एनएचएम रैंकिंग से बिगड़ी उत्तराखंड की साख, बजट में भी कटौती; पढ़िए पूरी खबर
एनएचएम की राष्ट्रीय स्तर की रैंकिंग में उत्तराखंड के पिछड़ने से न सिर्फ प्रदेश की साख खराब हुई है बल्कि इस खराब प्रदर्शन का खामियाजा बजट की कटौती के रूप में भी भुगतना पड़ेगा।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 11 Oct 2019 08:46 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की राष्ट्रीय स्तर की रैंकिंग में उत्तराखंड के पिछड़ने से न सिर्फ प्रदेश की साख खराब हुई है, बल्कि इस खराब प्रदर्शन का खामियाजा हमें बजट की कटौती के रूप में भी भुगतना पड़ेगा। खराब प्रदर्शन के चलते राज्य के बजट में तकरीबन 12 करोड़ रुपये की कटौती कर दी जाएगी। रैंकिंग में उत्तराखंड को ऋणात्मक मार्किंग मिलने के पीछे नीति आयोग की आधार वर्ष 2017 की रिपोर्ट का भी बड़ा हाथ रहा। 40 अंकों की इस रिपोर्ट में उत्तराखंड में 16 ऋणात्मक अंक मिले और इस भारी गिरावट की भरपाई नहीं की जा सकी। प्रदेश पर कुल 08 ऋणात्मक अंक की पैनाल्टी लगी है। ऐसे में स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में उत्तराखंड की चुनौती और भी बढ़ गई है।
राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहतर बनाने के मकसद से स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले साल रैकिंग शुरू की थी। यह एक तरह का परफार्मेंस बेस्ड सिस्टम है। जिसमें अच्छे प्रदर्शन पर इंसेंटिव और खराब पर दंड का प्रावधान है। दरअसल, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कुल बजट का 20 फीसदी 'इंसेंटिव पूल' के तहत रखा जाता है। जिसका मकसद राज्यों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा स्थापित करना है। पर इस प्रतिस्पर्धा में उत्तराखंड फिसड्डी साबित हुआ है। सात सूचकांक के आधार पर तैयार रिपोर्ट तैयार की में उत्तराखंड सबसे खराब प्रदर्शन वाले राज्यों में शुमार है। इसका एक बड़ा कारण स्वास्थ्य सूचकांक पर खरा ना उतरना है।
हाल ही में नीति आयोग ने 'हेल्दी स्टेट प्रोग्रेसिव इंडिया' नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें राज्यों को 23 संकेतकों के आधार पर रैंकिंग दी गई थी। इन संकेतकों को नवजात स्वास्थ्य परिणाम (मृत्यु दर, प्रजनन दर, जन्म के समय लिंगानुपात आदि), संचालन व्यवस्था (अधिकारियों की नियुक्ति, अवधि आदि) और प्रमुख इनपुट (नर्सों और डॉक्टरों के खाली पड़े पद, जन्म पंजीकरण स्तर आदि) में बांटा गया। इसमें उत्तराखंड फिसड्डी राज्यों में शामिल रहा था।
वह पिछली बार के 15वें रैंक से पिछड़कर 17वें स्थान पर पहुंच गया। क्योंकि एनएचएम रैंकिंग में 40 अंक नीति आयोग की रिपोर्ट के आधार पर मिलते थे, उत्तराखंड की इसमें भी बुरी ही दशा हुई है। इसके अलावा हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर क्रियाशील बनाने, ह्यूमन रिसोर्स इन्फार्मेशन सिस्टम लागू करने, पीएससी ग्रेडिंग व 30 से अधिक आयु वर्ग के लोगों की गैर संचारी रोगों की स्क्रीनिंग जैसे सामान्य संकेतकों पर भी प्रदेश फिसड्डी रहा है।
एनएचएम के नाम पर समानांतर व्यवस्थाउत्तराखंड में एनएचएम के नाम पर समानांतर व्यवस्था तो खड़ी कर दी गई पर एनएचएम रैकिंग ने अब इस पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। दरअसल, यहां अधिकारियों की भारी भरकम फौज से लेकर तमाम संसाधन उपलब्ध हैं। एक-एक योजना की बारीक मॉनीटरिंग तक की जाती है। केंद्र से बजट भी भारी भरकम मिल रहा है। बावजूद इसके प्रदर्शन खराब रहे तो सवाल उठना लाजिमी है।
एनएचएम की स्थापना स्वास्थ्य सेवाओं को तकनीकि एवं वित्तीय सहयोग देने के लिए की थी। पर आज एनएचएम को अलग विभाग के रूप में चलाया जा रहा है। बकायदा, यहां आइएएस एवं पीसीएस अफसरों को कमान सौंपी गई तो अकादमिक तौर पर तेज-तर्रार माने जाने वाले डॉक्टरों को भी भारी जिम्मेदारियां दी गई। पर एनएचएम रैकिंग बताती है कि जिस उद्देश्य से इतने भारी भरकम महकमे का गठन किया गया है, वह उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया है। यह चिंता उत्तराखंड जैसे छोटे हिमालयी राज्य में इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि यहां की विषम भौगोलकि परिस्थितियों के हिसाब से एनएचएम सरीखा महकमा बेहद कारगर हो सकता था। लेकिन हाल ये है कि आज स्वास्थ्य महानिदेशालय में एनएचएम के रूप में एक सामानांतर व्यवस्था चल रही है।
यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में डेंगू मच्छर पर ठंड हुई बेअसर, हरिद्वार में बुखार का कहरछह करोड़ का आलीशान भवनगुजरात के बाद उत्तराखंड दूसरा ऐसा राज्य है, जहां एनएचएम का अपना अलग भवन है। यह नया भवन स्वास्थ्य महानिदेशालय में ही तीसरे तल पर है। करीब छह करोड़ की लागत से किसी कॉरपोरेट कंपनी के दफ्तर की तरह इसे बनाया गया है। स्थिति ये कि बिल्डिंग का मुख्य द्वार भी रिमोट कंट्रोल से संचालित होता है। दिखने में यह कॉरपोरेट ऑफिस है, पर काम सरकारी ढर्रे पर ही चल रहा है।
यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में नहीं थम रहा डेंगू का कहर, 275 और लोगों में हुई पुष्टिकर्मचारियों की फौज-मार रही मौजएनएचएम में कई नियुक्तियां नियम-कायदों को ताक पर रख दी गई। कांट्रेक्ट के नाम पर यहां मानकों की तमाम धज्जिायां उड़ाई जा रही हैं। कांट्रेक्ट के नाम पर तमाम ऐसे पद सृजित कर दिए गए, जिनकी आवश्यकता ही नहीं है।
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