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हिमालय जैसा विराट था भूगोलवेत्ता डॉ. नित्यानंद का चिंतन

देश के ख्यातिलब्ध भूगोलवेत्ताओं में डॉ. नित्यानंद का नाम आदर एवं सम्मान के साथ लिया जाता है। शैक्षणिक क्षेत्र में उनका योगदान हिमालय जैसा विराट था।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sun, 09 Feb 2020 05:40 PM (IST)
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हिमालय जैसा विराट था भूगोलवेत्ता डॉ. नित्यानंद का चिंतन
देहरादून, जेएनएन। देश के ख्यातिलब्ध भूगोलवेत्ताओं में डॉ. नित्यानंद का नाम आदर एवं सम्मान के साथ लिया जाता है। शैक्षणिक क्षेत्र में उनका योगदान हिमालय जैसा विराट था। उच्चकोटि के संपूर्ण शैक्षणिक रिकार्ड के साथ-साथ नित्यानंद का पूरा जीवन हिमालय के संरक्षण और संवर्द्धन को समर्पित रहा। यही नहीं, भारत-पाकिस्तान के बीच तल्ख रिश्ते और कश्मीर समस्या जैसे राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर नित्यानंद का चिंतन उनकी विद्वता को रेखांकित करता है।

नौ फरवरी 1926 को आगरा के एक साधारण परिवार में जन्मे नित्यानंद ने वर्ष 1955 में सेंट जॉन्स कॉलेज आगरा से एमएम (भूगोल) की परीक्षा उत्तीर्ण की। शानदार शैक्षणिक रिकार्ड के चलते एक साल बाद ही उनकी नियुक्ति जनता वैदिक पीजी कॉलेज बड़ौत (बागपत-उत्तर प्रदेश) में प्रवक्ता के पद पर हुई। वर्ष 1957 में वे सेंट जॉन्स कॉलेज आगरा में प्रवक्ता हो गए। यहां उन्होंने वर्ष 1964 तक अध्यापन किया। वर्ष 1965 में वह देहरादून आ गए और यहां डीबीएस कॉलेज के भूगोल विभाग में बतौर रीडर अध्यापन किया। भूगोल विषय में गहरी रुचि, कुशाग्र बुद्धि व प्रभावी अध्यापन के साथ समयपालन और अनुशासन उनकी प्राथमिकता में रहते थे।

कश्मीर समस्या पर था गहरा चिंतन  

डॉ.नित्यानंद ने वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद कश्मीर समस्या पर एक शोधपत्र प्रकाशित किया। 'भू राजनीतिक समीक्षा' शीर्षक से प्रकाशित इस शोधपत्र में उन्होंने कश्मीर भू-सीमा के निर्धारण की पृष्ठभूमि, प्राकृतिक, सांस्कृतिक व आर्थिक समस्याओं का उल्लेख किया था। भू-राजनीतिक समस्याओं पर लिखा गया यह लेख उनकी देशप्रेम की भावना को दर्शाता है। वह अपने व्याख्यानों में सदा कश्मीर समस्या का उल्लेख करते थे। समाज और प्रकृति की चिंता में डूबे नित्यानंद आजीवन अविवाहित रहे। वर्ष 1944 में उन्होंने संघ प्रचारक बनकर आगरा और फिरोजाबाद में कार्य किया। उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से आपातकाल का पुरजोर विरोध किया।

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मनेरी-भाली में बनाया सेवा आश्रम

सेवानिवृत्ति के बाद वर्ष 1991 में डॉ. नित्यानंद को उत्तरकाशी में आए विनाशकारी भूकंप ने झकझोर कर रख दिया। सो, लोगों की सहायता व उत्थान के लिए उन्होंने उत्तरकाशी के मनेरी गांव में सेवा आश्रम स्थापित किया। यहां रहकर जीवन के अंतिम पड़ाव तक उन्होंने लोगों की सेवा की। नित्यानंद की अंतिम इच्छा थी कि उनकी पुस्तक 'होली हिमालय' को जन-जन तक पहुंचाया जाए, ताकि आमजन हिमालय को और करीब से जान सकें। 90 साल की उम्र में नौ जनवरी 2016 को देहरादून स्थित आरएसएस कार्यालय में उन्होंने अंतिम सांस ली।

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