जॉर्ज एवरेस्ट ने मसूरी में रहकर मापी थी एवरेस्ट की ऊंचाई, पढ़िए पूरी खबर
जिन सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी का नाम माउंट एवरेस्ट रखा गया उन्होंने जीवन का एक लंबा अर्सा पहाड़ों की रानी मसूरी में गुजारा था।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 18 Nov 2019 08:35 PM (IST)
देहरादून, दिनेश कुकरेती। आपको मालूम है कि जिन सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी का नाम 'माउंट एवरेस्ट' रखा गया, उन्होंने जीवन का एक लंबा अर्सा पहाड़ों की रानी मसूरी में गुजारा था। वेल्स के इस सर्वेयर एवं जियोग्राफर ने ही पहली बार एवरेस्ट की सही ऊंचाई और लोकेशन बताई थी। इसलिए ब्रिटिश सर्वेक्षक एंड्रयू वॉ की सिफारिश पर वर्ष 1865 में इस शिखर का नामकरण उनके नाम पर हुआ। इससे पहले इस चोटी को 'पीक-15' नाम से जाना जाता था। जबकि, तिब्बती लोग इसे 'चोमोलुंग्मा' और नेपाली 'सागरमाथा' कहते थे। मसूरी स्थित सर जॉर्ज एवरेस्ट के घर और प्रयोगशाला में ही वर्ष 1832 से 1843 के बीच भारत की कई ऊंची चोटियों की खोज हुई और उन्हें मानचित्र पर उकेरा गया। जॉर्ज वर्ष 1830 से 1843 तक भारत के सर्वेयर जनरल रहे।
पार्क एस्टेट मसूरी में है जॉर्ज का घरसर जॉर्ज एवरेस्ट का घर और प्रयोगशाला मसूरी में पार्क रोड में स्थित है, जो गांधी चौक लाइब्रेरी बाजार से लगभग छह किमी की दूरी पर पार्क एस्टेट में स्थित है। इस घर और प्रयोगशाला का निर्माण वर्ष 1832 में हुआ था। जिसे अब सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस एंड लेबोरेटरी या पार्क हाउस नाम से जाना जाता है। यह ऐसे स्थान पर है, जहां दूनघाटी, अगलाड़ नदी और बर्फ से ढकी चोटियों का मनोहारी नजारा दिखाई देता है। जॉर्ज एवरेस्ट का यह घर अब ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की देख-रेख में है। यहां आवासीय परिसर में बने पानी के भूमिगत रिजर्व वायर आज भी कौतुहल बने हुए हैं। इस एतिहासिक धरोहर को निहारने हर साल बड़ी तादाद में पर्यटक यहां पहुंचते हैं।
रॉयल आर्टिलरी के प्रशिक्षित कैडेट थे जॉर्ज
सर जॉर्ज एवरेस्ट का जन्म चार जुलाई 1790 को क्रिकवेल (यूनाइटेड किंगडम) में पीटर एवरेस्ट व एलिजाबेथ एवरेस्ट के घर हुआ था। इस प्रतिभावान युवक ने रॉयल आर्टिलरी में कैडेट के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त किया। इनकी कार्यशैली और प्रतिभा को देखते हुए वर्ष 1806 में इन्हें भारत भेज दिया गया। यहां इन्हें कोलकाता और बनारस के मध्य संचार व्यवस्था कायम करने के लिए टेलीग्राफ को स्थापित और संचालित करने का दायित्व सौंपा गया।
कार्य के प्रति लगन एवं कुछ नया कर दिखाने की प्रवृत्ति ने इनके लिए प्रगति के द्वार खोल दिए। वर्ष 1816 में जॉर्ज जावा के गवर्नर सर स्टैमफोर्ड रैफल्स के कहने पर इस द्वीप का सर्वेक्षण करने के लिए चले गए। यहां से वे वर्ष 1818 में भारत लौटे और यहां सर्वेयर जनरल लैंबटन के मुख्य सहायक के रूप में कार्य करने लगे। कुछ वर्ष काम करने के बाद जॉर्ज थोड़े दिनों के इंग्लैंड लौटे, ताकि वहां अपने सामने सर्वेक्षण के नए उपकरण तैयार करवाकर उन्हें भारत ला सकें। भारत लौटकर वे कोलकाता में रहे और सर्वेक्षण दलों के उपकरणों के कारखाने की व्यवस्था देखते रहे। वर्ष 1830 में जॉर्ज भारत के महासर्वेक्षक नियुक्त हुए।
अनेक चोटियों की मापी ऊंचाईवर्ष 1820 में दक्षिण अफ्रीका की समुद्री यात्रा के दौरान गंभीर ज्वर के प्रकोप से इनकी टांगों ने कार्य करना बंद कर दिया। ऐसे में उन्हें व्हील चेयर के माध्यम से ही कार्य संपादित करने के लिए ले जाया जाने लगा। लंबे इलाज के बाद वह चलने-फिरने की स्थिति में आ पाए। सर्वेक्षण की दिशा में नित्य अन्वेषण करके उन्होंने 20 इंच के थियोडोलाइट यंत्र का निर्माण किया। इस यंत्र के माध्यम से उन्होंने अनेक चोटियों की ऊंचाई मापी। वर्ष 1830 से 1843 के बीच वे भारत के सर्वेयर जनरल रहे। वर्ष 1862 में वे रॉयल जियोग्राफिकल सोसाइटी के वाइस प्रेसिडेंट बने। अपने कार्यकाल में उन्होंने ऐसे उपकरण तैयार कराए, जिनसे सर्वे का सटीक आकलन किया जा सकता है।
'चीफ कंप्यूटर' की रही अहम भूमिकाउस दौर चोटियों की ऊंचाई की गणना के लिए कंप्यूटर नहीं होते थे। इसलिए तब गणना करने वाले व्यक्ति को ही कंप्यूटर कहा जाता था। 'पीक-15' की ऊंचाई की गणना में चीफ कंप्यूटर की भूमिका गणितज्ञ राधानाथ सिकदर ने ही निभाई थी। उनका काम सर्वेक्षण के दौरान जुटाए गए आंकड़ों का आकलन करना था। वे अपने काम में इतने माहिर थे कि उन्हें 'चीफ कंप्यूटर' का पद दे दिया गया था। अन्य चोटियों की ऊंचाई की गणना में भी उनकी अहम भूमिका रही।
लंदन के हाईड पार्क गार्डन स्थित घर में ली अंतिम सांसवर्ष 1847 में जॉर्ज ने भारत के मेरिडियल आर्क के दो वर्गों के मापन का लेखा-जोखा प्रकाशित किया। इसके लिए उन्हें रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ने पदक से नवाजा। बाद में उन्हें रॉयल एशियाटिक सोसायटी और रॉयल जियोग्राफिकल सोसायटी की फैलोशिप के लिए चुना गया। वर्ष 1854 में उन्हें कर्नल के रूप में पदोन्नति मिली। फरवरी 1861 में वे 'द ऑर्डर ऑफ द बाथ' के कमांडर नियुक्त हुए। मार्च 1861 में उन्हें 'नाइट बैचलरÓ बनाया गया। एक दिसंबर 1866 को लंदन के हाईड पार्क गार्डन स्थित घर में उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्हें चर्च होव ब्राइटो के पास सेंट एंड्रयूज में दफनाया गया है।
यह भी पढ़ें: कभी ऐसा था अपना दून, जानिए यहां से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यजॉर्ज मसूरी में चाहते थे सर्वेक्षण का कार्यालयभारत सर्वेक्षण विभाग (सर्वे ऑफ इंडिया) एक केंद्रीय एजेंसी है, जिसका काम नक्शे बनाना और सर्वेक्षण करना है। इस एजेंसी की स्थापना जनवरी 1767 में ब्रिटिश इंडिया कंपनी के क्षेत्र को संघटित करने के लिए की गई थी। यह भारत सरकार के सबसे पुराने इंजीनियरिंग विभागों में से एक है। सर जॉर्ज के महासर्वेक्षक नियुक्त होने के बाद वर्ष 1832 में मसूरी भारत के महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण का केंद्र बन गया था। जॉर्ज एवरेस्ट मसूरी में ही भारत के सर्वेक्षण का नया कार्यालय चाहते थे। लेकिन, उनकी इच्छा अस्वीकार कर दी गई और इसे देहरादून में स्थापित किया गया।
यह भी पढ़ें: देहरादून में अपनी ओर खींचता है कैक्टस का मनमोहक संसार, पढ़िए पूरी खबरआखिर सरकार ने ली इस एतिहासिक धरोहर की सुधमसूरी स्थित हाथीपांव पार्क रोड क्षेत्र के 172 एकड़ भूभाग में बने जॉर्ज एवरेस्ट हाउस (आवासीय परिसर) और इससे लगभग 50 मीटर दूरी पर स्थित प्रयोगशाला (आब्जरवेटरी) का जीर्णोद्धार कार्य शुरू होने से इस एतिहासिक स्थल के दिन बहुरने की उम्मीद जगी है। कई दशक से जॉर्ज एवरेस्ट हाउस के जीर्णोद्धार की मांग की जा रही थी, लेकिन इसकी हमेशा अनदेखी होती रही। नतीजा यह एतिहासिक धरोहर जीर्ण-शीर्ण हालत में पहुंच गई। बीते वर्ष पर्यटन विभाग की ओर से जॉर्ज एवरेस्ट हाउस समेत पूरे परिसर के जीर्णोद्धार और विकास की घोषणा की गई थी। इन दिनों यहां जीर्णोद्धार का कार्य प्रगति पर है। परिसर के पुश्तों को दुरुस्त किया जा रहा है, ताकि बरसात में भूमि का कटाव न होने पाए।
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