देवभूमि के Panch Badri Dham में भगवान नारायण विभिन्न रूपों में विराजमान, वर्षभर खुले रहते हैं दो धामों के कपाट
Panch Badri Dham चमोली जिले में स्थित पंच बदरी समूह के इन सभी मंदिरों का स्थापना काल भी लगभग वही है जो बदरीनाथ धाम का माना जाता है। पंचबदरी में योग-ध्यान बदरी और वृद्ध बदरी धाम के कपाट वर्षभर खुले रहते हैं। आदि बदरी धाम के कपाट सिर्फ एक माह के लिए पौष में बंद किए जाते हैं बदरीनाथ व भविष्य बदरी धाम के कपाट छह माह बंद रहते हैं।
दिनेश कुकरेती, जागरण देहरादून: Panch Badri Dham: उत्तराखंड हिमालय में विशाल बदरी (बदरीनाथ) के अलावा चार अन्य बदरी भी प्रतिष्ठित हैं, जहां दर्शन का बदरीनाथ के समान माहात्म्य माना गया है। बदरीनाथ की तरह इन तीर्थों में भी भगवान नारायण विभिन्न रूपों में वास करते हैं, इसलिए इनकी पंचबदरी के रूप में ख्याति है।
चमोली जिले में स्थित पंच बदरी समूह के इन सभी मंदिरों का स्थापना काल भी लगभग वही है, जो बदरीनाथ धाम का माना जाता है। इनमें चांदपुरगढ़ी के निकट आदि बदरी, पांडुकेश्वर में योग-ध्यान बदरी, तपोवन के निकट सुभांई गांव में भविष्य बदरी, हेलंग के पास अणिमठ में वृद्ध बदरी और बदरीशपुरी में विशाल बदरी धाम स्थित हैं।
पंचबदरी में योग-ध्यान बदरी और वृद्ध बदरी धाम के कपाट वर्षभर खुले रहते हैं। आदि बदरी धाम के कपाट सिर्फ एक माह के लिए पौष में बंद किए जाते हैं, जबकि बदरीनाथ व भविष्य बदरी धाम के कपाट शीतकाल के छह माह बंद रहते हैं।
बदरीनाथ धाम: समुद्रतल से 10,277 फीट की ऊंचाई पर चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ धाम को देश के चारधाम में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ माना गया है। कहते हैं कि आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में बदरीनाथ मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर के गर्भगृह में शालिग्राम शिला से बनी भगवान नारायण की चतुर्भुज मूर्ति ध्यानावस्था में विराजमान है। कहते हैं कि बौद्धों का प्राबल्य होने पर उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा शुरू कर दी। आदि शंकराचार्य की प्रचार यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते समय मूर्ति को अलकनंदा नदी में फेंक गए। शंकराचार्य ने उसकी पुनर्स्थापना की। मंदिर में नर-नारायण की पूजा होती है और अखंड दीप प्रज्वलित रहता है। रविवार को धाम के कपाट खोल दिए जाएंगे।
योग-ध्यान बदरी: जोशीमठ से 24 किमी दूर समुद्रतल से 6,298 फीट की ऊंचाई पर पांडुकेश्वर में भगवान नारायण तपस्वी रूप में विराजमान हैं। उनकी अष्टधातु की यह मूर्ति बेहद चित्ताकर्षक और मनोहारी है। कथा है कि भगवान की यह मूर्ति इंद्रलोक से उस समय लाई गई थी, जब वनवास के दौरान अर्जुन इंद्रलोक से गंधर्व विद्या प्राप्त कर लौटे। एक दौर में रावल भी शीतकाल में यहीं रहकर भगवान नारायण की पूजा करते थे, सो यहां नारायण का नाम योग-ध्यान बदरी हो गया। योग-ध्यान बदरी का पंचबदरी में तीसरा स्थान है। शीतकाल में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने पर भगवान के उत्सव विग्रह की पूजा यहीं होती है। इसे शीत बदरी भी कहा जाता है।
आदि बदरी धाम: चमोली जिले में चांदपुरगढ़ी से तीन किमी आगे रानीखेत मार्ग पर दायीं ओर भगवान नारायण का आदि बदरी धाम स्थित है। यह मंदिरों का समूह है, जिनका निर्माण शंकराचार्य का कराया माना जाता है। मंदिर समूह की कर्णप्रयाग से दूरी 17 किमी है। इनमें प्रमुख मंदिर भगवान विष्णु का है, जिसके गर्भगृह में भगवान विष्णु की चतुर्भुज स्वरूप एक मीटर ऊंची शालिग्राम की काली प्रतिमा विराजमान है। पास ही एक छोटा मंदिर गरुड़ महाराज का है। इन प्रस्तर मंदिरों पर गहन एवं विस्तृत नक्काशी हुई है और हर मंदिर पर नक्काशी का भाव विशिष्ट एवं अन्य मंदिरों से अलग भी है। आदि बदरी के मुख्य पुजारी थापली गांव के थपलियाल हैं। इस मंदिर के कपाट एक माह बंद रहने के बाद मकर संक्रांति को खोले जाते हैं।
वृद्ध बदरी: जोशीमठ से सात किमी पहले समुद्रतल से 4,527 फीट की ऊंचाई पर उर्गम घाटी के अणिमठ (अरण्यमठ) गांव में श्रीविष्णु का प्राचीन मंदिर है, जहां वे वृद्ध बदरी के रूप में विराजमान हैं। कहते हैं कि एक बार देवर्षि नारद मृत्युलोक में विचरण करते हुए बदरीनाथ की ओर जाने लगे। मार्ग विकट था, इसलिए थकान मिटाने के लिए वे अणिमठ नामक स्थान पर रुके। यहां उन्होंने कुछ समय भगवान विष्णु की आराधना व ध्यान कर उनसे दर्शन की अभिलाषा की। तब भगवान बदरी नारायण ने एक वृद्ध के रूप में उनको दर्शन दिए। तब से इस स्थान की ख्याति वृद्ध बदरी के रूप में है।
भविष्य बदरी: ‘स्कंद पुराण’ के ‘केदारखंड’ में उल्लेख है कि कलयुग की पराकाष्ठा होने पर जोशीमठ में विष्णु प्रयाग के समीप जय-विजय नामक दो पहाड़ आपस में जुड़ जाएंगे। राह अवरुद्ध होने से तब भगवान नारायण के दर्शन असंभव हो जाएंगे। इसलिए श्रद्धालु तब समुद्रतल से 9,000 फीट की ऊंचाई पर भविष्य बदरी धाम में ही भगवान के विग्रह के दर्शन करेंगे। भविष्य बदरी धाम जोशीमठ-मलारी मार्ग पर तपोवन से आगे सुभांई गांव के ऊपर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए सलधार से छह किमी की खड़ी चढ़ाई देवदार के घने जंगल के बीच से तय करनी पड़ती है। जनश्रुति है कि यहां महर्षि अगस्त्य ने तपस्या की थी। इस मंदिर के कपाट बदरीनाथ धाम के साथ ही खोलने व बंद करने की परंपरा है।
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