Lok Sabha Election 2019: राष्ट्रवाद पर मुहर, उत्तराखंड बना मोदी का मुरीद
उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस और बसपा-सपा गठबंधन का सूपड़ा साफ करते हुए पांचों सीटों पर शानदार जीत दर्ज की।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 24 May 2019 09:26 AM (IST)
देहरादून, विकास धूलिया। राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह देने की परंपरा को सैन्य बहुल उत्तराखंड ने सत्रहवें लोकसभा चुनाव में भी कायम रखा। मोदी मैजिक में न केवल केंद्र सरकार, बल्कि उत्तराखंड की भाजपा सरकार के सवा दो साल के कार्यकाल की एंटी इनकंबेंसी भी निष्प्रभावी साबित हुई।
नतीजतन, लगातार दूसरे लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस और बसपा-सपा गठबंधन का सूपड़ा साफ करते हुए पांचों सीटों पर शानदार जीत दर्ज की। नैनीताल लोकसभा सीट, जहां कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत मैदान में थे और जिस सीट से कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीदें थी, में जिस तरह मतों के भारी अंतर से भाजपा प्रत्याशी व पार्टी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने परचम फहराया, उससे साफ हो गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू इस बार भी पूरी तरह बरकरार रहा। सभी पांचों सीटों पर भाजपा की बढ़त दो से तीन लाख तक रहने के संकेत साफ हैं कि विपक्ष कितना ही दुष्प्रचार कर ले, मतदाताओं का मोदी और भाजपा पर भरोसा बिल्कुल कायम है। पिछली बार की तरह लगभग 61 फीसद वोटर टर्नआउट इस बार भी भाजपा को ही रास आया।
राष्ट्रवाद के नाम पर भाजपा को मिला जनमत
उत्तराखंड सैन्य पृष्ठभूमि वाला राज्य है। यहां हर परिवार से कोई न कोई सदस्य सेना में है या रहा है। यही वजह है कि सामरिक और राष्ट्रवाद के मसले उत्तराखंड के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में अपनी दोनों चुनावी सभाओं में राष्ट्रवाद और बालाकोट एयर स्ट्राइक को खास तवज्जो दी। फिर कांग्रेस के घोषणपत्र में अफस्पा और राष्ट्रद्रोह से संबंधित कानून में संशोधन की बात ने उत्तराखंड में कांग्रेस को कतई बैकफुट पर ला दिया। स्थिति यह बनी कि कांग्रेस अपने चुनाव घोषणापत्र को राज्य में विधिवत रूप से जारी तक नहीं कर पाई। चुनाव से ऐन पहले कश्मीर के पुलवामा में उत्तराखंड निवासी अद्र्धसैनिक बल व सेना के चार अधिकारियों की शहादत और इसके बाद बालाकोट में एयर स्ट्राइक ने यहां राष्ट्रवाद की भावना को और बलवती कर दिया। मतदाता के इस पैमाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा पूरी तरह खरे उतरे।
मोदी से मिली तवज्जो को मतदाता ने दिया सम्मान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने उत्तराखंड को महज पांच सीटों वाला एक छोटा सा राज्य न समझकर इसके सामरिक और आध्यात्मिक महत्व को पूरा सम्मान दिया। अपने पांच साल के कार्यकाल में मोदी 13 बार उत्तराखंड के दौरे पर आए। इनमें से चार बार तो वह केवल केदारनाथ धाम ही पहुंचे। जून 2013 की भीषण केदारनाथ त्रासदी के बाद उन्होंने जिस तरह इसके पुनर्निर्माण को अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बनाया, वह बात हर उत्तराखंडी के दिल को गहरे तक छू गई। इसके अलावा चारधाम ऑलवेदर रोड और ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण ने साफ कर दिया कि मोदी ने जो कहा, उसे अमलीजामा भी पहनाया। नतीजतन, जब लोकसभा चुनाव का मौका आया, उत्तराखंड के जनमत ने प्रधानमंत्री के समर्पण को पूरा सम्मान देने का मौका गंवाया नहीं।
करारी हार के लिए कांग्रेस स्वयं भी रही जिम्मेदारवर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में पांचों सीटों पर परचम फहराने वाली कांग्रेस का मोदी लहर में हुए वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह सूपड़ा साफ हुआ, उससे पार्टी ने कोई सबक नहीं लिया। अगर ऐसा हुआ होता तो इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की इस कदर बुरी गत न बनती। पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के कद्दावर नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज ने भाजपा का दामन थाम लिया था। वर्ष 2014 की शुरुआत में हरीश रावत के विजय बहुगुणा के स्थान पर मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेस में तेजी से बिखराव हुआ, जिसकी चरम परिणति मार्च 2016 में पार्टी के दो फाड़ होने के रूप में हुई। पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में 10 कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल हो गए। फिर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन कैबिनेट मंत्री व दो बार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहे यशपाल आर्य ने भाजपा का दामन थाम लिया। विधानसभा चुनाव में भाजपा 57 सीटें जीती तो कांग्रेस 11 पर ही सिमट गई।
पहले दिन से ही नैतिक रूप से पराजित दिखी कांग्रेसलोकसभा व विधानसभा चुनावों में लगातार करारी शिकस्त के बावजूद पिछले दो साल के दौरान भी कांग्रेस का अंतर्कलह थमा नहीं है। संभवतया इसी का असर तब नजर आया, जब इस लोकसभा चुनाव के आगाज के वक्त ही कांग्रेस अत्यंत गिरे हुए मनोबल के साथ मैदान में उतरी महसूस हुई। पार्टी में धड़ेबाजी इतनी ज्यादा कि प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह दो साल में भी अपनी टीम, यानी प्रदेश कांग्रेस कमेटी को आकार नहीं दे पाए। यह नेतृत्व का अभाव ही कहा जाएगा कि विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर पराजय झेल चुके पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और राज्यसभा सदस्य के रूप में साढ़े तीन साल का कार्यकाल शेष रहते हुए भी प्रदीप टम्टा को मैदान में उतरना पड़ा। पौड़ी सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा सांसद भुवन चंद्र खंडूड़ी के पुत्र मनीष खंडूड़ी को टिकट दिया गया, जिनके पास अपने पिता की विरासत के भरोसे के अलावा कुछ नहीं था। यही नहीं, प्रचार अभियान के मोर्चे पर तो कांग्रेस अपनी प्रतिद्वंद्वी भाजपा के मुकाबले कहीं टिकी ही नहीं।
उत्तराखंड ने फिर प्रदर्शित किया राष्ट्रीय चरित्रसत्रहवीं लोकसभा के चुनाव में उत्तराखंड ने एक बार फिर राष्ट्रीय धारा के संग रहने की अपनी परंपरा को कायम रखा। जनमत ने राष्ट्रीय सुर से सुर मिलाते हुए भाजपा को पांचों सीटों पर रिकार्ड जीत से नवाज दिया। इस चुनाव में राज्य में मतदान प्रतिशत 61.50 रहा, जो पिछली बार के लगभग बराबर ही है। यानी, जिस तरह पिछली बार मतदाता भाजपा के पक्ष में मतदान के लिए बाहर निकले, बिल्कुल वैसा ही इस बार भी हुआ। यही नहीं, जिस तरह पिछली बार की अपेक्षा इस बार उत्तराखंड में भाजपा को हासिल कुल मत प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई और सभी सीटों पर जीत का अंतर भी ज्यादा रहा, उससे साफ हो गया कि देशभर की तरह उत्तराखंड का अवाम भी कांग्रेस से बुरी तरह आजिज आ चुका है।
यह भी पढ़ें: Uttarakhand Lok Sabha Election 2019 Result: उत्तराखंड में भाजपा ने फिर फहराया परचम, दूसरी बार बड़े अंतर से किया क्लीन स्वीपयह भी पढ़ें: Tehri Garhwal Loksabha seat: माला राज्य लक्ष्मी शाह की हैट्रिक, प्रतिद्वंदी पस्तलोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।