Move to Jagran APP

ठंडे बस्ते में : उत्‍तराखंड में महाभारत सर्किट बनाने के लिए केंद्र पर नजर

प्रदेश में देहरादून के चकराता त्यूणी देववन और लाखामंडल से लेकर उत्तरकाशी जिले के पुरोला तक महाभारत काल के निशान मौजूद हैं। यहां तक कि बदरीनाथ धाम के आगे माणा गांव के निकट पांडवों के स्वर्ग जाने से जुड़े किस्सों में वर्णित जगह भी यहां है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 09 Jul 2021 01:28 PM (IST)
Hero Image
देहरादून जनपद के लाखामंडल में पांडव कालीन महत्व के प्राचीन शिव मंदिर। जागरण अर्काइव
विकास गुसाईं, देहरादून। प्रदेश में देहरादून के चकराता, त्यूणी, देववन और लाखामंडल से लेकर उत्तरकाशी जिले के पुरोला तक महाभारत काल के निशान मौजूद हैं। यहां तक कि बदरीनाथ धाम के आगे माणा गांव के निकट पांडवों के स्वर्ग जाने से जुड़े किस्सों में वर्णित जगह भी यहां है। इन्हें पर्यटकों की निगाह में लाने के मकसद से राज्य सरकार ने महाभारत सर्किट बनाने का निर्णय लिया। इसका एक मकसद यह बताया कि इससे पर्यटन को गति मिलेगी, साथ ही स्थानीय युवाओं को रोजगार भी हासिल होगा। वर्ष 2018 में इसकी कवायद शुरू हुई। उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद ने इस संबंध में प्रस्ताव तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा, ताकि इसे स्वदेश दर्शन योजना में शामिल किया जा सके। केंद्र के कहने पर संशोधित प्रस्ताव भी भेजा गया। इसका केंद्र में प्रस्तुतिकरण भी हुआ। इसके बाद से प्रदेश सरकार की गुहार के बावजूद इस प्रस्ताव को अब तक मंजूरी नहीं मिल पाई है।

नशे की खेती पर अंकुश नहीं

प्रदेश में वर्ष 2002 में पहली निर्वाचित सरकार आने के बाद से ही नशीले पदार्थों पर रोक की बातें कही जाती रही। कोई सरकार ऐसी नहीं रही, जिसने नशे की बढ़ती प्रवृति पर चिंता न जताई हो। बावजूद इसके किसी भी सरकार ने इस पर रोक लगाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए। दरअसल, प्रदेश के सीमांत क्षेत्रों में दशकों से नशे के लिए इस्तेमाल होने वाली वनस्पति की खेती होती है, जिसकी तस्करी अन्य राज्यों में भी होती है। शासन व प्रशासन को इसकी पूरी जानकारी है। नाममात्र को इन क्षेत्रों में फसल नष्ट करने के लिए अभियान चलाए जाते हैं लेकिन कमजोर इच्छाशक्ति के कारण इस पर रोक के लिए अभी तक ठोस कदम नहीं उठ पाए हैं। पांच साल पहले इसके लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में ड्रग उन्मूलन समिति बनाने की बात कही गई, लेकिन यह निर्णय आज तक धरातल पर नहीं उतर पाया है।

आखिर गांव तक कब पहुंचेगी सड़क

राज्य गठन के बाद उम्मीद जगी कि हर गांव तक सड़क पहुंचेगी। बावजूद इसके स्थिति यह है कि अभी भी तकरीबन 2550 से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां तक सड़क नहीं पहुंच पाई है। प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में आज भी सड़कों का न होना सरकारी सिस्टम की कार्यशैली पर सवाल उठाता है। दरअसल, राज्य गठन के बाद हर गांव में सड़क पहुंचाने के लिए कई योजनाओं का सहारा लिया गया। इसमें से प्रमुख प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना है। इस योजना के तहत लगभग 2100 गांवों में सड़क पहुंचाई गई, लेकिन पूरे गांव सड़कों से नहीं जुड़ पाए हैं। लोक निर्माण विभाग ने भी अपने स्तर से गांवों तक सड़क पहुंचाने का कार्य शुरू किया, लेकिन यह भी 15745 राजस्व ग्रामों मे सापेक्ष 13194 गांवों तक ही सड़क पहुंचा पाया है। जो गांव अभी शेष हैं, उनमें कहीं पर्यावरणीय स्वीकृति का पेच है, तो कहीं विषम भौगोलिक परिस्थिति का रोड़ा।

फाइलों में ही है रिंग रोड

प्रदेश के मुख्य शहरों में यातायात की बढ़ती समस्या को देखते हुए यहां रिंग रोड बनाने की योजना बनाई गई। इसके तहत देहरादून और हल्द्वानी में राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण के सहयोग से रिंग रोड बनाने का निर्णय लिया गया। इसके लिए खूब प्रयास भी किए गए। फाइलें चलाई गईं, सर्वे भी हुआ। दरअसल, देहरादून में वर्ष 2010 में रिंगरोड बनाने का निर्णय लिया गया था। 2018 तक इसकी पत्रावलियां ही चलती रहीं। एक समय ऐसा आया जब लोक निर्माण विभाग के जरिये इस रिंगरोड को बनाने का निर्णय लिया गया। शासन को पत्रावली भेजी लेकिन इस पर कोई काम नहीं हुआ। ऐसे में प्रदेश सरकार ने एक बार फिर केंद्र के सहयोग से इस सड़क को बनाने का निर्णय लिया। देहरादून व हल्द्वानी में रिंग रोड बनाने के लिए केंद्र को पत्र भी सौंपा गया लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक कोरे आश्वासन के अलावा कुछ नहीं दिया है।

यह भी पढ़ें-उत्‍तराखंड में फैक्ट्रियां खुली रहने के बाद भी जीएसटी संग्रह 24 फीसद कम

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।