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घातक संक्रमण है Black Fungus, लगातार बढ़ रहे मामले; AIIMS के डॉक्टरों से जानें बचाव और सावधानियां

Black Fungus Infection कोरोना महामारी के बीच म्यूकोर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) एक दोहरी चुनौती के रूप में सामने आया है। एंजियोइनवेसिव फंगल अथवा ब्लैक फंगल एक घातक संक्रमण है। मगर चिकित्सकों का मानना है कि इससे घबराने की नहीं बल्कि सही समय पर जागरूक होने की जरूरत है।

By Raksha PanthriEdited By: Updated: Wed, 19 May 2021 10:48 PM (IST)
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घातक संक्रमण है Black Fungus, लगातार बढ़ रहे मामले।
जागरण संवाददाता, ऋषिकेश। Black Fungus Infection कोरोना महामारी के बीच म्यूकोर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) एक दोहरी चुनौती के रूप में सामने आया है। एंजियोइनवेसिव फंगल अथवा ब्लैक फंगल एक घातक संक्रमण है। मगर, चिकित्सकों का मानना है कि इससे घबराने की नहीं, बल्कि सही समय पर जागरूक होने और लक्षण दिखने पर उपचार शुरू कराने की आवश्यकता है। एंजियोइनवेसिव जिसे ब्लैक फंगल के नाम से जाना जा रहा है, इन दिनों तेजी से अपना प्रभाव दिखा रहा है। उत्तराखंड में ही अब तक ब्लैक फंगस से दो मौतें हो चुकी हैं, जबकि 30 से अधिक सक्रिय मामले सामने आए हैं। 

एम्स के विशेषज्ञ चिकित्सकों की मानें तो इस बीमारी के कुछ सामान्य लक्षण शुरूआत में ही नजर आने लगते हैं। अगर बिना लापरवाही बरते शुरुआती दौर में ही इनपर गौर कर लिया जाए और चिकित्सकों की राय ली जाए तो ब्लैक फंगस के घातक संक्रमण से बचा जा सकता है। एम्स ऋषिकेश के ईएनटी विशेषज्ञ सर्जन डॉ. अमित त्यागी ने बताया कि तेज बुखार, नाक बंद होना, सिर दर्द, आंखों में दर्द, दृष्टि क्षमता क्षीण होना, आंखों के पास लालिमा होना, नाक से खून आना, नाक के भीतर कालापन आना, दांतों का ढीला होना, जबड़े में दिक्कत होना, छाती में दर्द होना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। 

उन्होंने बताया कि यदि कोविड-19 का वह मरीज जिसका पिछले छह सप्ताह से उपचार चल रहा हो, अनियंत्रित मधुमेह मेलिटस, क्रोनिक ग्रेनुलोमेटस रोग, एचआईवी, एड्स या प्राथमिक इम्युनोडेफिशिएंसी स्टेटस की समस्या हो तो इस बीमारी का जोखिम अधिक बढ़ जाता है। इसके अलावा स्टेरॉयड द्वारा इम्यूनोसप्रेशन का उपयोग (किसी भी खुराक का उपयोग तीन सप्ताह या उच्च खुराक एक सप्ताह के लिए), अन्य इम्युनोमोड्यूलेटर या प्रत्यारोपण के साथ इस्तेमाल की जाने वाली चिकित्सा में भी इस संक्रमण के बढ़ने का खतरा बन जाता है। लंबे समय तक न्यूट्रोपेनिया, ट्रॉमा, बर्न, ड्रग एब्यूजर्स, लंबे समय तक आईसीयू में रहना, घातक पोस्ट ट्रांसप्लांट, वोरिकोनाजोल थैरेपी, डेफेरोक्सामाइन या अन्य आयरन ओवरलोडिंग थैरेपी, दूषित चिपकने वाली धूल, लकड़ी का बुरादा, भवन निर्माण आदि के संपर्क में आने पर भी यह संक्रमण फैल सकता है।

बचाव और सावधानियां

-अपने आस-पास के पर्यावरण को स्वच्छ रखें। 

-ब्रेड, फलों, सब्जियों, मिट्टी, खाद और मल जैसे सड़ने वाले कार्बनिक पदार्थों का उपयोग सावधानी से करें। 

-हायपरग्लेमिया को नियंत्रित रखें। 

-स्टेरॉयड थैरेपी की आवश्यकता वाले कोविड-19 रोगियों में ग्लूकोज की निगरानी करें। 

-स्टेरॉयड के उपयोग के लिए सही समय, सही खुराक और सही अवधि का निर्धारण करें। 

-ऑक्सीजन थैरेपी के दौरान ह्यूमिडिफायर के लिए स्वच्छ व शुद्ध जल का उपयोग करें।

-एंटीबायोटिक्स व एंटीफंगल का प्रयोग केवल तभी करें, जब चिकित्सक परामर्श दें। 

-बंद नाक वाले सभी मामलों को बैक्टीरियल साइनसिसिस मानकर नजरअंदाज न करें। 

-म्यूकोर के लक्षण महसूस होने पर मेडिसिन, ईएनटी और नेत्र विशेषज्ञों को दिखाएं।

ब्लैक फंगस के निदान के लिए एम्स ने तैयार किया अलग वार्ड अत्यधिक संक्रामक बीमारी म्यूकोर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) के निदान के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश में अलग से एक विशेष वार्ड स्थापित किया गया है। निदेशक एम्स पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि म्यूकोर माइकोसिस एक घातक एंजियोइनवेसिव फंगल संक्रमण है, जो मुख्य रूप से नाक के माध्यम से हमारी श्वास नली में प्रवेश करता है। मगर, इससे घबराने की नहीं बल्कि सही समय पर इलाज शुरू कराने की आवश्यकता है। 

संस्थान के नोडल ऑफिसर कोविड डॉ. पीके पंडा ने बताया कि म्यूकोर माइकोसिस के उपचार के लिए गठित 15 सदस्यीय चिकित्सकीय दल इस बीमारी का इलाज, रोकथाम और आम लोगों को जागरूक करने का कार्य करेगी। टीम के हेड और ईएनटी के विशेषज्ञ सर्जन डॉ. अमित त्यागी ने बताया कि म्यूकोर माइकोसिस के रोगियों के इलाज के लिए अलग से एक म्यूकर वार्ड बनाया गया है, जिसमें सीसीयू बेड, एचडीयू बेड और अन्य आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं।

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