पगडंडियों पर चल घर-घर पहुंचाया ज्ञान का उजाला, कोरोना की चुनौती के बीच नहीं मानी हार
Teachers Day 2021 कुछ स्कूलों ने कोरोनाकाल में आनलाइन पढ़ाई शुरू की लेकिन कई बच्चे ऐसे थे जो आर्थिक स्थिति और तमाम अन्य कारणों के चलते आनलाइन पढ़ाई से नहीं जुड़ सके। ऐसे बच्चों तक ज्ञान का उजाला पहुंचाने के लिए कुछ शिक्षक आगे आए।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sun, 05 Sep 2021 08:27 AM (IST)
आयुष शर्मा, देहरादून। Teacher's Day 2021 कोरोनाकाल का सबसे ज्यादा असर अगर किसी पर पड़ा है तो वह है शिक्षा। वर्ष 2020 में कोरोना के चलते लागू हुए लाकडाउन के कारण तमाम शिक्षण संस्थान बंद हो गए, जिसके कारण बच्चे भी पढ़ाई से दूर हो गए और उनका भविष्य अधर में लटक गया। हालांकि कुछ स्कूलों ने आनलाइन पढ़ाई के जरिये इस समस्या से पार पाया, लेकिन कई बच्चे ऐसे थे, जो आर्थिक स्थिति और तमाम अन्य कारणों के चलते आनलाइन पढ़ाई से नहीं जुड़ सके। ऐसे बच्चों तक ज्ञान का उजाला पहुंचाने के लिए कुछ शिक्षक आगे आए और कोरोना की सभी चुनौतियों से लड़ते हुए जान की परवाह किए बिना घर-घर जाकर शिक्षा बांटी।
रायपुर ब्लाक के कोटली का राजकीय इंटर कालेज बुरांसखंडा अति दुर्गम श्रेणी का विद्यालय है। यहां 15 किलोमीटर की दूरी तक बैंक और पोस्ट आफिस जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। आसपास के 10 गांव के छात्रों के लिए माध्यमिक शिक्षा का यह एक अकेला माध्यम है। बुरांसखंडा इंटर कालेज में यहां से आठ किलोमीटर दूर स्थित गढ़ गांव, नाली कला गांव, सिल्ला समेत अन्य कई गांवों से छात्र-छात्राएं पैदल चलकर पढ़ने आते हैं। कोरोनाकाल में जब स्कूल बंद हुआ तो इन छात्रों के सामने पढ़ाई का संकट खड़ा हो गया।
विद्यालय में अर्थशास्त्र के शिक्षक कमलेश्वर भट्ट बताते हैं कि वह 37 वर्षों से शिक्षण का कार्य कर रहे हैं, लेकिन कभी ऐसी परिस्थिति नहीं देखी। उन्होंने स्कूल में पढ़ने वाले 190 छात्रों तक किसी तरह आनलाइन माध्यम से शिक्षा पहुंचाने का प्रयास किया, लेकिन कई बच्चे ऐसे थे जिनके पास न तो स्मार्ट फोन थे और न ही उनके क्षेत्र में इंटरनेट की उचित व्यवस्था थी। बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच ऐसे बच्चों तक शिक्षा पहुंचाना उनके लिए चुनौती बन गया।
हालांकि, इस चुनौती से पार पाने के लिए उन्होंने भौतिक विज्ञान के शिक्षक नंदा वल्लभ पंत प्रभारी प्रधानाचार्य, राजनीतिक विज्ञान के शिक्षक राजेंद्र सिंह रावत, भूगोल के शिक्षक केके राणा, गणित के शिक्षक आरएस चौहान, रसायन विज्ञान की शिक्षक प्रियंका घनसाला, विज्ञान की शिक्षक मेघा रावत के सहयोग से नोट्स तैयार किए और विभिन्न माध्यमों से बच्चों के घर तक पहुंचाए। अभी भी कुछ बच्चे ऐसे थे, जिनके पास नोट्स पहुंचाना आसान नहीं हो रहा था। लेकिन 58 वर्षीय शिक्षक कमलेश्वर भट्ट ने हार नहीं मानी और पगडंडियों को नापते हुए घर-घर जाकर बच्चों को शिक्षा दी।
दूसरों से सीखा आनलाइन शिक्षा का कान्सेप्ट कमलेश्वर भट्ट बताते हैं कि आनलाइन शिक्षा के बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी। इसलिए उन्होंने आसपास के युवाओं से जूम, गूगल मीट आदि एप चलाना सीखा। इनकी मदद से उन्होंने आनलाइन माध्यम से शिक्षा का प्रसार जारी रखा। साल 2006 में कमलेश्वर भट्ट को राष्ट्रीय कंप्यूटर लिट्रेसी अवार्ड तत्कालीन राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम ने दिया था। वहीं 2008 में शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने राष्ट्रपति पुरस्कार से उन्हें नवाजा था।
फोन काल पर करवाई पढ़ाई, अपने खर्च से बनाई वर्कशीट पिछले वर्ष मार्च में प्राथमिक विद्यालय बंद होने के बाद से आज तक नहीं खुल सके हैं। प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं की पढ़ाई जारी रखवाना शिक्षकों के लिए और बड़ी चुनौती रही। छोटी उम्र के छात्र-छात्राओं को पढ़ाई में व्यस्त रखने के साथ तकनीक से जोडऩा आसन नहीं था, लेकिन अपने मजबूत इरादों की बदौलत शिक्षकों ने यह भी कर दिखाया।
यह भी पढ़ें- यहां लाकडाउन और कोविड कर्फ्यू में आमजन का मंच बना 'जनमंच', कुछ इस तरह की मददरायपुर ब्लाक के चौकी चुंगी चामासारी प्राथमिक विद्यालय की हेड मास्टर संतोष रावत ने इस कठिन चुनौती का सामना कर पढ़ाई के लिए एक दुरुस्त व्यवस्था बनवाई। विद्यालय में आसपास के पांच गांव के 42 छात्र-छात्राएं पढ़ाई करते हैं, लेकिन विभिन्न समस्याओं एवं सुविधाओं की कमी के चलते लाकडाउन के बाद वे पढ़ाई से नहीं जुड़ सके।
यह भी पढ़ें- रिफ्लेक्टिव कालर पहनाकर बेजुबानों की जान बचा रही युवाओं की यह टीम, घायलों का भी करा रही उपचार ऐसे में संतोष ने स्कूल में मौजूद अन्य शिक्षिकाओं और स्टाफ की मदद से सभी छात्र-छात्राओं के अभिभावकों एवं उनके रिश्तेदारों के नंबर जुटाकर कुछ छात्रों को आनलाइन कक्षाओं से जोड़ा, जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं थे उन्हें घंटों तक काल करके पढ़ाई करवाई। संतोष बताती हैं कि छात्रों को फोन लगाने के बाद वह उनसे कापी और किताब खुलवा कर नोट्स बनवाती थीं। साथ ही हफ्ते के हफ्ते गांव-गांव में जाकर बच्चों की कापी एवं नोट्स चेक करती थीं। अपने खर्च पर उन्होंने बच्चों के लिए कभी हाथ से लिखी तो कभी कंप्यूटर से तैयार की हुई वर्कशीट भी उपलब्ध करवाई।
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