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उत्तराखंड में बाघों के कुनबे में इजाफे के बीच बढ़ी चुनौतियां, पढ़िए पूरी खबर

उत्तराखंड में बाघों के कुनबे में इजाफा भले ही सुकून देने वाला हो मगर इसके साथ ही चुनौतियां भी खासी बढ़ गई हैं।

By Edited By: Updated: Tue, 30 Jul 2019 08:47 PM (IST)
उत्तराखंड में बाघों के कुनबे में इजाफे के बीच बढ़ी चुनौतियां, पढ़िए पूरी खबर
देहरादून, केदार दत्त। देश में बाघ संरक्षण के मामले में टॉप फाइव राज्यों में शुमार उत्तराखंड में बाघों के कुनबे में इजाफा भले ही सुकून देने वाला हो, मगर इसके साथ ही चुनौतियां भी खासी बढ़ गई हैं। चुनौती इनके वासस्थल की, जंगलों में पर्याप्त भोजन की, सुरक्षा की और चुनौती मानव के साथ संभावित टकराव रोकने की। इनसे पार पाने के अब नए सिरे से रणनीति तैयार करने की जरूरत है। हालांकि, सरकार और वन महकमा भी मानते हैं कि बाघों की बढ़ी संख्या को देखते हुए अब जिम्मेदारी अधिक बढ़ गई है।

राज्य में बाघों की प्रमुख सैरगाह कार्बेट टाइगर रिजर्व के अलावा राजाजी टाइगर रिजर्व और 12 वन प्रभाग बाघ बहुल हैं। प्रोजेक्ट टाइगर लागू होने के बाद कार्बेट में बाघों की संख्या निरंतर बढ़ी है। इसके साथ ही अन्य प्रभागों में भी इनका कुनबा बढ़ा और धीरे-धीरे इनकी पहुंच भी बढ़ती चली गई। अब तो करीब 14 हजार फुट की ऊंचाई पर भी बाघों की मौजूदगी के पुख्ता प्रमाण मिले हैं। इसे बाघ संरक्षण के प्रयासों की सफलता कहने के साथ ही ये भी कहा जा सकता है कि 71 फीसद वन भूभाग वाले इस राज्य के जंगल बाघों के लिहाज से ठीक हैं।

ऐसे में बाघों की बढ़ी संख्या पर रश्क जरूर किया जा सकता है, मगर तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। बाघ बढऩे के साथ ही चुनौतियां भी बढ़ गई हैं। सबसे बड़ा सवाल ये है कि जिस तरह से साल-दर- साल बाघों का कुनबा बढ़ रहा है, उस हिसाब से यहां के जंगलों में उनके लिए वासस्थल और भोजन का इंतजाम है। ये सवाल इसलिए भी कि तमाम क्षेत्रों में बाघों के भोजन यानी शाकाहारी जीवों के शिकार की घटनाएं सामने आती रही हैं। 

यदि जंगल में भोजन नहीं होगा तो बाघों के आबादी की तरफ आने से मानव के साथ टकराव की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। जानकारों की मानें तो अमूमन एक बाघ का क्षेत्र करीब 10 से 12 वर्ग किमी का होता है। यदि संख्या में और इजाफा हुआ तो इलाके लिए बाघों में आपसी संघर्ष बढ़ सकता है। 

दूसरा बड़ा सवाल बाघों की सुरक्षा का है। यह किसी से छिपा नहीं है कि बाघों पर शिकारियों की गिद्धदृष्टि गड़ी हुई है। कई मौकों पर शिकारी संरक्षित क्षेत्रों के कोर जोन तक में घुसकर अपनी करतूत को अंजाम देते आए हैं। जाहिर है कि बदली परिस्थितियों में बाघों के लिए वासस्थल विकास, भोजन के इंतजाम और सुरक्षा को लेकर नए सिरे से रणनीति तैयार कर कदम उठाने की जरूरत है।

जय राज (प्रमुख मुख्य वन संरक्षक उत्तराखंड) का कहना है कि बाघों की संख्या में इजाफा होने से निश्चित रूप से हमारी जिम्मेदारी अब अधिक बढ़ गई है। बाघ संरक्षण के लिए महकमा कटिबद्ध है। चुनौतियों से पार पाने के लिए गहन मंथन कर ठोस कार्ययोजना तैयार कर इसे धरातल पर उतारा जाएगा। वासस्थल विकास और सुरक्षा पर वैसे भी हमारा फोकस है। इसके लिए हर जरूरी कदम उठाए जाएंगे।

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