पादपों की विभिन्न प्रजातियों का करना है दीदार तो आइए उत्तराखंड, यहां बना है देश का पहला क्रिप्टोगैमिक गार्डन
Uttarakhand Tourism पादपों की विभिन्न प्रजातियों के दीदार के लिए उत्तराखंड का रुख करें। देहरादून जिले के चकराता में देश का पहला क्रिप्टोगैमिक गार्डन तैयार किया गया है। यहां आपको क्रिप्टोगैम पादपों की 76 प्रजातियां एक ही स्थान पर देखने को मिल जाएंगी।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Mon, 12 Jul 2021 04:59 PM (IST)
विजय जोशी, देहरादून। Uttarakhand Tourism पादपों की विभिन्न प्रजातियों के दीदार के लिए उत्तराखंड का रुख करें। देहरादून जिले के चकराता में देश का पहला क्रिप्टोगैमिक गार्डन तैयार किया गया है। यहां आपको क्रिप्टोगैम पादपों की 76 प्रजातियां एक ही स्थान पर देखने को मिल जाएंगी, जो वातावरण को प्रदूषण मुक्त बनाती हैं। इनमें से कुछ प्रजातियां औषधीय महत्व से भी परिपूर्ण हैं।
चकराता के देवबन इलाके में स्थित क्रिप्टोगैमिक गार्डन का रविवार को उद्घाटन किया गया। चकराता वन प्रभाग के अंतर्गत आने वाले इस गार्डन को वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी ने तैयार किया है। समुद्र तल से करीब 2700 मीटर की ऊंचाई पर तीन एकड़ क्षेत्र में फैले इस गार्डन को महज छह लाख रुपये में तैयार किया गया है। देवबन इलाके में देवदार और ओक के प्राचीन जंगल हैं। प्रदूषण मुक्त क्षेत्र होने के कारण यह क्षेत्र क्रिप्टोगैम के विकास के लिए मुफीद है।
देहरादून स्थित वन अनुसंधान केंद्र के प्रमुख संजीव चतुर्वेदी के अनुसार क्रिप्टोगैम का अर्थ है छिपा हुआ प्रजनन। ऐसे पौधों में कोई बीज नहीं होता और न ही फूल होते हैं। क्रिप्टोगैम में शैवाल, ब्रायोफाइट्स (मॉस, लिवरवाट्र्स), लाइकेन, फर्न, कवक आदि प्रमुख समूह हैं। क्रिप्टोगैम को जीवित रहने के लिए नम परिस्थिति की आवश्यकता होती है। इन पौधों की प्रजातियां सबसे पुराने समूहों में शामिल हैं। इस गार्डन को तैयार करने में रेंज आफिसर मुकुल कुमार और वरिष्ठ अनुसंधानकर्ता दीक्षित पाठक का विशेष सहयोग रहा।
जागरूकता और पारिस्थितिकी सुधार है गार्डन के निर्माण का उद्देश्य क्रिप्टोगैमिक गार्डन के निर्माण का उद्देश्य पादपों की इन प्रजातियों को बढ़ावा देना और इनके महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना है। इन प्रजातियों का पर्यावरण और पारिस्थितिकी में बहुत बड़ा योगदान है।
प्रदेश में हैं पादपों की तमाम प्रजातियां पादपों की प्रजातियों की दृष्टि से उत्तराखंड बेहद समृद्ध है। यहां क्रिप्टोगैम की 539 प्रजातियां, शैवाल की 346 प्रजातियां, ब्रायोफाइट्स की 478 प्रजातियां और टेरिडोफाइट्स की 365 प्रजातियां पाई जाती हैं।भोजन के रूप में उपयोग
क्रिप्टोगैम में शैवाल का विशेष महत्व है। इसकी कई प्रजातियों का उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है। इनमें कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन और विटामिन ए, बी, सी, और ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। साथ ही ये आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, मैंगनीज और जिंक जैसे खनिजों के भी अच्छे स्रोत हैं। शैवाल का उपयोग जैव उर्वरकों, तरल उर्वरकों के रूप में भी किया जाता है। यह मिट्टी में मौजूद नाइट्रोजन के स्तर को बढ़ाता है।
कास्मेटिक के निर्माण में भी इस्तेमाल वन अनुसंधान केंद्र के प्रमुख संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि प्राचीन काल से ही विभिन्न गुणों के कारण इन पादपों का कई उत्पादों में प्रयोग किया जा रहा है। विभिन्न कास्मेटिक वस्तुओं, इत्र, धूप, हवन सामग्री आदि के निर्माण में लाइकेन का उपयोग किया जाता है।प्रदूषण को नियंत्रित करने में कारगर
ब्रायोफाइट्स प्रदूषण को नियंत्रित करने में कारगर हैं। ये मिट्टी के कणों को बांधकर कटाव को रोकते हैं। वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण को भी कम करते हैं। लाइकेन वायुमंडलीय प्रदूषकों के प्रति अत्याधिक संवेदनशील होते हैं।यह भी पढ़ें- मानसून की दस्तक से गुलजार हुआ जंगल, बढ़ रही विदेशी पक्षियों की चहचाहट
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