Uttarakhand Politics: उत्तराखंड सीएम पुष्कर सिंह धामी के वक्तव्य के बाद जगी नए जिलों के गठन की उम्मीद
जनगणना की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही राज्य सरकार नए जिलों को लेकर कोई कदम उठा सकती है। अधिक संभावना यही है कि अगले विधानसभा चुनाव से पहले ही नए जिले अस्तित्व में आ जाएंगे। वैसे नए जिलों का गठन सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 21 Sep 2022 04:25 PM (IST)
देहरादून, विकास धूलिया। उत्तराखंड में अभी विधानसभा चुनाव को साढ़े चार साल का समय है, लेकिन यह अभी से तय नजर आ रहा है कि राज्य में नए जिलों के गठन के मुद्दे की इसमें बड़ी भूमिका रहेगी। यह इसलिए, क्योंकि उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद पिछले लगभग 22 वर्षों से इस तरह की मांग हर जिले से उठती रही है। नौ नवंबर, 2000 को देश के मानचित्र पर 27वें राज्य के रूप में वर्तमान उत्तराखंड अस्तित्व में आया था। तब उत्तर प्रदेश के 13 जिलों को मिलाकर नए राज्य का जन्म हुआ, नाम दिया गया उत्तरांचल। बाद में पं. नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार ने राज्य का नाम उत्तरांचल से बदल कर उत्तराखंड कर दिया, जो नवगठित राज्य की पहली निर्वाचित सरकार थी।
उत्तराखंड के 13 जिलों में से आठ पूरी तरह पर्वतीय भूगोल वाले हैं, जबकि दो जिले हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर मैदानी हैं। देहरादून एवं नैनीताल जिले में पर्वतीय एवं मैदानी भूभाग, दोनों शामिल हैं। पौड़ी जिले का छोटा-सा हिस्सा भी मैदानी है। इनमें से कई जिले ऐसे हैं, जो भौगोलिक रूप से काफी विस्तृत हैं। खासकर कुछ पर्वतीय जिलों की स्थिति यह है कि स्थानीय व्यक्तियों को जिला मुख्यालय तक पहुंचने के लिए कुछ घंटे नहीं, बल्कि दिन तक लग जाता है।
राज्य गठन के बाद से ही यहां नए जिलों की मांग उठने लगी थी, लेकिन इस ओर ठोस पहल 15 अगस्त, 2011 को तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने की। स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में उन्होंने चार नए जिलों के निर्माण की घोषणा की। इनमें उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री, पौड़ी में कोटद्वार, अल्मोड़ा में रानीखेत और पिथौरागढ़ में डीडीहाट को नया जिला घोषित किया गया। इसके कुछ ही दिन बाद निशंक मुख्यमंत्री पद से हट गए। उनके स्थान पर पद संभालने वाले भुवन चंद्र खंडूड़ी के समय दिसंबर 2011 में नए जिलों का शासनादेश हुआ, लेकिन विधानसभा चुनाव आ गए और विषय टल गया।
वर्ष 2012 में कांग्रेस सत्ता में आ गई और इसी के साथ नए जिलों के निर्माण का मामला ठंडे बस्ते में चला गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के कार्यकाल में यह हुआ कि नए जिलों की भाजपा सरकार की घोषणा को दरकिनार कर राजस्व परिषद के अंतर्गत पुनर्गठन आयोग बना उसे यह विषय सौंप दिया गया। बहुगुणा को मुख्यमंत्री के रूप में लगभग दो वर्ष का कार्यकाल मिला। वर्ष 2014 में उनके स्थान पर कांग्रेस ने हरीश रावत को मुख्यमंत्री पद सौंपा। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वर्ष 2016 में रावत ने नए जिलों को लेकर कदम बढ़ाए।
भाजपा सरकार की चार जिलों के निर्माण की घोषणा से आगे बढ़ते हुए उन्होंने एक साथ आठ नए जिलों के निर्माण का इरादा जताया। यह बात अलग है कि तब उन्होंने नए जिलों के नाम सार्वजनिक नहीं किए। नए जिलों के निर्माण को लेकर उत्सुक जनता प्रतीक्षा करती ही रह गई और विधानसभा चुनाव आ गए। राजनीतिक हलकों में तब माना गया कि नए जिलों के गठन को रावत ने चुनावी मुद्दे के रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति अपनाई, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ पाई और वर्ष 2017 के चौथे विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन के साथ तीन-चौथाई से अधिक बहुमत प्राप्त कर 70 में से 57 सीटों पर जीत दर्ज की।
पिछली सरकार के दौरान नए जिलों को लेकर कोई प्रगति नहीं हुई। इतना अवश्य रहा कि प्रशासनिक इकाइयों के पुनर्गठन को लेकर बने आयोग को नए जिलों को लेकर आम जनता एवं संगठनों से सुझाव मिलते रहे। आयोग अभी भी इस पर काम कर रहा है। गत वर्ष विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान भी नए जिलों के गठन का मुद्दा उठा था। इसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने कुमाऊं भ्रमण के दौरान नए जिलों के गठन के लिए पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट के अध्ययन की बात कही थी। हाल ही में नए जिलों के गठन की उम्मीद तब नजर आई, जब भाजपा ने अपने सांगठनिक जिलों की संख्या 14 से बढ़ाकर 19 कर दी। इससे यह चर्चा फिर शुरू हो गई कि सरकार अब सांगठनिक जिलों के साथ ही नए प्रशासनिक जिले भी बना सकती है।
यह चर्चा तब पुख्ता हो गई, जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसके स्पष्ट संकेत दिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में नए जिलों की मांग काफी समय से चली आ रही है। इसे लेकर शीघ्र ही पूरे उत्तराखंड के अंदर समस्त जनप्रतिनिधियों से चर्चा की जाएगी। सरकार देखेगी कि कहां-कहां जिलों का पुनर्गठन कर नए जिले बनाए जा सकते हैं। मुख्यमंत्री के वक्तव्य के बाद नए जिलों को लेकर फिर चर्चा शुरू हो गई है। यद्यपि इसमें अभी कुछ समय लगेगा, क्योंकि जनगणना के कारण नई प्रशासनिक इकाइयों के सृजन पर रोक है।
जनगणना की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही राज्य सरकार नए जिलों को लेकर कोई कदम उठा सकती है। अधिक संभावना यही है कि अगले विधानसभा चुनाव से पहले ही नए जिले अस्तित्व में आ जाएंगे। वैसे नए जिलों का गठन सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। चुनौती इस दृष्टिकोण से कि इसमें भारी-भरकम धनराशि व्यय होगी। उत्तराखंड एक कमजोर आर्थिकी वाला राज्य है और एक साथ कई नए जिले बनाने के लिए सरकार को बड़ी धनराशि की व्यवस्था करनी होगी।[स्टेट ब्यूरो चीफ, उत्तराखंड]
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।