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युवा इंजीनियर के प्रयासों से देवस्थानों में खूशबू बिखेर रहे बेकार हो चुके फूल

युवा इंजीनियर की मेहनत एवं लगन से मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले फूल अब बेकार नहीं जाएंगे। इन फूलों से देवस्थान फिर से महकने लगेंगे।

By BhanuEdited By: Updated: Tue, 11 Jun 2019 08:14 PM (IST)
युवा इंजीनियर के प्रयासों से देवस्थानों में खूशबू बिखेर रहे बेकार हो चुके फूल
ऋषिकेश, दुर्गा नौटियाल। मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले फूलों को लोग अक्सर खुले में साफ-सुथरे स्थान पर फेंक देते हैं या फिर नदियों में प्रवाहित कर देते हैं। इससे ये प्रदूषण का बड़ा कारण बनते हैं। अब यही फूल रिसाइकिल होने के बाद धूप व अगरबत्ती के रूप में फिर से देवस्थानों पर अपनी खुशबू बिखेरने लगे हैं। यह सब संभव हो पाया है एक युवा इंजीनियर की मेहनत एवं लगन से। उनके इस प्रयास से अब कई महिलाएं भी स्वावलंबन की राह पर आगे बढ़ रही हैं।

मूलरूप से फरीदाबाद (हरियाणा) निवासी रोहित प्रताप का बचपन से ही ऋषिकेश आना-जाना रहा। यहां त्रिवेणी घाट पर गंगा में फेंके जाने वाले फूल उन्हें व्यथित करते थे और वह इसके समाधान के लिए सोचते रहते। इलेक्ट्रॉनिक्स में बीटेक करने के बाद रोहित को एक प्रतिष्ठित कंपनी में क्वालिटी कंट्रोल इंजीनियर की नौकरी मिल गई। 

इस बीच दूसरी कंपनी से और बेहतर ऑफर मिली तो उन्होंने उसे ज्वाइन कर दिया। मगर, दिमाग में तो एक ही धुन सवार थी कि पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ हटकर करना है। सो, रोहित ने मंदिरों से निप्रयोज्य होकर प्रदूषण का कारण बनने वाले फूलों के उपयोग पर काम करना शुरू किया। 

करीब आठ माह की कड़ी मशक्कत के बाद उन्हें फूलों को रिसाइकिल कर धूप व अगरबत्ती बनाने का फार्मुला खोज निकाला। इसी वर्ष अप्रैल में रोहित ने तीन लाख की लागत से ऋषिकेश के गंगा नगर में किराये पर मकान लेकर अपने सपने को साकार करना शुरू किया। 

उन्होंने ओडिनी प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी बनाकर बेकार फूलों की रिसाइकिलिंग का काम शुरू कर दिया। नगर निगम ऋषिकेश के अधिकारियों के समक्ष जब उन्होंने अपना प्रोजेक्ट रखा तो निगम ने उन्हें मंदिरों से फूलों के कलेक्शन के लिए मुफ्त में वाहन उपलब्ध करा दिया। 

अब रोहित की कंपनी ने ऋषिकेश के करीब एक दर्जन मंदिरों में बासी फूलों के कलेक्शन के लिए डिब्बे लगाए हैं। इसके अलावा नगर में एक दर्जन पुष्प विक्रेताओं से भी बासी फूल रोहित की यूनिट में पहुंचते हैं। जिन्हें रिसाइकिल कर खुशबूदार धूप व अगरबत्ती तैयार हो रही हैं। गुलाब, चंदन व प्राकृतिक खुशबू के साथ ये प्रोडक्ट 'नभ अगरबत्ती' व 'नभ धूप' के नाम से बाजार में भी उपलब्ध हैं। 

ऐसे होती है रिसाइकिलिंग 

मंदिर और दुकानों से रोजाना शाम को 150 से 200 किलोग्राम बासी फूल कंपनी को कच्चे माल के रूप में मिल जाते हैं। इनकी पहले छंटनी की जाती है और फिर अधिक सड़े व बेकार फूलों की बाकायदा धुलाई की जाती है। इसके बाद इनकी पंखुड़ियों को अलग कर धूप में सुखाया जाता है। पूरी तरह सूखने के बाद इन फूलों को मशीन में बारीक पीसकर पाउडर बनाया जाता है। 

इस पाउडर में कुछ मात्रा में चिपकन वाली लकड़ी का पाउडर मिलाकर इसकी परफ्यूमिंग की जाती है और फिर इसे गूंथकर पूरी तरह प्रदूषणमुक्त धूप व अगरबत्ती तैयार की जाती है।  

आम के आम, गुठलियों के दाम 

फूलों की छंटनी के बाद इन फूलों से बड़ी मात्रा में फूलों का हरा हिस्सा व पत्तियां निकलती हैं। यानी एक किलोग्राम पर मात्र सौ ग्राम पाउडर ही निकलता है। फूलों का हरा हिस्सा और पत्तियां भी बेकार नहीं जाते। इनसे वर्मी कंपोस्ट तैयार की जाती है। जहां फूलों की पंखुड़ियों से धूप व अगरबत्ती तैयार की जा रही है, वहीं इसके वेस्टेज से बनने वाली वर्मी कंपोस्ट की जैविक खेती में खासी मांग है। 

महिलाओं को मिल रहा रोजगार 

युवा इंजीनियर रोहित प्रताप की यह सोच जहां पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में मददगार साबित हो रही है, वहीं कई महिलाओं को इससे रोजगार भी मिल रहा है। महज दो माह में ही रोहित की कंपनी चार महिलाओं सहित छह लोगों को स्थायी रोजगार दे चुकी है। 

करीब तीन दर्जन महिलाओं को अस्थायी रोजगार मिल रहा है। ये महिलाएं कंपनी से कच्ची सामग्री ले जाकर घर में ही अपनी सहूलियत के हिसाब से धूप व अगरबत्ती तैयार करती हैं। उन्हें हर सप्ताह उनके काम का भुगतान किया जाता है। 

अन्य शहरों में देंगे योजना को विस्तार 

ओडिनि प्रोडक्ट प्रा.लिमिटेड के प्रबंध निदेशक रोहित प्रताप के अनुसार, पर्यावरण स्वच्छ रखने के लिए सबसे अच्छा तरीका है प्रदूषण फैलाने वाली वस्तुओं को रिसाइकिल किया जाए। मेरे काम कोअच्छा रिस्पांस मिल रहा है। भविष्य में हरिद्वार समेत अन्य शहरों में भी इस योजना को विस्तार दिया जाएगा। भविष्य में उत्तराखंड के चारों धाम में भी इसी तरह बेकार फूलों को रिसाइकिल करने का विचार है। 

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