अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय कांग्रेस सेवा दल में सक्रियता के दौरान लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे का विषय रहा हो या फिर वर्ष 2002 में उत्तराखंड में पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री न बनाए जाने का मामला, रावत ने आलाकमान के समक्ष अपनी तल्खी खुलकर प्रदर्शित की। ऐसा ही कुछ वर्ष 2012 में कांग्रेस के दूसरी बार उत्तराखंड में सत्ता में आने के बाद भी हुआ था।
राजनेता से अलग रावत के व्यक्तित्व का एक दिलचस्प पहलू यह है कि वह मौसमी फलों, सब्जियों और पहाड़ी पकवानों की दावत देने के शौकीन हैं।
उत्तराखंड की पांचों सीटों पर है गहरी पकड़
राजधानी देहरादून में उनकी ऐसी दावत राजनीतिक गलियारों में चर्चित रहती है। राज्य की पांचों सीटों पर गहरी पकड़ और समर्थक रखने वाले रावत का राष्ट्रीय राजनीति में पदार्पण वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव से हुआ। तब उन्होंने अल्मोड़ा सीट पर भाजपा के वरिष्ठ नेता डा. मुरली मनोहर जोशी को पराजित किया था।
राज्यसभा व उत्तराखंड विधानसभा के भी सदस्य रह चुके हरीश रावत छह महीने पहले तक हरिद्वार संसदीय सीट से टिकट के प्रबल दावेदार थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपने पुत्र वीरेंद्र रावत को प्रत्याशी बनाने के लिए कांग्रेस आलाकमान के समक्ष पूरा जोर लगा दिया और सफल भी रहे। अब उनका पूरा ध्यान वीरेंद्र के चुनाव अभियान पर केंद्रित है, जिसका नेतृत्व वह स्वयं कर रहे हैं।
पूर्व सीएम हरीश रावत की दैनिक जागरण से खास बातचीत
रावत अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते हैं और इंटरनेट मीडिया के तमाम प्लेटफार्म पर वह अत्यंत सक्रिय रहते हैं। पिछले कुछ सप्ताह के दौरान रावत के कुछ बयानों और इंटरनेट मीडिया पोस्ट ने राजनीतिक गलियारों में खासी हलचल मचाई। इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति और इशारों में दिए गए वक्तव्यों को लेकर दैनिक जागरण के उत्तराखंड के स्टेट ब्यूरो चीफ विकास धूलिया ने हरीश रावत से विस्तृत बातचीत की।
प्रस्तुत है इस बातचीत के प्रमुख अंश :
इस लोकसभा चुनाव में विभिन्न राज्यों में कांग्रेस आइएनडीआइए गठबंधन में शामिल दलों के सामने नतमस्तक दिख रही है। सबसे पुरानी पार्टी आज सीट बंटवारे में याचक बनकर क्यों खड़ी है?
एक बड़े राजनीतिक दल के रूप में हमारी भूमिका है कि हम शेष राजनीतिक दलों को अपने साथ लेकर चलें। हम यथासंभव कोशिश कर रहे हैं कि सहयोगी दलों की भावना का सम्मान करें। कोई इसे कांग्रेस की कमजोरी समझ सकता है, कोई इसे कांग्रेस की शक्ति समझता है। विनम्रता भी शक्ति होती है। देश की राजनीति कांग्रेस से अपेक्षा करती है कि दूसरे राजनीतिक दलों को अपने साथ खड़ा करने के लिए कुछ दबाव झेले।
पिछले चुनाव में प्रियंका गांधी वाड्रा ने नारा दिया था, लड़की हूं, लड़ सकती हूं, लेकिन उत्तराखंड में तो कांग्रेस ने एक भी महिला को प्रत्याशी नहीं बनाया, क्यों?
-यह चुनाव करो या मरो की स्थिति वाला है। भाजपा ने इस तरीके की पेशबंदी कर दी है कि आइएनडीआइए को भी जीतने को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी पड़ रही है। हम पहले संतुलन रखते थे। जातीय समीकरण, क्षेत्रीय समीकरण, लैंगिक समीकरण साधते थे। अब इस बात को प्राथमिकता देनी पड़ रही है कि जीत कौन सकता है, संसाधन कौन झोंक सकता है। पार्टी के स्रोत सूख गए हैं या उन्हें सीज कर दिया गया है। जो स्थानीय स्तर से संसाधन जुटा सकते हैं, ऐसे लोगों का चयन करना पड़ा।
आपने यह भी कहा कि आपके समर्थकों-साथियों को प्रलोभन दिए जा रहे हैं। किस तरह के प्रलोभन?
नाना प्रकार के दबाव हैं। कुछ लोगों के विषय में जानता हूं कि वे केवल इसलिए कांग्रेस छोड़ने को बाध्य हुए हैं, क्योंकि किसी की जमीन का विषय है, किसी के परिवार के लोगों के तबादले की धमकी दी जा रही है। ठेकेदारी के काम बर्बाद करने की धमकी दी जा रही है। कई तरीके के दबाव डाले जा रहे हैं। जो भाजपा में सम्मलित हुए हैं, वे किसी न किसी मजबूरी में भाजपा के साथ गए।
आपको यह अंदेशा है कि भितरघात के शिकार हो सकते हैं। कौन लोग हैं ये भितरघाती?
भितरघात की आशंका उन लोगों से है, जो भाजपा से बातचीत होते-होते भी वहां नहीं जा पा रहे हैं। पता चला है कि उन्हें अब भाजपा भितरघात के लिए प्रेरित कर रही है। उसके लिए प्रोत्साहन व प्रलोभन दे रही है। हमें एक राजनीतिक धूर्तता से सामना करना पड़ रहा है। इसलिए अपने लोगों से कहा है कि भितरघात का सामना करने के लिए भी तैयार रहें।
आपने हाल में कहा कि कांग्रेस में सुस्ती है, कार्यकर्ता आलस्य में हैं। यह बात आपने उत्तराखंड के संदर्भ में कही या पूरे देश के और इस स्थिति के कारण क्या हैं?
यूं तो उत्तराखंड के संदर्भ में कही, मगर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी मैं यह महसूस करता हूं कि जितनी मेहनत हमारा शीर्ष नेतृत्व कर रहा है, उसकी तुलना में हमारा बीच का नेतृत्व सक्रिय नहीं है, जितनी उससे अपेक्षा है। हम कार्यकर्ताओं के सामने उदाहरण बन सकते हैं, यदि हम उनके अंदर यह भावना पैदा करें कि हमने जो स्थान खोया है, वह वापस लेना है। इससे कार्यकर्ता भी ग्रास रूट लेवल पर वह स्थान लेने के लिए संघर्ष करेगा।
आपने इंटरनेट मीडिया में लिखा कि यह चुनाव तय करेगा कि हरीश रावत को काम करना है या विश्राम, क्या राजनीति से संन्यास लेने जा रहे हैं?
देखिये, इस चुनाव में हमारे समक्ष बहुत-सी चुनौतियां हैं। जिन सिद्धांतों के लिए, सवालों के लिए जिंदगी भर संघर्ष करते रहे हैं, उसे आगे बढ़ाना है। उत्तराखंडियत के सामने चुनौती, गैरसैंणियत के नाम पर चुनौती। जब पहाड़ की भूमि ही नहीं बच रही है तो संस्कृति कैसे बचेगी। खेती-किसानी व जवानी को बचाने की चुनौती है। बेरोजगारी चरम पर है। इन परिस्थितियों में भी अगर हम चुनाव नहीं जीतते और लोग हमें नहीं जिताते हैं तो इसका मतलब हुआ कि उनकी नजर में हमारी उपयोगिता समाप्त हो गई।
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विपक्ष में रहकर कब तक अपना कर्तव्य मानकर उनके सुख-दुख में शामिल होते रहेंगे। शरीर भी तो विश्राम मांगता है। जनता ही शक्ति नहीं देगी तो कब तक शक्ति का आह्वान करते रहेंगे। लोकतंत्र को जीवित रखना है तो उत्तराखंड की जनता को 5-0 वाला (भाजपा का नाम लिए बगैर उन्होंने इशारा किया कि भाजपा दो लोकसभा चुनावों से उत्तराखंड की सभी पांचों सीटें जीतती आ रही है) फार्मूला बदलना होगा। विधानसभा में जनता ने उन्हें एक बार 57, दूसरी बार 47 सीट दी हैं।
उत्तराखंड में कांग्रेस के बड़े नेता चुनाव लड़ने से पीछे हट गए। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और आप स्वयं मैदान में नहीं उतरे, ऐसा क्यों?
पार्टी के निर्णय को पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने माना। हमने आंशिक रूप से माना। प्रीतम सिंह, यशपाल आर्य के कुछ कारण थे, लेकिन वे चुनाव की पूरी बागडोर संभाले हुए हैं। स्वयं नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन दूसरे को लड़ा रहे हैं, उसे जिताने के लिए कार्य कर रहे हैं। चुनाव में चुनाव लड़ने वाले से ज्यादा चुनाव लड़ाने वाले की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
मुझे खुशी है कि प्रदेश अध्यक्ष करना माहरा, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह जैसे बड़े नेता उस कमी को पूरा कर रहे हैं, जो मेरे शारीरिक रूप से भागदौड़ न कर पाने के कारण हो रही थी। वे चुनाव अभियान का बड़ी मजबूती से संचालन कर रहे हैं।
क्या आइएनडीआइए इस चुनाव में बहुमत ला पाएगा, कौन होगा प्रधानमंत्री पद का चेहरा?
पहली प्राथमिकता है कि हम बहुमत प्राप्त करें। इसलिए कौन प्रधानमंत्री होगा, इस सवाल को पृष्ठभूमि में डाल दिया है। मुझे खुशी इस बात की है कि गठबंधन के कुछ साथी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखते हैं। पार्टी ने तय किया है कि हम इस विषय पर तब बात करेंगे, जब बहुमत हासिल हो जाएगा, इसलिए हम इससे बंधे हुए हैं।
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उत्तराखंड में कांग्रेस कितनी सीटें जीतने जा रही है?
जानकारी छन-छन कर आ रही है कि जिन तीन सीटों को लेकर कहा जा रहा था कि भाजपा को वाकओवर दे दिया, हम उन सीटों पर भी भाजपा के साथ जबर्दस्त टक्कर में हैं। हरिद्वार में भी हमारी जोरदार टक्कर है। ऐसे में हम यदि फार्मूला आफ एवरेज लागू करें तो तीन सीटें जीतने की स्थिति में आ सकते हैं।
कांग्रेस के कई बड़े नेता अचानक भाजपा में शामिल हो गए। क्या कारण हैं इनके भाजपा की ओर रुख करने के?
भाजपा जिस तरीके से पूरी शक्ति लगाकर तोड़फोड़ कर रही है, उस स्थिति में इन नेताओं के भाजपा में शामिल होने पर कोई आश्चर्य नहीं है। जहां किसी का मनोबल कमजोर पड़ रहा है या वह दबाव में आ रहा है, भाजपा उसके गले में अपना पटका डाल दे रही है। सिर्फ इतना कह सकते हैं कि ये सभी पुराने साथी हैं।
वर्षों साथ काम किया है, पार्टी के स्तंभ रहे हैं, उसकी पहचान रहे हैं। जिसका सोचना व सुनना भी पाप समझते थे, जब उसी पार्टी में जा रहे हैं तो ऐसे स्थिति में यही कह सकते हैं कि जहां रहो खुश रहो। जो कुछ आपको कांग्रेस ने दिया, यदि वह नाकाफी था तो भगवान भाजपा को इतना बड़ा दिल दे कि आपको उससे अधिक मिल जाए।
भाजपा आरोप लगाती है कि कांग्रेस परिवारवाद को बढ़ावा देती है और यही आरोप उत्तराखंड में आप पर लगता है। पत्नी को लोकसभा चुनाव लड़ाया, पुत्री को विधायक बनाया और अब पुत्र को लोकसभा चुनाव में मैदान में उतार दिया...
देखिये, पत्नी को चुनाव लड़ाने के विषय में तो यह कहा जा सकता है कि ऐसा तब अचानक पैदा हुआ शून्य के कारण था। वर्ष 2014 में कोई प्रत्याशी हरिद्वार से लड़ने को तैयार नहीं था। इस कारण इस चुनौती को मुझे ही लेना था। इसीलिए अपनी पत्नी को चुनाव लड़ने को कहा, लेकिन बेटी के लिए कहना कि वह परिवार के कारण राजनीति में आई, सही नहीं है। वह कांग्रेस में 25 वर्ष से प्रशिक्षु के रूप में रही है। इसमें से 15 साल से हरिद्वार में मेरे प्रयासों को ताकत दे रही थी। इस दौरान उसने हरिद्वार को समझा।
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कांग्रेस ने अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है। उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों के लिए आप अपने घोषणापत्र में क्या देखते हैं?
कांग्रेस के घोषणा पत्र में पर्यावरण का उल्लेख किया गया है। हम पहले राजनीतिक दल हैं, जिसने पर्यावरण के विषय को गंभीरता से लिया है। इससे हिमालय क्षेत्रों में असर पड़ता है। हिमालय क्षेत्रों को विशेष क्षेत्र का दर्जा देने की भी बात हमारे घोषणापत्र में कही गई है।
कुछ समय पूर्व आपने कहा था कि हरिद्वार में राजनीतिक सुपारी किलर आपके पीछे लगे हैं, इस बारे में कुछ खुलकर कहेंगे?
यह एक राजनीतिक दल का व्यवहार है। जो वर्ग आइएनडीआइए के साथ खड़ा है, उनका वोट काटने के लिए उस वर्ग के लोगों को चुनाव में खड़ा कर रहा है। उस राजनीतिक दल का क्या उद्देश्य हो सकता है। जो भूमिका ओवेसी ने बिहार में अपनाई थी तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए, वही भूमिका उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के अंदर एक राजनीतिक दल विशेष अपनाता हुआ नजर आ रहा है। एक तो लंबे समय से भाजपा का सुपारी किलर है।