दून में प्रदूषण जांच केंद्र तो बढ़े, फिर भी वाहन उगल रहे धुआं; पढ़िए खबर
दून में वाहनों की रेलमपेल के बीच ऐसे तमाम वाहन मिल जाएंगे जिनका गाढ़ा धुआं बताता है कि वह मानक से अधिक धुआं उगल रहे हैं।
By BhanuEdited By: Updated: Wed, 11 Dec 2019 08:40 PM (IST)
देहरादून, सुमन सेमवाल। वाहनों का धुआं भी वायु प्रदूषण का बड़ा कारक है। दून में वाहनों की रेलमपेल के बीच ऐसे तमाम वाहन मिल जाएंगे, जिनका गाढ़ा धुआं बताता है कि वह मानक से अधिक धुआं उगल रहे हैं। इसमें न सिर्फ सिटी बसें शामिल हैं, बल्कि विक्रम, लोडर, रोडवेज बसें प्रमुख रूप से शामिल हैं।
यह बात और कि धुआं उगलते वाहनों और परिवहन विभाग की कार्रवाई कहीं मेल नहीं खाती है। संभागीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ) देहरादून के आंकड़े बताते हैं कि जनवरी से लेकर नवंबर माह तक विभाग को मानक से अधिक धुआं उगलते महज 1594 वाहन ही मिल पाए। कुल वाहनों के हिसाब से इसका आकलन करें तो महज 0.18 फीसद वाहन ही मानक से अधिक वायु प्रदूषण फैलाते मिले।
पिछले साल संभागीय परिवहन कार्यालय देहरादून ने 1946 वाहनों का चालक मानक से अधिक धुआं उगलने पर किया था। इस लिहाज से इस दफा कार्रवाई में और भी गिरावट दिख रहा है।
हालांकि, परिवहन अधिकारी इसके पीछे तर्क दे रहे हैं कि सितंबर से लागू हुए संशोधित मोटर व्हीकल एक्ट में जुर्माना काफी बढ़ा दिया गया था और वाहन चालकों में वाहनों के प्रदूषण की जांच की प्रवृत्ति ही नहीं थी। लिहाजा, सितंबर व अक्टूबर माह में वायु प्रदूषण पर बेहद कम कार्रवाई की गई।
अभी भी 25 फीसद ने ही कराई वाहनों की जांचसंशोधित मोटर व्हीकल एक्ट के लागू होने से पहले दून में वाहन प्रदूषण जांच केंद्रों की संख्या महज 20 थी। इसके बाद अब तक यह संख्या 128 को पार कर गई है। हालांकि, इसके बाद भी अब तक महज 25 फीसद ने ही प्रदूषण संबंधी प्रमाण पत्र बनवाए हैं। दूसरी तरफ मानक से अधिक धुआं छोड़ रहे वाहनों पर भी अधिकारी कार्रवाई से कतरा रहे हैं।
58 फीसद प्रदूषण का उत्सर्जन दून के भीतरआपको यह जानकार हैरानी होगी कि दून में वायु प्रदूषण की जो भी स्थिति है, उसमें 58 फीसद का उत्सर्जन दून में ही हो रहा है। शेष 42 फीसद प्रदूषण बाहरी क्षेत्र या राज्यों से वायुमंडल में पहुंच रहा है। इस 58 फीसद में भी कूड़ा जलाने और वाहनों के प्रदूषण की मात्रा सर्वाधिक रही।
गति फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल ने बताया उन्होंने भी अर्बन एमिशंस के साथ काम किया है और सेटेलाइट से जो आंकड़े जुटाए गए हैं, वह एक सीमित अवधि के हैं। हालांकि, इसमें भी काफी कुछ स्पष्ट हो गया है, मगर सालभर इस तरह का अध्ययन किया जाए तो पूरी तस्वीर साफ हो जाएगा।
यह भी पढ़ें: देश के सर्वाधिक प्रदूषित टॉप-10 शहरों में देहरादून भी, पढ़िए पूरी खबर आज वाहनों की संख्या काफी बढ़ गई और जगह-जगह कूड़ा जलाने की बात भी सामने आ रही है। वहीं, अनियोजित निर्माण व निर्माण के दौरान धूल-मिट्टी की रोकथाम के प्रभावी उपाय न किए जाने से पीएम-10 व पीएम-2.5 की मात्रा बढ़ रही है। यहां तक कि सरकारी निर्माण कार्यों में भी मानकों का ख्याल नहीं रखा जा रहा। इस लिहाज से वर्तमान समय में सरकार के स्तर पर वायु प्रदूषण के सभी कारकों पर अध्ययन किए जाने की जरूरत है।
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