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देहरादून में सात सालों में नियो मेट्रो का सफर कहां तक पहुंचा, क्यों हो रहा लेट?, यहां जानें पूरा अपडेट

देहरादून मेट्रो प्रोजेक्ट के भविष्य पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं। राज्य सरकार वित्तीय चिंताओं के कारण मेट्रो चलाने के निर्णय से कतरा रही है। अब तक 80 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं लेकिन प्रोजेक्ट की उपयोगिता पर सवाल उठ रहे हैं। सात साल हो गए लेकिन सरकार अभी तक फैसला नहीं ले पाई है। जानिए इस महत्वाकांक्षी परियोजना के सामने आ रही चुनौतियों के बारे में।

By Suman semwal Edited By: Sakshi Gupta Updated: Wed, 13 Nov 2024 03:43 PM (IST)
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मेट्रो प्रोजेक्ट का सफर बजट खर्च करने से अधिक कुछ साबित नहीं हो पा रहा है। (तस्वीर जागरण)
जागरण संवाददाता, देहरादून। राजधानी में मेट्रो चलानी है या नहीं, इस सीधे सवाल पर सरकारी मशीनरी खुलकर न हां कर पा रही है और न ही ना। असमंजस की स्थिति के कारण वर्ष 2017 में शुरू किया मेट्रो प्रोजेक्ट का सफर बजट खर्च करने से अधिक कुछ साबित नहीं हो पा रहा है। वर्तमान में दून में मेट्रो प्रोजेक्ट के तहत नियो मेट्रो के संचालन के लिए केंद्र सरकार की चुप्पी के बाद अब गेंद राज्य सरकार के पाले में है। फिलहाल, प्रोजेक्ट के लिए फंड जुटाने को प्रकरण पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड (पीआइबी) के सुपुर्द कर दिया गया है।

राज्य के वित्त विभाग के अधिकारी बैठकों में परियोजना को खर्चीले बताने से भी नहीं चूक रहे हैं। वैसे तो मुख्य खर्चों के हिसाब से मेट्रो परियोजना में अब तक 35 करोड़ रुपये से अधिक का बजट खप चुका है, लेकिन पाई-पाई जोड़ने वाले वित्त विभाग के हिसाब से अब तक 80 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।

इन खर्चों में मेट्रो की उपयोगिता परखने के लिए कराए काम्प्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान और दो बार के विदेश दौरे का हिसाब भी जोड़ा गया है। वित्त विभाग की यह चिंता अपने आप में बहुत कुछ बयां कर देती है, क्योंकि उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के तामझाम समेत अन्य कार्यों में तैयारी के नाम पर ही खर्च का नया आंकड़ा बेहद चौंकाने वाला है। इससे पता चलता है कि मेट्रो परियोजना को अनिर्णय ही स्थिति में अधिक समय तक छोड़ने प्रदेश की वित्तीय सेहत के लिए सही नहीं है।

मैकेंजी कंपनी ने परियोजना में उठाए सवाल, अब कर रही ऑडिट

मेट्रो प्रोजेक्ट पर ठिठके सरकार के कदम को देखते हुए कंसल्टेंट कंपनी मैकेंजी ने धरातलीय अध्ययन के बिना ही इसकी उपयोगिता पर सवाल खड़े कर दिए थे। हालांकि, जब मेट्रो रेल कॉरपोरेशन ने अब तक किए गए अध्ययन को सामने रखा तो थर्ड पार्टी ऑडिट का निर्णय लिया गया। फिर भी मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के अब तक के अध्ययन के ऊपर मैकेंजी के थर्ड पार्टी ऑडिट को रखने से भी मशीनरी की असमंजस की स्थिति सामने आती है।

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मेट्रो चलती तो सालभर में होती 672 करोड़ आय

नियो मेट्रो को उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने आय के लिहाज से मुफीद माना है। प्रबंधक निदेशक जितेंद्र त्यागी के अनुसार, मेट्रो का संचालन शुरू होते ही सालभर में करीब 672 करोड़ रुपये की आय होगी, जबकि कुल खर्चे 524 करोड़ रुपये के आसपास रहेंगे। इस तरह एलआरटीएस आधारित यह परियोजना आरंभ से ही फायदे में चलेगी और इसके निर्माण की लागत के अलावा भविष्य में सरकार से किसी भी तरह के वित्तीय सहयोग की जरूरत नहीं पड़ेगी।

22.42 किमी के हैं दो कॉरीडोर

नियो मेट्रो परियोजना में शहर में दो कॉरीडोर तैयार किए जाएंगे। दोनों कॉरीडोर की कुल लंबाई 22.42 किलोमीटर होगी। साथ ही दोनों कॉरीडोर में कुल 25 स्टेशन भी होंगे।

नियो मेट्रो की खास बातें

  • केंद्र सरकार ने मेट्रो नियो परियोजना ऐसे शहरों के लिए प्रस्तावित की है, जिनकी आबादी 20 लाख तक है।
  • इसकी लागत परंपरागत मेट्रो से 40 प्रतिशत तक कम आती है।
  • इसमें स्टेशन परिसर के लिए बड़ी जगह की भी जरूरत नहीं पड़ती।
  • इसे सड़क के डिवाइडर के भाग पर एलिवेटेड कारीडोर पर चलाया जा सकता है।

क्या 2,300 करोड़ खर्च 
करने का साहस नहीं जुटा 
पा रहे अफसर

जब नियो मेट्रो परियोजना की तरफ कदम बढ़ाए गए थे, तब इसकी लागत 1,852 करोड़ रुपये आ रही थी। अब समय के साथ महंगाई के ग्राफ के हिसाब से यही परियोजना 2,303 करोड़ रुपये में पूरी हो पाएगी। विलंब के साथ आगे भी लागत बढ़ती चली जाएगी। शायद बजट के इसी आकार के चलते राज्य सरकार की मशीनरी बड़ा कदम उठाने का साहस नहीं दिखा पा रही है। यही कारण है कि फंड जुटाने के लिए अंतिम विकल्प के रूप में परियोजना का प्रस्ताव जब पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड के समक्ष रखा गया तो सीधे अनुमति की जगह परियोजना की उपयोगिता परखने के लिए थर्ड पार्टी आडिट कराने का निर्णय लिया गया है।

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