फूड सेफ्टी में भी बिगड़ी उत्तराखंड की साख, प्रदर्शन में फिसड्डी; पढ़िए पूरी खबर
फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने वर्ष 2018-19 का फूड सेफ्टी इनफोर्समेंट डाटा जारी किया है। इसमें उत्तराखंड खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में शुमार है।
By Edited By: Updated: Wed, 27 Nov 2019 08:15 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। जन स्वास्थ्य के मोर्चे पर राज्य सरकार फिर से फिसड्डी नजर आई। पहले नीति आयोग की रिपोर्ट ने सरकार को आईना दिखाया और फिर एनएचएम रैकिंग से उत्तराखंड की साख बिगड़ी। इस बार मामला खाद्य सुरक्षा से जुड़ा है। फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने वर्ष 2018-19 का फूड सेफ्टी इनफोर्समेंट डाटा जारी किया है। इसमें उत्तराखंड उन दस खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में शुमार है जहा न मानकों के अनुरूप लैब संचालित हो रही है और न फूड सेफ्टी अधिकारी ही पर्याप्त हैं। राज्य गठन को भले ही 19 साल पूरे हो गए हैं, पर उत्तराखंड अब भी तमाम मोर्चो पर जूझ रहा है।
स्वास्थ्य सूचकांक में खराब प्रदर्शन को लेकर कठघरे में आया सरकारी तंत्र अब खाद्य सुरक्षा को लेकर घिर गया है। मिलावट के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकारी चाहे जितना भी दावा करें पर एफएसएसआइ ने उन्हें आईना दिखाया है। वर्ष 2011 में देश के अन्य राज्यों की तरह उत्तराखंड में भी फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट अस्तित्व में तो आया, लेकिन इसके नाम पर अब तक भी खानापूर्ति ही हो रही है। या यूं कहें कि एक्ट के प्रावधानों का ठीक ढंग से पालन नहीं हो पा रहा। हद ये कि सरकारें बुनियादी सुविधाएं भी जुटा पाने में नाकाम रही हैं। कहने के लिए रुद्रपुर में खाद्य जाच प्रयोगशाला जरूर बनी, पर यह व्यवस्था भी दिखावे भर की रह गई है। हाल ये है कि आज तक यहा स्थायी खाद्य जाच विश्लेषक की तैनाती सरकार नहीं कर पाई। नतीजा, 14 दिन में रिपोर्ट आने का प्रविधान है, पर रिपोर्ट आती दो से तीन माह बाद है। यही नहीं लैब को अब तक एनएबीएल का एक्रिडिएशन तक नहीं है।
फूड इंस्पेक्टरों की बनी है कमी
राज्य में फूड इंस्पेक्टरों की भी कमी बनी हुई है। ढाचे में कुल 56 पद स्वीकृत हैं। जिसके सापेक्ष महज 29 फूड इंस्पेक्टर ही कार्यरत हैं। इसका सीधा असर कोर्ट में चल रहे मामलों पर भी पड़ता है। सही पैरवी न होने का विपक्षी फायदा उठाते हैं। बागेश्वर, पिथौरागढ़, चंपावत व अल्मोड़ा एक-एक फूड इंस्पेक्टरों के भरोसे चल रहा है तो वहीं चमोली, उत्तरकाशी एवं रुद्रप्रयाग में एक भी फूड इंस्पेक्टर तैनात नहीं है। यहा कामचलाऊ व्यवस्था से ही कम चल रहा है।
एक्रिडिएशन न होने से विधिक कार्रवाई में भी दिक्कत
प्रदेश की एकमात्र खाद्य प्रयोगशाला रुद्रपुर में है। प्रयोगशाला की स्थापना की जरूर गई पर एनएबीएल से प्रमाणित न होने की वजह से प्रयोगशाला की जाच रिपोर्ट को विधिक मान्यता नहीं है। यानी कि प्रयोगशाला में हुई जाच में मिलावट पाए जाने पर दोषी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं हो पाती है। सैंपल भरिए और भूल जाइए
त्योहारी सीजन में दूध एवं अन्य खाद्य पदार्थो में मिलावट कोई नई बात नहीं, लेकिन इसे रोकने को शायद ही कभी गंभीर कदम उठाए गए हों। ले-देकर सैंपलिंग होती भी है तो रस्मअदायगी के लिए। हैरत देखिए कि जाच के लिए जब अपनी लैब नहीं थी, तब भी रिपोर्ट आने में वक्त लगता था और अब रुद्रपुर में अपनी लैब है, तब भी परिणाम नहीं मिल पाते। जिन खाद्य पदार्थो की सैंपलिंग के परिणाम 14 दिन के भीतर आने जाने चाहिए, महीनों तक भी पता नहीं चल पाता कि वे खाने लायक भी थे या नहीं। अधिक समय होने के चलते सैंपलिंग की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में आ जाती है। कहने का मतलब मिलावटखोरों को खुली छूट है, फिर भले ही लोगों का स्वास्थ्य चौपट ही क्यों न हो जाए।
यह भी पढ़ें: देहरादून में अनाधिकृत रूप से चल रहे हैं कई पैथोलॉजी लैब, पढ़िए पूरी खबरबोले अधिकारीराजेंद्र रावत (अभिहित अधिकारी, मुख्यालय) का कहना है कि हम सुधार की कवायद में जुटे हैं। रुद्रपुर लैब के अपग्रेडेशन का कार्य जल्द शुरू होगा। भारत सरकार से अप्रूवल संबंधी कार्य अंतिम चरण में है। जल्द टेंडर होने की उम्मीद है। फूड इंस्पेक्टरों की कमी को दूर करने के लिए भी जल्द सात फूड इंस्पेक्टरों का अध्याचन भेजा जा रहा है। जहां फूड इंस्पेक्टर नहीं है वहां दूसरे जिले के अफसरों को जिम्मेदारी दी गई है।
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