इस मंदिर के तहखाने में कैद हैं बूट चोलाधारी सूर्य भगवान की मूर्ति, जानिए
चमोली जिले के पौराणिक गोपीनाथ मंदिर के तहखाने में बूट चोलाधारी सूर्य भगवान की मूर्ति है। केंद्र सरकार की ओर से नए म्यूजियम के निर्माण पर फिलहाल ब्रेक लगए हैं।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 04 Dec 2018 08:48 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। पुरातत्व महत्व वाले चमोली जिले के पौराणिक गोपीनाथ मंदिर के तहखाने में कैद बूट चोलाधारी सूर्य भगवान रोशनी को तरस गए हैं। पुरातत्व विभाग की कार्ययोजना थी कि म्यूजियम बनाकर तहखाने में रखी मूर्तियों को देश-दुनिया की नजरों में लाया जाए, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से नए म्यूजियम के निर्माण पर फिलहाल ब्रेक लगाए जाने से यह कार्ययोजना फाइलों में कैद होकर रह गई है।
चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर में स्थित गोपीनाथ मंदिर उत्तराखंड का दूसरा सबसे ऊंचा मंदिर है। शिव के इस पौराणिक धाम को पुरातत्व विभाग ने वर्ष 1992 में अपने अधीन ले लिया था। वर्ष 2004 में पुरातत्व विभाग ने मंदिर की पौराणिकता की बरकरार रखते हुए इसकी मरम्मत का कार्य भी किया था। मंदिर का एक तहखाना भी है, जहां बूट वाले सूर्य भगवान की तीन फीट ऊंची दुर्लभ मूर्ति समेत कई मूर्तियां रखी हुई हैं।
कार्ययोजना थी कि मंदिर की भूमि पर म्यूजियम बनाकर इन्हें वहां स्थापित किया जाए, ताकि देश-दुनिया इनका दीदार कर सकें। इनमें सबसे खास है बूट चोलाधारी सूर्य भगवान की मूर्ति। कारण, इसमें पारसी अपने आराध्य देव को देखते हैं। अगर म्यूजियम में यह मूर्ति रखी जाती तो निश्चित तौर पर देश-दुनिया के लोग इसके दर्शनों को आते। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मंडल देहरादून ने म्यूजियम बनाने की कार्ययोजना केंद्र सरकार को भेजी थी, लेकिन तीन साल पूर्व केंद्र ने नए म्यूजियम की स्वीकृति पर रोक लगा दी। इस आदेश से गोपीनाथ मंदिर के म्यूजियम सहित उत्तराखंड के एक अन्य म्यूजियम की कार्ययोजना भी फिलहाल प्रतीक्षा में रखी गई है। हालांकि, पुरातत्व केंद्रीय कार्यालय की ओर से नए म्यूजियम की स्वीकृति को लेकर फिलहाल कार्ययोजना नहीं बनाने के निर्देश दिए गए हैं। लेकिन, पहले से प्रस्तावित योजनाओं को अभी निरस्त नहीं किया गया है।
गोपीनाथ मंदिर का इतिहास
गोपीनाथ मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजाओं ने नवीं से 11वीं सदी के बीच किया था। नागर शैली में बने गोपीनाथ मंदिर के ऊपर गुंबद का आकार है और मंदिर में 24 दरवाजे हैं। मंदिर परिसर में कई मंदिरों के अवशेष भी मौजूद हैं। इस मंदिर में शीतकाल के छह महीने चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ की पूजा भी होती है। मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान शिव ने गोपी का रूप धारण कर नृत्य किया था। मंदिर परिसर में भगवान शिव का पौराणिक त्रिशूल व फरसा भी मौजूद है। बताते हैं कि 1191 ईस्वी में नेपाल के मल्ल वंशीय राजा अशोक मल्ल ने इस त्रिशूल को यहां पर चढ़ाया था। खास बात यह कि त्रिशूल पर तर्जनी से ही कंपन होने लगता है। मंदिर परिसर में कल्पवृक्ष भी मौजूद है, जो सालभर हरा-भरा रहता है।पैरों में बूट, कांधे पर चोला
मंदिर के तहखाने में मौजूद सूर्यदेव की मूर्ति अपने-आप में विलक्षण है। मूर्ति को देखने से लगता है कि वह चोला ओढ़े हुए है। पैरों पर बूट और माथे पर सूर्य की किरणों का आकार नजर आता है। इसलिए इसे चोला-बूटधारी सूर्य भगवान का नाम दिया गया है।सूर्य हैं पारसियों के आराध्य
पारसी समुदाय के लोग बूट व चोलाधारी सूर्य की मूर्ति को अपने आराध्य देव के रूप में जगह देते हैं। इसलिए पुरातत्व विभाग गोपीनाथ मंदिर के तहखाने में मौजूद इस मूर्ति को पारसियों के आराध्य देव की मूर्ति के रूप में मान्यता दे रहा है। लिली धस्माना (अधीक्षण पुरातत्वविद्, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मंडल, देहरादून) का कहना है कि गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में बूट वाले सूर्य भगवान सहित कई दुर्लभ मूर्तियां सुरक्षित हैं। इन्हें म्यूजियम बनाकर सार्वजनिक किए जाने की कार्ययोजना थी। प्रस्तावित म्यूजियम पर केंद्रीय कार्यालय से अभी रोक है। भविष्य में रोक हटने पर म्यूजियम निर्माण को स्वीकृति मिल सकती है।
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