उत्तराखंड मुख्यमंत्री का कहना है कि देवभूमि से निकली समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) अन्य राज्यों के लिए प्रेरणा का काम करेगी और वे भी इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। देश में इसके लिए बेहतर वातावरण का निर्माण होगा। समान नागरिक संहिता को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से दैनिक जागरण (Dainik Jagran) के राज्य ब्यूरो प्रमुख विकास धूलिया ने लंबी बातचीत की।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से बातचीत के प्रमुख अंश
समान नागरिक संहिता कानून लागू करने वाला उत्तराखंड पहला राज्य बनने जा रहा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा इस विषय को किस तरह मतदाता तक ले जाएगी?
देखिये, समान नागरिक संहिता हमारा उत्तराखंड की जनता के साथ वर्ष 2022 के चुनाव का वादा था, हमारा संकल्प था, यह पूरा हुआ। वर्ष 2022 में जब हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव में जा रहे थे, तब हमने कहा था कि सत्ता में आएंगे, तो समान नागरिक संहिता लाएंगे। इसके लिए वृहद स्तर पर काम हुआ। उत्तराखंड की विधानसभा को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। विधेयक पारित हुआ और अब राष्ट्रपति ने भी इस विधेयक को अनुमोदन दे दिया है। अब इसे लागू करने की तैयारी हो रही है।
उत्तराखंड की जनता ने इस पर हमें जनादेश दिया है। हम जो कहते हैं, करते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जो भी संकल्प जनता के सामने रखे गए, पूरे हो रहे हैं। लोकसभा चुनाव में मतदाताओं तक इसे ले जाने की हमें कहां आवश्यकता है, देश का मतदाता स्वयं बहुत जागरूक है।
कांग्रेस उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का कोई खास विरोध नहीं कर पाई, न सदन में और न सदन के बाहर, लेकिन अन्य राज्यों में विरोध कर रही है। कांग्रेस का विरोध भाजपा पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा या नकारात्मक?
कांग्रेस स्वयं इस मामले में भ्रमित है। वे विरोध भी करते हैं और विरोध न करने की बात भी कहते है। जब हम विधेयक लाए, तो हमने कहा था कि समर्थन करिये, क्योंकि विधेयक किसी के अहित के लिए नहीं, सबके हित के लिए लाया गया है। मातृशक्ति के सशक्तीकरण के लिए लाया गया है। सबको समान अधिकार मिलें, कुरीतियां समाप्त हों, इसलिए लाया गया है।
लंबे समय से इसकी मांग थी। जब भारत का संविधान बन रहा था, तब बाबा साहेब डा भीमराव आंबेडकर ने इसका प्रविधान किया था। अनुच्छेद 44 में इसका उल्लेख है। राज्य इसे लागू कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी सायरा बानो, केशवानंद भारती समेत अन्य के केस में राज्यों से कहा है कि वे अपने हिसाब से इसे लागू कर सकते हैं।
आपके मस्तिष्क में समान नागरिक संहिता का विचार आया कैसे, यह आपका स्वयं का निर्णय था या फिर पार्टी हाईकमान का सुझाव?
देश के अंदर लंबे समय से इसकी मांग उठती रही है। हमारी पार्टी में जनसंघ के जमाने से देश में एक विधान, एक निशान, और एक प्रधान की अवधारणा पर काम होता आया है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में आज एक भारत-श्रेष्ठ भारत की कल्पना हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व पार्टी के मार्गदर्शन में चुनाव में गए थे। यह पार्टी का विचार है और जनता ने इसे पूर्ण समर्थन दिया है।
समान नागरिक संहिता को लेकर देशभर में जहां सवाल उठेंगे, वस्तुस्थिति बताने आप क्या वहां का दौरा करेंगे?
देखिये, एक बात मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि जो भी भ्रांतियां हैं, वे दूर होनी चाहिए। यह किसी को नुकसान पहुंचाने वाला विधेयक या कानून नहीं है। मातृशक्ति, बुजुर्गों और यहां तक कि लिव इन रिलेशनशिप में जो बच्चे होते हैं, उनकी भी इसमें सुरक्षा है। जो कुरीतियां हैं, जिनसे आत्मबल, आत्मसम्मान गिरता था, विशेषकर मुस्लिम महिलाओं का, उन्हें इससे यह कानून छुटकारा दिलाएगा। निश्चित रूप से यह बात सभी तक जानी चाहिए कि इस प्रकार की जो भ्रांतियां हैं, जैसे ही कानून लागू हो जाएगा, दूर हो जाएंगी। पार्टी को जहां भी मेरी आवश्यकता होगी, मैं जाऊंगा।
उत्तराखंड और अन्य राज्यों में महिला मतदाताओं पर समान नागरिक संहिता का क्या प्रभाव पड़ते आप देख रहे हैं?
समान नागरिक संहिता का विधेयक पारित होने के बाद मैं राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में गया हूं। वहां बड़ी संख्या में मुस्लिम बहनें व अन्य मातृशक्ति हजारों की संख्या में आईं और इस विधेयक के पारित होने पर हमें प्रोत्साहित किया।
WhatsApp पर हमसे जुड़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.
समान नागरिक संहिता लागू होने का सर्वाधिक लाभ अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को होगा, कई कुरीतियों पर रोक लगेगी। चुनाव में क्या उनका रुझान भाजपा की ओर होगा?
सबके सम्मान, समान अधिकार और आत्मसम्मान को बढ़ाने के लिए हम यह कानून लेकर आए हैं। इस कानून से मुस्लिम महिलाओं को आत्मबल, आत्मसम्मान मिलेगा, उन्हें कुरीतियों से छुटकारा मिलेगा। बुजुर्गों को इसमें सुरक्षा मिलेगी, तो मातृशक्ति का भी सशक्तीकरण होगा। बच्चों के भविष्य को भी सुरक्षित करने का यह काम करेगा।
भाजपा शासित अन्य राज्य क्या आपसे इस विषय में प्रेरणा लेने जा रहे हैं, जैसे असम ने पहल की है?
सभी राज्यों की अपनी-अपनी व्यवस्था, अपनी-अपनी आवश्यकताएं हैं। हमने अपने राज्य की आवश्यकता के अनुरूप कार्य किया है। हमारी अपेक्षा तो यही रहेगी कि आने वाले समय में सभी लोग इस दिशा में आगे बढ़ें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर वह कार्य करते हैं, जिसकी देश को आवश्यकता होती है।
यह भी पढ़ें- Sadhvi Rithambara: ‘राममंदिर आंदोलन मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा संघर्ष…', दैनिक जागरण से बातचीत में साध्वी ऋतंभरा ने बेबाकी से दिए जवाब
जिस तरह आपने वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में समान नागरिक संहिता को मुद्दा बनाया था, क्या भाजपा इस लोकसभा चुनाव में इसे राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा बनाएगी?
हमारी पार्टी का तो यह हमेशा से विषय रहा है कि एक समान कानून देश में लागू होना चाहिए। सभी मुख्य मुद्दों पर काम हो रहा है। देवभूमि उत्तराखंड ने इसकी शुरुआत कर दी है। निश्चित रूप से आने वाले समय में देशभर में इस दिशा में काम होगा।
भाजपा ने इस पहल के लिए देवभूमि उत्तराखंड को ही चुना, इसे संयोग कहें या सुविचारित रणनीति?
सच तो यह है कि भारतीय संस्कृति के अनुरूप समान नागरिक संहिता की शुरुआत के लिए देवभूमि उत्तराखंड सबसे उचित चयन है। समान नागरिक संहिता पार्टी की वैचारिक एवं सैद्धांतिक प्रतिबद्धता भी है। इसीलिए राजनीतिक लाभ-हानि की न सोच भाजपा शुरुआत से ही इसकी पक्षधर रही है और इस कानून को लागू करने के लिए जनजागरण करती आई है। हमने तो सभी राजनीतिक दलों से भी आग्रह किया था कि वे दलगत भावना से अलग हटकर राज्यवासियों की भावना को ध्यान में रख विधानसभा में समान नागरिक संहिता कानून पर सकारात्मक चर्चा करें।
उत्तराखंड में यह कानून लागू होने के बाद सामाजिक सौहार्द्र पर इसका कितना प्रभाव आप देख रहे हैं?
समान नागरिक संहिता सभी धर्मों को मानने वाले व्यक्तियों के लिए समान कानून की अवधारणा का मूर्त रूप है। सभी के लिए समान कानून होने से यह सामाजिक समरसता बढ़ाएगा। यही नहीं, इसके लागू होने से लैंगिक समानता कायम होगी और मजबूत एकीकृत समाज के निर्माण की ओर हम आगे बढ़ेंगे।
उत्तराखंड के संदर्भ में यह कानून इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि हमारे राज्य में भौगोलिक और सांस्कृतिक भिन्नताएं हैं। यहां विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। इस दृष्टिकोण से देखें तो समान नागरिक संहिता कानून समान कानूनी ढांचा बनाकर राष्ट्रीय एकता की भावना को मजबूत करेगा।
राज्य की जनजातियों को इस कानून के दायरे से बाहर रखने का क्या कोई विशेष मंतव्य रहा है?
उत्तराखंड का जनजातीय समाज समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रहेगा। जनजातीय समाज की संस्कृति और परपंराओं को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से ऐसा किया गया है। राज्य में जनजातियों की जनसंख्या काफी कम है। उनकी विशिष्ट पहचान, परंपराओं और बेहद कम जनसंख्या को देखते हुए ऐसा किया जाना आवश्यक भी है।
इसे मुस्लिम समाज विरोधी कानून के रूप में भी प्रचारित किया जा रहा है। कुछ कह रहे हैं कि यह धार्मिक स्वतंत्रता में बाधक बन सकता है?
ऐसा कहना, सोचना नितांत अनुचित है। बात किसी भी धर्म की हो, कुप्रथाओं व कुरीतियों को कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता। इसीलिए इस कानून में हर स्तर पर भेदभाव खत्म करने के साथ ही सभी के लिए समान कानून की बात कही गई है। तमाम मामलों में कानून का उल्लंघन करने की दशा में सजा और जुर्माना, दोनों के प्रविधान किया गया है। इससे किसी भी व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता में कहीं भी कोई बाधा उत्पन्न नहीं होगी।
सभी को अपने-अपने धर्म के पालन की पूरी स्वतंत्रता है, लेकिन सिविल कानून सभी के लिए एक समान होंगे। यह कानून किसी के विरुद्ध नहीं है। महिलाओं को कुरीतियों और रूढि़वादी प्रथाओं से दूर करते हुए उनकी सर्वांगीण उन्नति में सहायता मिलेगी। सभी समुदायों की महिलाओं को अगर समान अधिकार मिलते हैं तो इसमें गलत क्या है।
सरकार ने वर्ष 2025 तक उत्तराखंड को श्रेष्ठ राज्य बनाने का संकल्प लिया है, क्या इसमें समान नागरिक संहिता की भी भूमिका रहेगी?
हमारा विकल्प रहित संकल्प है कि उत्तराखंड जब अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूर्ण करे तो वह देश के श्रेष्ठ राज्यों की पांत में खड़ा हो। इसके लिए विभागवार योजनाएं बनाई गई हैं। जहां तक समान नागरिक संहिता का प्रश्न है, तो इसके लागू होने पर स्वाभाविक रूप से इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी।
समान नागरिक संहिता में प्रत्येक धर्म, जाति, क्षेत्र व लिंग के आधार पर भेद करने वाले व्यक्तिगत नागरिक मामलों से संबंधित कानूनों में एकरूपता लाई गई है। जब सभी के लिए कानून समान होगा तो राज्य के चहुंमुखी विकास में सभी वर्गों की भागीदारी भी समान रूप से सुनिश्चित होगी। ऐसे में उत्तराखंड को श्रेष्ठ राज्य बनाने की मुहिम को गति मिलेगी। इसमें समान नागरिक संहिता की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी, इसमें कोई संदेह नहीं है।
आमजन, विशेषकर महिलाओं को समान नागरिक संहिता में उल्लिखित कानूनों व प्रविधानों की जानकारी मिल सके, इसके लिए सरकार की क्या कार्ययोजना है?
जैसा कि मैंने बताया कि समान नागरिक संहिता विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल चुकी है। समान नागरिक संहिता में महिला व पुरुष के अधिकारों को समान किया गया है। महिला अधिकार सुरक्षित किए गए हैं। संहिता से जुड़े विभिन्न विषयों की नियमावलियोंं का प्रारूप तय करने के लिए समिति गठित की गई है। वह जल्द ही अपनी रिपोर्ट देगी। इसके पश्चात नियमावलियों को विधिक कसौटी पर परखकर कानून लागू किया जाएगा।
महिलाओं समेत आमजन को संहिता में उल्लिखित कानूनों व प्रविधानों की जानकारी आसानी से मिल सके, इसके लिए मशीनरी को निर्देशित किया गया है।
यह भी पढ़ें- PM Modi Interview: 'मैं दिल जीतने के लिए काम करता हूं', दैनिक जागरण से बातचीत में लोकसभा चुनाव और राम मंदिर पर पीएम ने कही खास बात