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Uttarakhand Chunav: विधानसभा चुनाव पास, सियासी मोर्चे पर इस दोहरी चुनौती से जूझ रहे भाजपा-कांग्रेस

Uttarakhand Assembly Election 2022 प्रमुख सियासी दल भाजपा और कांग्रेस मैदान में उतर चुके हैं लेकिन उनकी परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। सियासी मोर्चे पर दोनों को घर के भीतर और बाहर जूझना पड़ रहा है।

By Raksha PanthriEdited By: Updated: Wed, 15 Sep 2021 09:37 PM (IST)
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विधानसभा चुनाव पास, सियासी मोर्चे पर इस दोहरी चुनौती से जूझ रहे भाजपा-कांग्रेस।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। Uttarakhand Assembly Election 2022 विधानसभा चुनाव का समय करीब आने के साथ ही राज्य में व्यापक वजूद रखने वाले प्रमुख सियासी दल भाजपा और कांग्रेस मैदान में उतर चुके हैं, लेकिन उनकी परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। सियासी मोर्चे पर दोनों को घर के भीतर और बाहर जूझना पड़ रहा है। कांग्रेस टूटन के साथ ही अंदरूनी गुटबाजी से परेशान है, जबकि भाजपा में अनुशासनहीनता के निरंतर आ रहे मामलों ने उसकी मुश्किलें बढ़ाई हुई हैं।

पहले बात सत्तारूढ़ भाजपा की। वर्ष 2017 में प्रचंड बहुमत से सत्तासीन हुई भाजपा के सामने अगले साल होने वाले चुनाव में ऐसा ही प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है। इसे देखते हुए पार्टी ने फील्डिंग सजानी भी शुरू कर दी है। एक निर्दलीय विधायक और एक कांग्रेस विधायक को भाजपा अपने पाले में खींच चुकी है। एक-दो विधायकों व कुछेक पूर्व विधायकों के भी पार्टी के संपर्क में होने का दावा किया जा रहा है। इसके अलावा चुनावी दृष्टि से सरकार से लेकर संगठन तक सक्रिय हो चुके हैं। जन आशीर्वाद रैलियों के आयोजन के साथ ही बूथ स्तर तक संगठन को सक्रिय किया गया है।

इस सबके बीच पार्टी में लगातार आ रहे अनुशासनहीनता के मामले परेशानी का सबब बने हैं। देहरादून जिले में ही ऋषिकेश, धर्मपुर, रायपुर समेत अन्य विधानसभा क्षेत्रों में ऐेसे मामले आ चुके हैं। इसके अलावा विधायक उमेश शर्मा काऊ व कार्यकर्त्ताओं के बीच रायपुर में सार्वजनिक रूप से हुए विवाद से पार्टी असहज हुई है। अब पार्टी के दो दिग्गजों पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के मध्य छिड़ी तकरार ने नई मुश्किल खड़ी कर दी है। 

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उधर, कांग्रेस को देखें तो वह भीतर और बाहर अधिक जूझ रही है। वर्ष 2016 में बड़े टूटन का दंश झेल चुकी कांग्रेस से अब उसका एक विधायक छिटककर भाजपा का दामन थाम चुका है। यही नहीं, पार्टी के कुछ नेता भी मुखर हैं। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय तो यह तक कह चुके हैं कि कांग्रेस में उनकी 17 बार अनदेखी हुई है। ऐसी ही नाराजगी कुछ अन्य नेताओं के बीच उभरने की चर्चा भी है। इससे कांग्रेस के सामने मुश्किलें ज्यादा बढ़ी हैं। बदली परिस्थितियों में कांग्रेस नेतृत्व को अंदरूनी कलह को थामना है तो चुनावी अभियान की धार देने की मुहिम भी तेज करनी है।

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