Move to Jagran APP

Uttarakhand Chunav 2022: हरक सिंह रावत के लिए हरदा का दिल जीतना चुनाव जीतने से बड़ी चुनौती

हरक सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनकी चूर-चूर होती विश्वसनीयता को फिर से स्थापित करना है। उन्होंने जो कांग्रेस में किया लगभग वही भाजपा में भी किया। अब वह यह सब फिर नहीं करेंगे इस बात से चोट खाया हरीश रावत खेमा आशंकित है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 19 Jan 2022 11:38 AM (IST)
Hero Image
कांग्रेस में हरक सिंह रावत (बाएं) की एंट्री हरीश रावत विरोधी सक्रिय धड़ों को ही देगी खुराक। फाइल
देहरादून, कुशल कोठियाल। राजनीति में अक्सर तिकड़म काम कर जाती है। तिकड़म की राजनीति करते-करते कई व्यक्तियों ने बड़े मुकाम हासिल किए। तिकड़म की राजनीति कई बार कैसे चोट दे जाती है, इसका ताजा उदाहरण हरक सिंह रावत हैं। पिछले काफी समय से भाजपा संगठन व सरकार का राजनीतिक भयादोहन कर रहे हरक सिंह रावत से भाजपा ने मुक्ति पा ही ली। पहले निर्णय लिया होता तो पार्टी अनुशासन के नंबर बढ़ते, लेकिन पानी सिर तक आने के बाद की गई कार्रवाई तो मजबूरी ही कही जाएगी। हां, यह जरूर है कि भाजपा ने हरक सिंह की रणनीति पर काफी हद तक पानी फेर दिया।

भाजपा ने हरक सिंह के बतौर कैबिनेट मंत्री कांग्रेस में जाने व भाजपा को जोरदार झटका देने की रणनीति को रातों-रात बर्खास्तगी की कार्रवाई कर ध्वस्त कर दिया। इस कार्रवाई के कारण ही हरीश रावत हरक की एंट्री में पेच फंसाने की स्थिति में आए व हरक को दिल्ली में कांग्रेस के बुलावे का लंबा इंतजार करना पड़ा। अब हरक सिंह की आंखों में आंसू हैं व जुबान पर कांग्रेस के प्रति जी जान लगाने वाला समर्पण। वह हरीश रावत से एक नहीं सौ बार माफी मांगने को भी तैयार हैं।

हरक सिंह के स्वभाव व अतीत से परिचित लोग उनके आंसू व समर्पण को राजनीतिक दृष्टि से ही देखते-समझते हैं। वह अच्छी तरह जानते हैं कि कब, कहां और कितना रोना है व कितना समर्पण कहां और किस कीमत पर झोंकना है। भाजपा से बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद उनके लिए अपनी शर्तो के साथ कांग्रेस में जाना कुछ मुश्किल तो हुआ है, लेकिन प्रदेश कांग्रेस की प्रथम पंक्ति में खुद के लिए जगह बनाना उनके लिए कोई मुश्किल नहीं है। इस कहानी का एक और पहलू भी है। हरक सिंह के कांग्रेस प्रेम के बाद कांग्रेस में होने वाले घमासान व उसके फलितार्थ को समझदार कांग्रेसी अभी से आंकने लगे हैं।

उत्तराखंड में कांग्रेस का मुख्यमंत्री का अघोषित चेहरा हरीश रावत का हरक सिंह से पुराना बैर है। राज्य गठन के बाद से ही वह कांग्रेस में हरीश रावत विरोधी खेमे में सक्रिय रहे हैं। हरीश रावत के मुख्यमंत्रित्व काल में हरक सिंह ने नौ विधायकों सहित पार्टी तोड़ कर जो किया वह हरीश रावत भूले नहीं हैं। इस दौरान हुए स्टिंग आपरेशन को भी वह भुला नहीं पाए हैं। इसीलिए वह अब भी कह रहे हैं कि 2016 को भुलाया नहीं जा सकता है। वह लोकतंत्र के प्रति बड़ा अपराध था। हरक सिंह की भूमिका जगजाहिर थी। यह तय माना जा रहा है कि कांग्रेस में हरक की एंट्री हरीश विरोधी सक्रिय धड़ों को खुराक ही देगी। यह हरीश रावत अच्छी तरह जानते हैं।

हरक सिंह उत्तराखंड की राजनीतिक का एक ऐसा चेहरा है जिसका भाजपा व कांग्रेस में बराबर दखल रहा है। उन्होंने राजनीति की बारहखड़ी विद्यार्थी परिषद में पढ़ी, संघ में भी सक्रिय रहे। भाजपा से राजनीतिक जीवन शुरू किया। अनुशासनहीनता पर भाजपा से हटाए गए तो बसपा का दामन थाम लिया। बसपा से छुट्टी हुई तो कांग्रेस में जगह बनाई। प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्री के दावेदारों में उनका नाम गिना जाने लगा।

पिछली सरकार में हरीश रावत से इतनी भिड़ गई कि विजय बहुगुणा जैसे नेताओं के साथ भाजपा में आ गए। दलों की तरह वह चुनाव क्षेत्र भी बदलते रहे। इस बार भी वह जिस सीट (कोटद्वार) से चुनकर पांच साल मंत्री रहे, वह वहां से लड़ने को तैयार नहीं थे। भाजपा से वह कोटद्वार की जगह मनपंसद सीट के साथ ही अपनी पुत्रवधु अनुकृति गुंसाई के लिए लैंसडौन से टिकट चाहते थे। भाजपा उन्हें तो उनकी मनपसंद सीट देने को तैयार थी, लेकिन लैंसडौन से सिटिंग विधायक का टिकट काट कर उनकी पुत्रवधु को देने को राजी नहीं थी। पिछले कुछ दिनों से वह एक मित्र के लिए भी टिकट की मांग करने लगे थे।

जहां तक रूठने व पार्टी को दबाव में लाने की बात है तो वह भाजपा सरकार के गठन के साथ ही शुरू हो गया था। वह शुरुआत से ही प्रदेश सरकार को घेरते रहे हैं। जब पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बने तो वह फिर एकांतवास पर चले गए, किसी तरह हाईकमान ने मनाया। कैबिनेट में ज्यादा महत्वपूर्ण महकमा देकर उनका कद बढ़ाया गया। जितना महत्व मिलता रहा वह पार्टी व सरकार पर उतने हावी होते रहे। वह पिछली कैबिनेट में रूठ कर एकांतवास पर चले गए, चौबीस घंटे के मान-मनौवल के बाद वह मुख्यमंत्री आवास पहुंचे।

इस बार चुनाव टिकटों को लेकर पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में नहीं पहुंचे। जब भाजपा नेतृत्व को पता चला कि उनकी बात तो कांग्रेस में लौटने की चल रही है तो पार्टी ने उच्चस्तरीय विमर्श के बाद उनसे मुक्ति पाने का निर्णय ले ही लिया। अब हरक सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनकी चूर-चूर होती विश्वसनीयता को फिर से स्थापित करना है। उन्होंने जो कांग्रेस में किया लगभग वही भाजपा में भी किया। अब वह यह सब फिर नहीं करेंगे, इस बात से चोट खाया हरीश रावत खेमा आशंकित है। इसलिए हरक के लिए हरीश रावत (हरदा) का दिल जीतना चुनाव जीतने से बड़ी चुनौती है।

[राज्य संपादक, उत्तराखंड]

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।