एसीसी की ग्रेजुएशन सेरेमनी में उत्तराखंड के लाल ने कर दिया कमाल, तीन पदक जीते
सैन्य अफसर बनने की तरफ कदम बढ़ाने वाले 58 युवाओं में पांच कैडेट उत्तराखंड से हैं। यही नहीं प्रदेश के काशीपुर निवासी धीरज गुणवंत ने छह में से तीन पदक अपने नाम किए हैं।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 30 Nov 2019 08:33 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए देवभूमि के वीर सपूत हमेशा आगे रहे हैं। यही कारण है कि आइएमए से पासआउट होने वाला हर 12वां अधिकारी उत्तराखंड से है। वहीं भारतीय सेना का हर पांचवां जवान भी इसी वीरभूमि में जन्मा है। आइएमए में आयोजित एसीसी की ग्रेजुएशन सेरेमनी में भी इस समृद्ध सैन्य विरासत की झलक साफ दिखी।
सैन्य अफसर बनने की तरफ कदम बढ़ाने वाले 58 युवाओं में पांच कैडेट उत्तराखंड से हैं। यही नहीं प्रदेश के काशीपुर निवासी धीरज गुणवंत ने छह में से तीन पदक अपने नाम किए हैं। उन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ गोल्ड मेडल के साथ विज्ञान व सर्विस सब्जेक्ट में कमांडेंट सिल्वर मेडल भी मिला। धीरज ने बताया कि वह परिवार के पहले शख्स हैं, जो सेना में अफसर बनने जा रहे हैं। उनके पिता देवेंद्र गुणवंत काशीपुर में ही जनरल स्टोर चलाते हैं। बड़ा भाई प्रवीण इंजीनियर है। धीरज की प्रारंभिक शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय ताड़ीखेत अल्मोड़ा से हुई। वह बताते हैं कि फौजी वर्दी की ललक उनमें शुरू से थी। परिस्थितियां ऐसी बनीं कि 2010 में बतौर एयरमैन भर्ती होना पड़ा। लेकिन, लगन और कड़े परिश्रम के बूते आज वह अपनी मंजिल के करीब हैं। अगले साल वह आइएमए से अंतिम पग भर सैन्य अफसर बन जाएंगे।
परिवार की परंपरा पर बढ़ाया पग
जयपुर (राजस्थान) के संदीप सिंह शेखावत ने अपने परिवार की परंपरा पर पग बढ़ाया है। उनके पिता धर्मपाल सिंह सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हैं। दादा नत्थू सिंह फौज में हवलदार थे। वहीं, परदादा शैतान सिंह द्वितीय विश्व युद्ध के शहीद। इस तरह वह सेना में चौथी पीढ़ी हैं। उनका छोटा भाई अजय भी फौज में हवलदार है। वह अंतरराष्ट्रीय वेट लिफ्टर हैं।
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करत-करत अभ्यास ते..कहते हैं कि कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती। यह सच कर दिखाया है रायबरेली उप्र के राहुल वर्मा ने। उन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ सिल्वर मेडल मिला है। उनके पिता रामकेशव वर्मा वायुसेना में जूनियर वारंट अफसर हैं। राहुल ने बताया कि उन्होंने तीन बार एनडीए की परीक्षा दी, लेकिन सफल नहीं हुए। टेक्निकल एंट्री स्कीम के तहत भी प्रयास किया। यहां भी असफलता हाथ लगी। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वर्ष 2013 में वह एयरफोर्स में भर्ती हो गए और अब सैन्य अफसर बनने की राह पर हैं।
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