टीम जूझने को तैयार, लेकिन कप्तान मैदान से बाहर
कोविड के साए में विधानसभा का सत्र नौ दिन बाद शुरू हो रहा है। दो गज की दूरी रखनी है तो विधानसभा के छोटे मंडप में 71 विधायकों को बिठाना मुमकिन नहीं।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 14 Sep 2020 01:08 PM (IST)
देहरादून, विकास धूलिया। कोविड के साए में विधानसभा का सत्र नौ दिन बाद शुरू हो रहा है। दो गज की दूरी रखनी है तो विधानसभा के छोटे मंडप में 71 विधायकों को बिठाना मुमकिन नहीं। लंबी माथापच्ची और तमाम विकल्पों पर मंथन के बाद तय किया गया कि मंडप के अलावा दर्शक दीर्घा, मीडिया गैलरी में भी विधायकों को बिठाने की व्यवस्था होगी। विधानसभा सचिवालय की कोशिश है कि ज्यादातर विधायक वर्चुअल माध्यम से सत्र की कार्यवाही में शिरकत करें। 65 वर्ष से ज्यादा उम्र के 12 विधायकों से तो कम से कम यही अपेक्षा है। अब दिक्कत यह पैदा हो गई है कि इनमें नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश भी शामिल हैं। अगर टीम का कप्तान ही मैदान पर मौजूद न हो तो प्रतिद्वंद्वी पर हमले में धार कहां से आएगी। उप नेता पर भरोसा नहीं, वह तो दूसरे खेमे के हैं। सत्तारूढ़ भाजपा इस पर बगैर टिप्पणी खामोशी से मुस्करा रही है।
कूलर न एयर कंडीशनर, गुस्सा तो आना ही था
उत्तराखंड के वरिष्ठ सियासतदां में शुमार और कांग्रेस विधायक दल की नेता इंदिरा हृदयेश के तेवरों से यूं तो हर कोई वाकिफ है, लेकिन ऐसा पहली दफा हुआ कि उनकी तल्खी का शिकार सार्वजनिक रूप से प्रतिद्वंद्वी भाजपा नहीं, अपनी ही पार्टी के एक नेता को बनना पड़ा। हाल ही में अपने चुनाव क्षेत्र में पार्टी के एक कार्यक्रम के दौरान धूप में कूलर, एयर कंडीशनर की व्यवस्था न होने से वह इस कदर खफा हो गईं, कि भूल ही गईं कि सामने मीडिया के कैमरे चल रहे हैं। आयोजक को ऐसी फटकार लगाई कि जनाब से कुछ बोलते नहीं बना। मैडम ने ताकीद की, पदाधिकारी हो तो पद की गरिमा रखना भी सीखो। बगल में पीसीसी चीफ प्रीतम बैठे थे, हमेशा की तरह, बेमतलब मुंह न खोलने की मुद्रा में। शायद यही वजह रही कि इंदिराजी को इतना गुस्सा आया। मुखिया बगल में और कार्यक्रम में अव्यवस्था का बोलबाला।
आलाकमान का एक तीर, कई कलेजों को गया चीरकांग्रेस महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि कम से कम उत्तराखंड में तो उनके राजनैतिक चातुर्य का पार्टी आलाकमान के पास कोई विकल्प नहीं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी शिकस्त और सीएम रहते हुए खुद दो-दो सीटों पर मात के बाद उनकी अपनी पार्टी के ही नेताओं को लगा कि अब तो हरदा के दिन लद गए, मगर अगले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वह कांग्रेस का चेहरा बनकर फिर सामने आ खड़े हुए। कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें न केवल सीडब्ल्यूसी में बरकरार रखा, बल्कि असम की बजाए पंजाब जैसे महत्वपूर्ण और बड़े सूबे का प्रभार भी सौंप दिया। कहा तो यह भी जा रहा है कि उत्तराखंड से अनुग्रह नारायण सिंह की विदाई भी हरदा के बढ़ते सियासी कद का ही नतीजा है। सच हरदा ही बता सकते हैं, लेकिन तजुर्बेकार सियासतदां हैं, ऐसा वह करेंगे नहीं।
यह भी पढ़ें: आम आदमी पार्टी का आरोप, कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए राज्य सरकार फेलसाहब हैं सरकारी राशन पर जीमने के परमिट होल्डरकोविड ने देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया, अपना सूबा भी अछूता नहीं। खर्चों में कटौती सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता। आनन-फानन एक आदेश जारी हुआ। महकमों में रिटायरमेंट के बाद किसी अफसर या कर्मचारी की पुनॢनयुक्ति न की जाए। केवल विशेषज्ञता वाले पदों को इससे अलग रखा गया। अब शासन को इस आदेश पर दिखाते हैं आईना। उत्तराखंड को अलग राज्य बने अब 20 साल होने जा रहे हैं, 16 मुख्य सचिव बन चुके हैं। शायद ही इनमें कोई अपवाद हो, जिसे बड़े पद पर, मसलन मुख्य सूचना आयुक्त, राज्य निर्वाचन आयुक्त, अध्यक्ष विद्युत नियामक बोर्ड जैसी संस्थाओं में दोबारा मलाईदार ओहदा न मिला हो। ये तो छोड़िए, तमाम रिटायर आइएएस भी अपनी सेवा समाप्त होने के बाद सरकारी राशन पर जीम रहे हैं। हां, यह बात जरूर है कि आइएएस होने के नाते विशेषज्ञ होने का तमगा तो है ही इनके पास। किसकी मजाल, जो इन्हें छूकर दिखाए।
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