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Horse Trading Case: हाईकोर्ट में सुनवाई 27 को, हरदा ने कहा- लाल सूची में दर्ज लोगों को सत्ता कर रही बर्बाद

Uttarakhand Horse Trading Case सीबीआइ कोर्ट के बाद अब हाईकोर्ट में भी सीबीआइ के अनुरोध पर मामले में सुनवाई को लेकर हरीश रावत ने तंज कसते हुए केंद्र सरकार पर तीखा प्रहार किया। हरीश रावत ने कहा कि आज की न्यायिक व्यवस्था अपने उच्चतम आदर्शों के बावजूद अत्यधिक खर्चीली है। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए गर्दन में लगी चोट और निष्ठा से अपने दायित्व निर्वहन का जिक्र भी किया।

By Ravindra kumar barthwalEdited By: Nirmala BohraPublished: Fri, 07 Jul 2023 10:59 AM (IST)Updated: Fri, 07 Jul 2023 10:59 AM (IST)
Uttarakhand Horse Trading Case: पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपनी टीस व्यक्त की।

राज्य ब्यूरो, देहरादून : Uttarakhand Horse Trading Case: वर्ष 2016 में स्टिंग आपरेशन प्रकरण पर अदालतों के चक्कर काट रहे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपनी टीस व्यक्त की। सीबीआइ कोर्ट के बाद अब हाईकोर्ट में भी सीबीआइ के अनुरोध पर मामले में सुनवाई को लेकर हरीश रावत ने तंज कसते हुए केंद्र सरकार पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि केंद्रीय सत्ता जिनको लाल सूची में दर्ज कर ले रही है, उन्हें पूरी तरीके से बर्बाद किए बिना रुक नहीं रही है।

इंटरनेट मीडिया पर अपनी पोस्ट में पूर्व मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत ने कहा कि इतनी लंबी चुप्पी के बाद दोनों जगह एक साथ वादों की सुनवाई प्रारंभ होना, विस्मय पैदा करता है। केंद्रीय सत्ता को वर्ष 2016 में राष्ट्रपति शासन प्रकरण में जबरदस्त राजनीतिक और न्यायिक पराजय झेलनी पड़ी। उसे वह अभी तक भूली नहीं है। यह केंद्रीय सत्ता के वास्तविक चरित्र और व्यक्तित्व को उजागर करती है। उन्हें भी अपने दायित्व के साथ न्यायिक झंझावात झेलना पड़ा। उस स्थिति को याद कर आज भी उनकी रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा होती है।

हरीश रावत ने कहा कि आज की न्यायिक व्यवस्था अपने उच्चतम आदर्शों के बावजूद अत्यधिक खर्चीली है। उन जैसे निम्न मध्यमवर्गीय व्यक्ति के लिए न्यायिक आवश्यकता का वित्तीय प्रबंधन करना कितना कठिन है, इसे सोचकर ही वह व्याकुल हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि सत्ता के उनसे खफा होने के दो कारण है। पहला यह कि वह अपनी पार्टी और नेतृत्व के प्रति निष्ठावान हैं और प्राण देकर भी नेतृत्व के साथ रहेंगे।

दूसरा कारण विपक्ष के सदस्य के रूप में जनहित में जनता के सवालों पर खुलकर बोलना है। यह सत्ता को अत्यधिक नागवार गुजर रहा है। लोकतंत्र में यदि बोलने और पार्टी के प्रति निष्ठा की सजा भुगतनी है तो वह पूरी तरह तैयार हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए गर्दन में लगी चोट और निष्ठा से अपने दायित्व निर्वहन का जिक्र भी किया।

पूर्व मुख्यमंत्री रावत ने यह भी कहा कि उन्होंने सत्ता में रहते हुए अपने प्रतिद्वंद्वी या विपक्ष के प्रति विद्वेष नहीं रखा। ऐसी तथ्यपूर्ण फाइल आईं, जिनमें वह विपक्ष के नेताओं को बदनाम करने के लिए केस दर्ज करने की आज्ञा दे सकते थे। विवेचना के बाद उन्होंने यह पाया कि राज्य को जानबूझ कर नुकसान पहुंचाने की चेष्टा इन व्यक्तियों ने नहीं की। अपने निर्णय पर उन्हें गर्व है।

वह अपने पार्टी नेतृत्व को भी कह चुके हैं कि वह किसी पद के आकांक्षी नहीं हैं। कांग्रेस शक्तिशाली बने, संघर्ष करे, इसके लिए वह शेष जिंदगी न्यायालय की चौखट पर गुजारने को वह मानसिक रूपसे तैयार हैं। उन्होंने जनता से मौन आशीर्वाद की आकांक्षा की है।

स्टिंग मामले में हाई कोर्ट में सुनवाई 27 को

नैनीताल हाई कोर्ट ने दिग्गज कांग्रेसी व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की स्टिंग प्रकरण का सीबीआई जांच को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की। गुरुवार को न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ ने मामले में सुनवाई का समय कम रहने पर अगली सुनवाई के लिए 27 जुलाई की तिथि नियत कर दी है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने याचिका दायर कर कहा है कि उनके कार्यकाल के दौरान कुछ लोगो ने उनके ऊपर झूठे आरोप लगाए हैं।

जिसकी वजह से उनकी सरकार गिर गई थी। राज्य सरकार को पूरे प्रकरण की जांच सीबीआई से कराना चाहिए। राज्य सरकार ने सीबीआई से कहा कि इसकी पहले प्राथमिक जांच करें, तथ्य सही आने पर गिरफ्तार करें। बाद में राज्य सरकार ने खुद अपना आदेश सीबीआई से वापस ले लिया। रावत ने अपनी याचिका में कहा है कि जब राज्य सरकार ने सीबीआई से प्राथमिक जांच कराने का प्रार्थना पत्र वापस ले लिया है तो उनकी गिरफ्तारी नही हो सकती है।

जो केस स्टिंग प्रकरण से जुड़े हैं, उनका कोई महत्व नहीं रह जाता है। उन्हें बार बार अभी भी परेशान किया जा रहा है, जबकि न्यायालय ने इस प्रकरण में पहले से ही उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा रखी है। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के विधायकों की कथित खरीद फरोख्त से संबंधित स्टिंग जारी हुआ था, जिसकी सीबीआइ जांच की संस्तुति केंद्र सरकार ने की थी। तब विधायकों की बगावत व इस स्टिंग के आधार पर उत्तराखंड में केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया था, जिसे हाई कोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार देते हुए रद कर दिया था।


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