शिक्षा से पहले शिष्यों में संस्कार गढ़ रहा है ये 'कुम्हार', जानिए इनकी कहानी
टिहरी के अति दुर्गम क्षेत्र धनसाणी गांव स्थित राजकीय इंटर कॉलेज नौल बासर के शिक्षक डॉ सुशील कोटनाला ने। वो बच्चों को साक्षर बनाने से पहले संस्कारवान बना रहे हैं।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Tue, 01 Jan 2019 08:36 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। सुशिक्षित समाज का मतलब सिर्फ डिग्री हासिल करना नहीं, बल्कि ऐसी शिक्षा से भी है, जिससे किसी छात्र का सर्वांगीण विकास हो सके। जहां शिक्षा के साथ संस्कारों का भी समावेश हो और जो शिक्षा पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का काम कर सके। छात्रों को ऐसी ही शिक्षा देने का बीड़ा उठाया है टिहरी जिले के अति दुर्गम क्षेत्र धनसाणी गांव स्थित राजकीय इंटर कॉलेज नौल बासर के शिक्षक डॉ. सुशील कोटनाला ने। उन्होंने बच्चों को साक्षर बनाने से पहले संस्कारवान बनाने की पहल की है। उन्होंने ऐसे संस्कार केंद्र की स्थापना की है, जहां पांच से 15 साल तक के बच्चों को साफ-सफाई से लेकर बड़ों का आदर करने और तमाम सामाजिक मूल्यों के संस्कार दिए जा रहे हैं।
42 वर्षीय हिंदी प्रवक्ता डॉ. सुशील कोटनाला बताते हैं कि केंद्र की स्थापना उन्होंने दो अक्टूबर 2017 में की थी। तब धनसाणी गांव के मुख्य मार्ग पर छोटे बच्चे शौच किया करते थे। जबकि, संस्कार केंद्र की स्थापना के छह माह के भीतर ही यह समस्या 95 फीसद तक दूर हो गई थी। केंद्र में इस समय 50 से अधिक बच्चे शिक्षा के साथ संस्कार भी सीख रहे हैं। केंद्र का संचालन भी कोटनाला अपने वेतन से करते हैं और अब उनकी इस मुहिम को उत्तरांचल उत्थान परिषद का भी सहयोग मिल रहा है। केंद्र में बच्चों के बाल भी संवारे जाते हैं और जरूरत पड़ने पर उनके नाखून भी काटे जाते हैं।
कोटनाला ने वर्ष 2003 में उत्तरकाशी के बौन पंजियाला इंटर कॉलेज से अपनी सेवा शुरू की थी। वहां भी वह संस्कार केंद्र की स्थापना कर चुके हैं। कभी संस्कार केंद्र में पढ़े उनके कई शिष्य आज अपने पैरों पर खड़े हो चुके हैं। कोटनाला का मानना है कि बिना संस्कार के बड़ी से बड़ी शिक्षा का भी कोई महत्व नहीं रह जाता। वह संस्कार ही होते हैं, जो समाज की हर खाई को पाट सकते हैं। यही कारण है कि वह साक्षर होने या शिक्षित बनने से पहले संस्कार के महत्व पर जोर दे रहे हैं।
उनका कहना है कि वह जहां भी अपनी सेवा देंगे, सबसे पहले उस स्थान पर संस्कार केंद्र की स्थापना करेंगे। जहां आज सरकारी शिक्षक मोटा वेतन लेने करने के बाद भी सुगम क्षेत्रों में तैनाती पाने की जुगत में रहते हैं, वहीं कोटनाला बिना किसी प्रलोभन के एक सच्चे कुम्हार की तरह खामोश भाव से अपने शिष्यों का भविष्य गढ़ रहे हैं।
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