाम बहाने बनाता आया है। आमतौर पर लोकल फाल्ट बताकर उपभोक्ता को टरका दिया जाता है। इसके अलावा ट्रिपिंग, रेनावेशन वर्क, ट्रांसमिशन में तकनीकी फाल्ट, ट्रांसफार्मर फुंकना, विद्युत पोल व लाइन क्षतिग्रस्त होना आदि की आड़ लेकर ऊर्जा निगम अपनी खामियों से छिपाने का प्रयास करता है।

बिजली चोरी रोकने के प्रयास नाकाफी

निर्बाध बिजली आपूर्ति के प्रयासों के बीच ऊर्जा निगम के लिए बिजली चोरी रोकना चुनौती बना हुआ है। हालांकि, देहरादून और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में बिजली चोरी न के बराबर है। लेकिन, हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर और नैनीताल के तराई क्षेत्र में बिजली चोरी के मामले थम नहीं रहे हैं। पिछले एक साल में ऊर्जा निगम ने तीन हजार से अधिक बिजली चोरी के मामले पकड़े गए।

उपकरणों की गुणवत्ता पर सवाल

ऊर्जा निगम के विद्युत उपगृहों में उपकरणों में और आपूर्ति के लिए लगाए जाने वाले ट्रांसफार्मरों में खराबी की शिकायतें आम हैं। इससे भी बिजली की आपूर्ति में बाधा पहुंचती है, लेकिन ऊर्जा निगम इस बीमारी का इलाज नहीं कर पाया। घपले के जो सामने सामने आते हैं, उनमें जांच भी बैठाई जाती है, मगर जिम्मेदारी तय करने में पारदर्शिता नहीं दिखती। ज्यादातर मामलों में जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हो पाती है। सुस्ती का आलम यह कि 32 करोड़ रुपये के ट्रांसफार्मर घोटाले में 13 अभियंताओं को चार्जशीट जारी करने में निगम को 16 साल लग गए।

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यूईआरसी की सिफारिशों को ठेंगा

बिजली चोरी रोकने को उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग (यूईआरसी) ने ऊर्जा निगम की विजिलेंस विंग को अधिक सक्रिय करने, डिफेक्टिव मीटर दुरुस्त करने, बंच केबल लगाने, डिफाल्टर्स की आपूर्ति रोकने आदि के सुझाव दिए थे। जिनमें से ज्यादातर पर ऊर्जा निगम का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा है। इसके अलावा यूईआरसी ने घरेलू उपभोक्ताओं के मासिक बिल जारी करने और एंड्राइड बेस्ड बिलिंग व्यवस्था बनाने के भी निर्देश दिए थे। इस पर निगम की ओर से कार्य किए जाने का दावा किया गया है।

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हरक सिंह रावत (ऊर्जा मंत्री, उत्तराखंड) का कहना है कि ऊर्जा निगम के अधिकारियों को निर्बाध विद्युत आपूर्ति के लिए यथासंभव प्रयास करने को कहा गया है। लाइन लास घटाने और उपकरणों के उचित रखरखाव और बार-बार उपकरणों में खराबी आने पर संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने को भी कहा गया है। यदि अनावश्यक बिजली कटौती की शिकायत मिली तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

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