उत्तराखंड में विपक्ष के हाथ से फिसला किसानों का मुद्दा, इन दो जिलों में 16 विधानसभा सीटें हैं किसान बहुल
Uttarakhand Assembly Election 2022 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा से उत्तराखंड में भी एक प्रकार से कांग्रेस समेत विपक्ष के हाथों से किसानों का मुद्दा फिसल सा गया है। राज्य में खास तौर पर हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर हरिद्वार दो ऐसे जिले हैं जहां विधानसभा की 16 सीटें किसान बहुल हैं।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sat, 20 Nov 2021 10:43 AM (IST)
राज्य ब्यूरो, देहरादून। Uttarakhand Assembly Election 2022 लंबे समय से चर्चा का विषय बने कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा से उत्तराखंड में भी एक प्रकार से कांग्रेस समेत विपक्ष के हाथों से किसानों का मुद्दा फिसल सा गया है। राज्य में खास तौर पर हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर हरिद्वार दो ऐसे जिले हैं, जहां विधानसभा की 16 सीटें किसान बहुल हैं। इन जिलों में भाजपा व कांग्रेस के साथ ही अन्य दलों की मौजूदगी भी है। कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन के बाद इन जिलों में चुनौती सी खड़ी हो गई थी। विधानसभा चुनाव की दृष्टि से भाजपा को कृषि कानूनों को लेकर कहीं न कहीं किसानों के नाराज होने की शंका दिखने लगी थी, तो कांग्रेस को उम्मीद थी कि किसान सीधे तौर पर उसके पाले में ही आएंगे। इसी के अनुरूप कांग्रेस ने रणनीति तैयार की थी, जिसे अब उसे बदलना होगा।
उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में देखें तो 13 जिलों वाले इस राज्य में हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर जिलों में किसान आंदोलन की आंच दिखी है। ऊधमसिंह नगर में विधानसभा की रुद्रपुर सीट को छोड़ दें तो शेष आठ में किसान निर्णायक भूमिका में हैं। ऐसी ही स्थिति हरिद्वार जिले में है। इसके अलावा देहरादून की तीन और नैनीताल जिले की एक सीट पर आंशिक रूप से किसानों का दखल है। शेष जिलों में विरोध के सुर नजर नहीं आए।
विधानसभा की 70 में से 20 सीटों पर किसान आंदोलन के असर को देखते हुए भाजपा भी कहीं न कहीं आशंकित सी दिख रही थी। भाजपा के खेमे से पूर्व मंत्री यशपाल आर्य और उनके पुत्र पूर्व विधायक संजीव आर्य की कांग्रेस में घर वापसी को इससे जोड़कर देखा जा सकता है। इस बीच कांग्रेस समेत विपक्ष ने ऊधमसिंह नगर व हरिद्वार जिलों में किसान आंदोलन को केंद्र में रखकर चुनावी रणनीति अख्तियार की। वह आशान्वित था कि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जीत का बड़ा मंत्र हाथ लग गया है।
कांग्रेस की चुनावी रणनीति किसानों का लाभ उठाने पर केंद्रित थी। उसे लगा कि चुनाव से पहले उसे मजबूत हथियार हाथ लगा है, लेकिन ऐन वक्त पर प्रधानमंत्री की कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा से उसके समीकरण गड़बड़ा गए हैं। जाहिर है कि उसे अब नई रणनीति के साथ मैदान में उतरना होगा, क्योंकि कृषि कानूनों की वापसी के बाद यह मुद्दा कहीं न कहीं खत्म सा हो गया है। अब संभव है कि कांग्रेस समेत विपक्ष किसी और बहाने से किसानों को अपनी ओर खींचने की कोशिश करेगा।
पूर्व सीएम और प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत ने कहा, तीन काले कृषि कानून किसानों का गला घोंट रहे हैं, जिन्हें वापस लिया गया है। यह किसानों के संघर्ष की जीत है, उन किसानों की जीत है, जिन्होंने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया। यह लोकतंत्र की भी जीत है, क्योंकि सत्ता का अहंकार जनता के संघर्ष के सामने झुका है। हम संसद में प्रस्ताव के जरिये इन कानूनों को रद कराने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
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