उत्तराखंड में लोकगाथाएं बनेंगी प्रकृति प्रेम की संवाहक, जानिए क्या है वन महकमे की तैयारी
उत्तराखंड में पर्यावरण और वन्य जीव संरक्षण की गौरवमयी गाथाएं यहां आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों को वन एवं वन्यजीवों के संरक्षण का संदेश देंगी।
By BhanuEdited By: Updated: Wed, 04 Sep 2019 08:18 PM (IST)
केदार दत्त, देहरादून। नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वन एवं वन्यजीवों का संरक्षण परंपरा का हिस्सा है। फिर चाहे चिपको आंदोलन की भूमि रैणी गांव (चमोली) से शुरू की गई गौरा देवी की पेड़ बचाने की मुहिम रही हो अथवा शिकारी से संरक्षणवादी बने जिम कार्बेट का सफर या दूसरी गाथाएं, ये आज भी प्रेरणापुंज हैं।
अब यही गौरवमयी गाथाएं उत्तराखंड आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों को वन एवं वन्यजीवों के संरक्षण का संदेश देंगी। राज्य वन्यजीव बोर्ड की हालिया बैठक में आए इस प्रस्ताव के बाद अब वन्यजीव महकमा इसकी कार्ययोजना तैयार करने में जुट गया है।
उत्तराखंड का इतिहास गौरवमयी गाथाओं से भरा पड़ा है। जियो और जीने दो के सिद्धांत पर चलते हुए यहां वन एवं वन्यजीवों का संरक्षण अनादिकाल से होता आ रहा है। पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन की गूंज तो यहीं से दुनियाभर में सुनाई दी। इस आंदोलन के तहत रैणी गांव में गौरा देवी की अगुआई में महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर इन्हें कटने से रोका था। इसके अलावा रक्षा सूत्र आंदोलन समेत कई तरह की पहल पेड़ों को बचाने के लिए हुई हैं। जाहिर है कि पेड़ महफूज रहेंगे तो वन्यजीव भी सुरक्षित रहेंगे। विश्व प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट उत्तराखंड की धरती पर आने के बाद शिकारी से बाघों के संरक्षणवादी बने। ऐेसे एक नहीं अनेक उदाहरण हैं।
वन एवं वन्यजीवों के संरक्षण से जुड़ी यही गौरवमयी गाथाएं अब बदली परिस्थितियों में प्रकृति प्रेम की संवाहक बनने जा रही हैं। उत्तराखंड में आने वाले सैलानियों को यह गाथाएं सुनाई और दिखाई जाएंगी। इसके दो फायदे होंगे। ये वन एवं वन्यजीवों के संरक्षण का संदेश तो देंगे ही, साथ ही उत्तराखंड की संस्कृति और गाथाओं का देश-दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी पहुंचेंगी।
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प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक राजीव भरतरी बताते हैं कि चिपको आंदोलन की सूत्रधार गौरा देवी और शिकारी से संरक्षणवादी बने जिम कार्बेट के सफर पर तो पहले ही डॉक्यूमेंट्री, फिल्म पहले ही तैयार हो चुकी हैं। अब अन्य गौरवमयी गाथाओं के साथ ही वन एवं वन्यजीव संरक्षण से जुड़े लोकगीत, विभिन्न स्तर पर हुए प्रयासों का डॉक्यूमेंटेशन कर इनके बारे में पर्यटकों को जानकारी दी जाएगी। इसकी कार्ययोजना तैयार की जा रही है।
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