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Uttarakhand: किसानों पर भारी इंद्र देव की बेरुखी, सेब पर संकट के बादल; उत्पादन में आ सकती है कमी

Uttarakhand उद्यान विभाग के अनुसार प्रदेश में वर्षा-बर्फबारी नहीं होने से बागवानी के लिए परिस्थितियां प्रतिकूल होने लगी हैं। सेब के उत्पादन पर इसका व्यापक असर पड़ सकता है। फरवरी मध्य तक अच्छी बर्फबारी नहीं हुई तो सेब की पैदावार में 50 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। साथ ही आडू नाशपाती खुबानी अखरोट आदि फलों का उत्पादन भी घटने की आशंका है।

By Jagran News Edited By: Swati Singh Updated: Wed, 31 Jan 2024 09:24 AM (IST)
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उत्तरकाशी में पेड़ पर लगे सेब। जागरण अर्काइव
विजय जोशी, देहरादून। उत्तराखंड में इंद्रदेव की बेरुखी खेती के साथ बागवानी के लिए भी चिंता का सबब बन गई है। इस बार शीतकाल शुष्क रहा और वर्षा-बर्फबारी नहीं के बराबर हुई। पर्वतीय क्षेत्रों में चोटियों पर भी बर्फ की सफेद चादर नजर नहीं आ रही। इन हालात में विशेषकर सेब की पैदावार पर संकट मंडराने लगा है।

उद्यान विभाग के अनुसार, प्रदेश में वर्षा-बर्फबारी नहीं होने से बागवानी के लिए परिस्थितियां प्रतिकूल होने लगी हैं। सेब के उत्पादन पर इसका व्यापक असर पड़ सकता है। फरवरी मध्य तक अच्छी बर्फबारी नहीं हुई तो सेब की पैदावार में 50 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। साथ ही आडू, नाशपाती, खुबानी, अखरोट आदि फलों का उत्पादन भी घटने की आशंका है। इससे भी काश्तकार चिंतित हैं।

चिलिंग आवर पूरे नहीं हुए तो घट जाएगी गुणवत्ता

उत्तरकाशी के उद्यान विशेषज्ञ डा. पंकज नौटियाल बताते हैं कि सेब के फल के उचित विकास और अच्छी गुणवत्ता के लिए चिलिंग आवर का पूरा होना जरूरी है। चिलिंग आवर पूरे नहीं होने का असर फ्लावरिंग पर पड़ता है। पौधे में कहीं ज्यादा तो कहीं कम फ्लावरिंग होती है, जिससे पालिनाइजेशन प्रभावित होता है और उसका नकारात्मक असर सेटिंग पर पड़ता है।

इसके तहत सेब को 1200 से 1800 घंटे तक दो से सात डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान मिलना चाहिए। शीतकाल में वर्षा-बर्फबारी बेहद कम होने से अब तक सेब को पर्याप्त नमी नहीं मिल पाई है। यही स्थिति रही और चिलिंग आवर पूरे नहीं हो पाए तो इसकी गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। पर्याप्त वर्षा और बर्फबारी नहीं होने से बागवानों ने जो नए पौधे लगाए हैं, उनके सूखने का डर भी सता रहा है।

उत्तरकाशी में 75 प्रतिशत आबादी खेती-बागवानी पर निर्भर

उत्तरकाशी जिले में 75 प्रतिशत आबादी सीधे तौर पर खेती और बागवानी से जुड़ी है। अकेले सेब ही 8,670 काश्तकारों की आजीविका का मुख्य जरिया है। यहां 9,300 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब का उत्पादन होता है। इसके अलावा नाशपाती, आडू और खुमानी का भी अच्छा-खासा रकबा है।

मौसम की बेरुखी का पड़ेगा आसार

मौसम की बेरुखी से बागवानी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। प्रदेश में पिछले तीन माह में वर्षा-बर्फबारी बेहद कम हुई है। फरवरी मध्य तक अगर अच्छी बर्फबारी नहीं हुई तो सेब को पर्याप्त चिलिंग आवर नहीं मिलने की आशंका है। इससे उत्तराखंड में सेब की गुणवत्ता घटने के साथ पैदावार में 50 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। डा. आरके सिंह, अपर निदेशक, उद्यान

पिछले वर्ष राज्य में सेब उत्पादन

    जिला    -       क्षेत्रफल -    उत्पादन

उत्तरकाशी,        9288.46,    29017.88

देहरादून,          4939.84,       7807

टिहरी,              3872.87,     1966.15

पिथौरागढ़,        1622.10,      3044.12

अल्मोड़ा,             1578,         11835

चमोली,             1390.44,       2892.16

नैनीताल,           1248.76,       4734.95

पौड़ी,               1174.11,        2987.67

रुद्रप्रयाग,             434,            217

चम्पावत,             332,            343

बागेश्वर,              99.57,          14.23

(क्षेत्रफल हेक्टेयर और उत्पादन मीट्रिक टन में)

शीतकाल में 67 प्रतिशत कम वर्षा

  • अक्टूबर में 35 प्रतिशत कम
  • नवंबर में 43 प्रतिशत कम
  • दिसंबर में 90 प्रतिशत कम
  • जनवरी में अब तक 99 प्रतिशत कम
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