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बिना रुके मरीजों की जान बचाने में जुटे हैं विक्रम, सालभर से परिवार से दूर हैं आइसोलेशन में

कोरोना संक्रमण के डर से जहां आम लोग घर से निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं वहीं एंबुलेंस चालक मरीजों की जान बचाने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं। इसकी बानगी हैं दून मेडिकल कॉलेज के एंबुलेंस चालक विक्रम सिंह रावत।

By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sun, 02 May 2021 10:26 AM (IST)
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बिना रुके मरीजों की जान बचाने में जुटे हैं विक्रम। जागरण
जागरण संवाददाता, देहरादून। सड़कों पर हर मिनट दौड़ती एंबुलेंस देखकर कोई भी सहम जाए। जितनी रफ्तार से कोरोना बढ़ रहा है, उतनी रफ्तार से सड़कों पर एंबुलेंस की संख्या भी। संक्रमण के डर से जहां आम लोग घर से निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं, वहीं एंबुलेंस चालक मरीजों की जान बचाने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं। इसकी बानगी हैं दून मेडिकल कॉलेज के एंबुलेंस चालक विक्रम सिंह रावत। 

विक्रम पिछले एक साल में सैकड़ों कोरोना मरीजों को दून अस्पताल तक पहुंचा चुके हैं और न जाने कितने शवों को अस्पताल से श्मशान। कोरोना की भयावह स्थिति के बीच भी विक्रम का सेवा का जुनून ही है जो उन्हें हर दिन नई ऊर्जा देता है। विक्रम बताते हैं कि पहले सामान्य दिनों में दोपहर की शिफ्ट में छह और रात की शिफ्ट में 12 घंटे की ड्यूटी होती थी, लेकिन अब दिन रात सब एक है। जब भी फोन आए तो निकल जाते हैं, मरीज को अस्पताल पहुंचाने। वह प्रेमनगर के मोहनपुर में अपने परिवार के साथ रहते हैं। 

विक्रम कहते हैं इस ड्यूटी की सबसे बुरी बात यही है कि आप अपने परिवार के पास भी नहीं जा सकते। सालभर से वह अपने माता-पिता, पत्नी और दो बच्चों से दूर आइसोलेशन में हैं। अपनी ड्यूटी के दौरान उन्हें कई दफा संक्रमित मरीजों को एंबुलेंस में बैठाने और उतारने में मदद करनी होती है। कई बार जब घर वाले भी शव को लावारिस छोड़ देते हैं तो उन्हें श्मशान तक पहुंचाना भी पड़ता है।

मरीजों की सेवा करते हुए विक्रम खुद भी पिछले साल अक्टूबर में संक्रमित हो गए थे, लेकिन उन्होंने अपनी ड्यूटी से तब भी मुंह नहीं मोड़ा। स्वस्थ होते ही दोबारा मरीजों को जीवन देने के नेक कार्य में जुट गए। विक्रम सेना से हवलदार पद से सेवानिवृत्त हैं। 

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