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वन्यजीवों के संरक्षण में उत्तराखंड निभा रहा महत्वपूर्ण भूमिका, मैनेजमेंट प्लान को लेकर जरूरी है गंभीरता

उत्तराखंड वन्यजीवों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस बात का गवाह बाघ और हाथियों का लगातार बढ़ता कुनबा है लेकिन अब यहां मैनेजमेंट प्लान को लेकर कुछ सुस्ती भी नजर आने लगी है। इसपर गंभीरता जरूरी है।

By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sat, 14 Aug 2021 11:27 AM (IST)
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वन्यजीवों के संरक्षण में उत्तराखंड निभा रहा महत्वपूर्ण भूमिका।
केदार दत्त, देहरादून। विश्व प्रसिद्ध कार्बेट नेशनल पार्क समेत छह नेशनल पार्क, सात वन्यजीव अभयारण्य और चार कंजर्वेशन रिजर्व को खुद में समेटे उत्तराखंड वन्यजीवों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। बाघ और हाथियों का लगातार बढ़ता कुनबा इसकी बानगी है। परिंदों ने भी यहां की सरजमीं को आशियाना बनाया है। देश में मिलने वाली आधी से अधिक पक्षी प्रजातियां यहां चिह्नित की गई हैं।

निश्चित रूप से यह इन संरक्षित क्षेत्रों में किए गए बेहतर प्रबंधन का नतीजा है, लेकिन मैनेजमेंट प्लान को लेकर कुछ सुस्ती भी दिख रही है। विश्व धरोहर फूलों की घाटी, नंदादेवी नेशनल पार्क व अस्कोट अभयारण्य की प्रबंध योजना की अवधि मार्च में खत्म हो चुकी है। मसूरी सेंचुरी, झिलमिल व पवलगढ़ कंजर्वेशन रिजर्व की प्रबंध योजना अभी तक बनी ही नहीं है। ऐसे में इन संरक्षित क्षेत्रों में होने वाले कार्यों की रफ्तार सुस्त पड़ सकती है। लिहाजा, इस पर खास फोकस जरूरी है।

कार्बेट पर भी कम होगा दबाव

उत्तराखंड में वन्यजीव पर्यटन के लिए कार्बेट नेशनल पार्क देश-दुनिया के सैलानियों की पहली पसंद है। इससे वन विभाग को अच्छी-खासी आमदनी भी होती है, मगर जिस तरह से कार्बेट में पर्यटकों का दबाव बढ़ रहा है, उसने चिंता की लकीरें भी खींच दी हैं। सूरतेहाल, इसे कम करने के लिए आवश्यक है कि कार्बेट के समान परिस्थितियों वाले नए क्षेत्र वन्यजीव पर्यटन के लिहाज से विकसित किए जाएं।

सरकार ने इस दिशा में कदम उठाने भी शुरू कर दिए हैं। कुमाऊं मंडल में तराई पूर्वी वन प्रभाग की खटीमा रेंज के सुरई रिजर्व फारेस्ट में नया जंगल सफारी जोन बनाने की कसरत की जा रही है। पीलीभीत टाइगर रिजर्व से सटा सुरई वन क्षेत्र कार्बेट की तरह बाघ समेत दूसरे वन्यजीवों के दृष्टिकोण से समृद्ध है। सुरई जंगल सफारी जोन के आकार लेने से जहां कार्बेट पर सैलानियों का दबाव कम होगा, वहीं स्थानीय निवासियों को रोजगार भी मिलेगा।

क्रोकोडाइल रेसक्यू सेंटर को सुरई मुफीद

उत्तराखंड में लखनऊ के कुकरैल घड़ियाल पार्क की तर्ज पर क्रोकोडाइल रेसक्यू एंड ब्रीडिंग सेंटर बनाने की योजना है। दरअसल राज्य में हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल, पौड़ी, चम्पावत, पिथौरागढ़, ऊधमसिंहनगर जिलों के जंगलों से गुजर रही नदियों में मगरमच्छ (क्रोकोडाइल) और घडिय़ालों की ठीक-ठाक मौजूदगी है। यहां 451 मगरमच्छ और 77 घड़ियाल हैं।

विभिन्न क्षेत्रों में मगरमच्छ आबादी के करीब तक आ रहे हैं। यही नहीं, नदी तटों पर इनके अंडे भी महफूज नहीं हैं। इस सबको देखते हुए ही क्रोकोडाइल रेसक्यू एंड ब्रीडिंग सेंटर की स्थापना पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए प्रस्तावित स्थल में सुरई का नाम भी है, जहां मगरमच्छों के लिए परिस्थितियां मुफीद हैं। सुरई के काकरानाला में ही मगरमच्छों की संख्या सौ से अधिक है। अब सुरई को जंगल सफारी जोन भी बनाया जा रहा है। क्रोकोडाइल रेसक्यू सेंटर के लिए सुरई का चयन होने से यह भी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बनेगा।

हाथी-मानव संघर्ष ने भी बढ़ाई चिंता

राष्ट्रीय विरासत पशु हाथी के संरक्षण में उत्तराखंड अग्रणी भूमिका में है। हाथियों की यहां निरंतर बढ़ती संख्या इसे तस्दीक करती है। यमुना से शारदा नदी तक कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व समेत 12 वन प्रभागों के साढ़े छह हजार वर्ग किलोमीटर में फैले हाथियों के बसेरे में इनकी संख्या बढ़कर 2026 पहुंच चुकी है। बावजूद इसके तस्वीर का दूसरा पहलू भी है।

हाथियों के बसरे वाले क्षेत्रों से लगे आबादी वाले इलाकों में इनकी बढ़ती धमक और हमलों ने चिंता बढ़ा दी है। ऐेसे में हाथी-मानव संघर्ष की रोकथाम के लिए ठोस एवं प्रभावी कार्ययोजना बनाने की दरकार है। सरकार भी इसे लेकर गंभीरता से मंथन में जुटी है। इसी कड़ी में वन मंत्री ने विभागीय अधिकारियों को यह संघर्ष थामने के लिए ठोस कार्ययोजना तैयार कर इसे धरातल पर उतारने के निर्देश दिए हैं। अब देखने वाली बात ये होगी कि विभाग इसे कब तक अमलीजामा पहनाता है।

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