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इस बार महाशिवरात्रि पर 117 साल बाद बन रहा दुर्लभ संयोग

इस बार महाशिवरात्रि पर 117 साल बाद शनि और शुक्र का दुर्लभ संयोग हो रहा है। शनि स्वयं की राशि मकर और शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में रहेगा।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sun, 16 Feb 2020 08:06 PM (IST)
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इस बार महाशिवरात्रि पर 117 साल बाद बन रहा दुर्लभ संयोग
देहरादून, जेएनएन। इस बार महाशिवरात्रि पर 117 साल बाद शनि और शुक्र का दुर्लभ संयोग हो रहा है। शनि स्वयं की राशि मकर और शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में रहेगा। इससे पहले वर्ष 1903 में भी ऐसा ही संयोग बना था। 

शनि और चंद्रमा के संयोग से शश योग

महाशिवरात्रि पर शनि और चंद्रमा के संयोग से शश योग बन रहा है। यह योग शनि के मकर या कुंभ राशि (स्वराशि) अथवा तुला राशि (उच्च राशि) में केंद्र में स्थित होने और लग्न के बलवान होने पर बनता है। इस योग को चंद्र के केंद्र में भी देखा जाता है। चंद्र कुंडली बनाने पर अगर शनि केंद्र स्थानों पर स्थित हो तो इस योग का निर्माण होता है। चंद्रमा मन और शनि ऊर्जा का कारक है। इसके अलावा महाशिवरात्रि पर सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है।

महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त

  • चतुर्दशी तिथि 21 फरवरी शाम 5.20 बजे से आरंभ होकर 22 फरवरी शाम 7.02 बजे तक रहेगी।
  • रात्रि प्रहर पूजा : 21 फरवरी शाम 6.41 बजे से रात 12.52 बजे तक।
  • निशिथ काल पूजा : 21 फरवरी रात्रि 12.08 बजे से 1.00 बजे तक
  • पारण का समय : 22 फरवरी सुबह 6.57 बजे से दोपहर बाद 3.23 बजे तक
टपकेश्वर महादेव

देहरादून की खूबसूरत वादियों में घंटाघर से 5.5 किमी दूर तमसा नदी के तट पर एक गुफा में भगवान शिव टपकेश्वर रूप में विराजते हैं। इस गुफा में मौजूद स्वयंभू शिवलिंग पर ऊपर स्थित एक चट्टान से निरंतर जल की बूंदें टपकती रहती हैं। इसी कारण इसका नाम टपकेश्वर महादेव पड़ा। यह स्थान महर्षि द्रोणाचार्य की तपस्थली तो रहा ही, उन्होंने यहां भगवान शिव से शिक्षा भी ग्रहण की थी। द्वापर युग में टपकेश्वर को 'तपेश्वर' व 'दूधेश्वर' नाम से भी जाना जाता था। कथा है कि दूध से वंचित गुरु द्र्रोण के पुत्र अश्वत्थामा ने भगवान शिव की छह माह तक कठोर तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें दूध प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। मान्यता है कि पहली बार अश्वत्थामा ने इसी मंदिर में दूध का स्वाद चखा था। तब जो भक्त यहां दर्शनों को आता था, वह प्रसाद के रूप में दूध प्राप्त करता था। लेकिन, कालांतर में इस प्रसाद का अनादर होने लगा, जिससे दूध पानी में तब्दील हो गया। धीर-धीरे यह पानी बूंद बनकर शिवलिंग पर टपकने लगा। टपकेश्वर में प्रतिदिन शाम को भगवान शिव का शृंगार किया जाता है। जबकि, हर त्रयोदशी को भगवान का विशेष शृंगार होता है। इसे रुद्राक्षमय शृंगार कहा जाता है।

जंगम शिवालय

देहरादून शहर के केंद्र स्थल घंटाघर के पास पलटन बाजार में स्थित इस एतिहासिक शिवालय की स्थापना लगभग 183 साल पहले हुई थी। कहते हैं कि लिंगायत शैव संप्रदाय में दीक्षित जंगम बाबा ने इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की। इसलिए उन्हीं के नाम पर शिवालय को 'जंगम शिवालय' कहा जाने लगा और कालांतर में यह इसी नाम से प्रतिष्ठित हुआ। एक बार अंग्रेजों ने यहां पूजा होते देखी तो इससे बेहद खुश हुए इस स्थान पर शिवालय निर्माण के लिए दान स्वरूप बाकायदा एक बीघा जमीन उपलब्ध कराई। जंगम शिवालय का संचालन श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी करता है। इस शिवालय में जलाभिषेक का भी टपकेश्वर महादेव में जलाभिषेक जैसा माहात्म्य है।

व्रत का सुपाच्य आहार केले की टिक्की

महाशिवरात्रि पर्व पर ज्यादातर व्रती फलाहार ही लेते हैं। लेकिन, आप चाहें तो इस मौके पर कच्चे केले की टिक्की का लुत्फ भी ले सकते हैं। यह स्वादिष्ट होने के साथ ही सुपाच्य एवं स्वास्थ्यवद्र्धक भी है। कच्चे केले में कॉर्बोहाइड्रेट, फाइबर, विटमिन-सी व बी-6 प्रचुर मात्रा होते हैं। साथ ही यह पोटेशियम का भी अच्छा स्रोत है।

सामग्री

आवश्यकतानुसार कच्चे केले, हरी मिर्च, सेंधा नमक स्वादानुसार, बारीक कटा हरा धनिया, तलने के लिए घी या तेल।

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बनाने की विधि

कच्चे केलों को अच्छी तरह धोकर बीच से दो हिस्सों में काट लें। प्रेशर कुकर में एक सीटी तक उबालकर फिर इनका पानी निकाल लें। ठंडा होने पर इन्हें छीलकर मसल लें और कटा हरा धनिया, हरी मिर्च, नमक आदि मिलाकर गूंथ लें। इस मिश्रण से पसंद के अनुसार टिक्की बनाकर उनकी तवे या पैन पर सिकाई करें। फिर इन टिक्कियों को पांच से सात मिनट के लिए फ्रिज में रख दें। इसके बाद इन्हें तवे या पैन पर घी या तेल में धीमी आंच पर सेकें। तैयार है केले की टिक्की। आप धनिया की चटनी, टमाटर की चटनी या चाय के साथ इसका लुत्फ ले सकते हैं।

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