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उत्तराखंड में जड़ी-बूटी और सगंध खेती से जुड़े 47 हजार किसान, उत्पादों को दिया जाएगा बढ़ावा

प्राकृतिक रूप से जड़ी-बूटियों के विपुल भंडार कहे जाने वाले उत्तराखंड में अब किसान जड़ी-बूटी के कृषिकरण के साथ ही सगंध खेती की तरफ तेजी से उन्मुख हो रहे। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो जड़ी-बूटी शोध विकास संस्थान से 26 हजार और सगंध पौधा केंद्र से 21 हजार किसान जुड़े।

By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sat, 22 May 2021 10:47 PM (IST)
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उत्तराखंड में जड़ी-बूटी और सगंध खेती से जुड़े 47 हजार किसान।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। प्राकृतिक रूप से जड़ी-बूटियों के विपुल भंडार कहे जाने वाले उत्तराखंड में अब किसान जड़ी-बूटी के कृषिकरण के साथ ही सगंध खेती की तरफ तेजी से उन्मुख हो रहे हैं। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो जड़ी-बूटी शोध विकास संस्थान (एचआरडीआइ) से 26 हजार और सगंध पौधा केंद्र (कैप) से 21 हजार किसान जुड़े हैं। किसानों के रुझान को देखते हुए प्रदेश सरकार ने भी अब राज्य में जड़ी-बूटी और सगंध उत्पादों को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है, ताकि किसानों की आय में बढ़ोतरी हो सके। इस क्रम में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने दोनों संस्थानों को तेजी से कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।

पहले बात सगंध पौधा केंद्र, सेलाकुई की। इस केंद्र के अस्तित्व में आने के बाद से प्रदेशभर में अब तक 109 क्लस्टर विकसित किए गए हैं। इनके तहत परित्यक्त भूमि के पुनर्वास, बाउंड्री फसल के रूप में डैमस्क गुलाब की खेती, मिश्रित खेती के रूप में जापानी मिंट का कृषिकरण, वानिकी फसल के तौर पर तेजपात की खेती और अल्पावधि की फसल के रूप में कैमोमिल समेत अन्य सगंध फसलों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इनसे करीब 21 हजार किसान जुड़े हैं, जिससे उनकी आय में बढ़ोतरी हुई है। 

जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान की पहल पर करीब 26 हजार किसान जड़ी-बूटी के कृषिकरण से जुड़े हैं। किसानों की मदद के लिए चमोली, उत्तरकाशी व पिथौरागढ़ जिलों में अनुसंधान एवं विकास और इनके अनुश्रवण व पर्यवेक्षण के लिए तीन केंद्र स्थापित किए गए हैं। संस्थान से मिली जानकारी के अनुसार मंडल स्थित पौधशाला में 12 विभिन्न औषधीय उद्यानों के मॉडल स्थापित किए गए हैं। 

मंडल में ही म्यूजियम और हर्बेरियम की स्थापना की गई है। संस्थान ने छह हर्बल चाय भी विकसित की हैं। मार्निंग, ईवनिंग, नाइट, क्वीन, किंग व हिपोफी हर्बल टी नाम से इनकी तकनीकी हस्तांतरण के लिए तैयार की गई है। यही नहीं, काश्तकारों को 38 प्रकार की जड़ी-बूटियों के कृषिकरण के मद्देनजर तकनीकी की जानकारी दी जा रही है। संस्थान ने सौ औषधीय उत्पाद विकसित करने के मद्देनजर भी कदम बढ़ाए हैं।

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