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Uttarakhand Glacier Burst: चमोली में रात ढाई बजे टूटा हैंगिंग ग्लेशियर, आठ घंटे तक जमा हुआ पानी; इसके बाद आई जल प्रलय

Uttarakhand Glacier Burst ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र से निकली जलप्रलय महज एक घटना नहीं थी बल्कि इसमें कई घटनाक्रम व परिस्थितियां शामिल रहीं। रौंथी पर्वत पर 5600 मीटर की ऊंचाई से टूटे हैंगिंग ग्लेशियर के साथ कई ऐसी घटनाएं जुड़ती गईं जिसने आपदा के रूप को अधिक घातक बना दिया।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sun, 14 Feb 2021 07:21 PM (IST)
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इसमें हैंगिंग ग्लेशियर से एवलांच आता हुआ दिखाई दे रहा है।
सुमन सेमवाल, देहरादून। Uttarakhand Glacier Burst ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र से निकली जलप्रलय महज एक घटना नहीं थी, बल्कि इसमें कई घटनाक्रम व परिस्थितियां शामिल रहीं। रौंथी पर्वत पर 5600 मीटर की ऊंचाई से टूटे हैंगिंग ग्लेशियर के साथ कई ऐसी घटनाएं जुड़ती गईं, जिसने आपदा के रूप को अधिक घातक बना दिया। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने नौ फरवरी से 11 फरवरी के बीच आपदाग्रस्त क्षेत्रों का जो धरातलीय व हवाई सर्वे किया, उसके आधार पर आपदा के घटनाक्रम को बयां किया गया है। इसकी रिपोर्ट भी राज्य सरकार को सौंप दी गई है।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचांद साईं के मुताबिक, आपदा की शुरुआत छह फरवरी की मध्य रात्रि के बाद रौंथी पर्वत से हुई। रात करीब 2.30 बजे समुद्रतल से 5600 मीटर की ऊंचाई पर करीब आधा किलोमीटर लंबे हैंगिंग ग्लेशियर के नीचे की चट्टान खिसकी और उसके साथ ग्लेशियर भी 82 से 85 डिग्री के ढाल पर जा गिरा। ग्लेशियर और उसका मलबा नीचे रौंथी गदेरे पर 3800 मीटर की ऊंचाई पर गिरा। इस घटना से इतनी जोरदार आवाज निकली कि गदेरे के दोनों छोर के पर्वत पर जो ताजी बर्फ जमा थी, वह भी खिसकने लगी। इसी के साथ रौंथी पर्वत की बर्फ, चट्टान व आसपास की बर्फ पूरे वेग के साथ ऋषिगंगा नदी की तरफ बढ़ने लगी।

करीब सात किलोमीटर नीचे जहां पर गदेरा ऋषिगंगा नदी से मिलता है, पूरा मलबा वहां डंप हो गया। इससे नदी का प्रवाह रुक गया और झील बनने लगी। करीब आठ घंटे तक झील बनती गई और जब पानी का दबाव बढ़ा तो सुबह साढ़े 10 बजे के आसपास पूरा पानी मलबे के साथ रैणी गांव की तरफ बढ़ने लगा। यहां पानी व मलबे के वेग ने एक झटके में ऋषिगंगा पनबिजली परियोजना को तबाह कर दिया। जलप्रलय यहीं नहीं थमी और जहां पर धौलीगंगा मिलती है, वहां तक पहुंच गई। जलप्रलय ने धौलीगंगा नदी के बहाव को भी तेजी से पीछे धकेल दिया। मगर, धौलीगंगा नदी का पानी त्वरित रूप से वापस लौटा और जलप्रलय का हिस्सा बन गया।

निचले स्थानों पर जहां घाटी थी, वहां पानी का वेग और तेज होता चला गया और सीधे विष्णुगाड परियोजना के बैराज से टकराकर आपदा के रूप को और भीषण बना दिया। इस तरह देखें तो रौंथी पर्वत से विष्णुगाड तक करीब 22 किलोमीटर भाग पर जलप्रलय की रफ्तार कहीं पर भी मंद नहीं पड़ी। हालांकि, जैसे-जैसे निचले क्षेत्रों में नदी चौड़ी होती गई, जलप्रलय का रौद्र रूप भी शांत होता चला गया। वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ. साईं ने बताया कि आपदा के घटनाक्रमों का विश्लेषण करने के लिए सेटेलाइट चित्रों का भी अध्ययन किया गया।

बर्फ व पानी के सैंपल की हो रही जांच

वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचांद साईं ने बताया कि आपदाग्रस्त क्षेत्रों से मलबे वाले पानी के साथ ही हिमखंड के सैंपल भी एकत्रित किए गए हैं। इनकी जांच की जा रही है। ताकि आपदा के कारणों का और गहनता के साथ विश्लेषण किया जा सके।

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