International Womens Day 2020: गरीब घर में जन्मीं, हौसला रखा और पाया मुकाम; बनीं आइएएस और आइपीएस अधिकारी
गरीब घर में जन्मीं लोन लेकर शिक्षा हासिल कर आइएएस और आइपीएस बनीं। जिन्होंने खुद के हौसले और स्वजनों से मिले सहयोग से ऊंचा मुकाम हासिल किया।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Sun, 08 Mar 2020 08:31 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हम उन होनहारों की कहानी बयां कर रहे हैं, जिन्होंने गरीबी में पलकर भी ऊंचा मुकाम हासिल किया। समाज के उस तबके को सीख दी, जो आज भी बेटा और बेटी में फर्क देखते हैं। हम बात कर रहे हैं गरीब घर में जन्मीं, लोन लेकर शिक्षा हासिल कर आइएएस और आइपीएस बनीं अधिकारियों की, जिन्होंने खुद के हौसले और स्वजनों से मिले सहयोग से ऊंचा मुकाम हासिल किया।
लोन लेकर की पढ़ाई, आज हैं आइएएसहरिद्वार के औरंगाबाद निवासी नगर मजिस्ट्रेट देहरादून अनुराधा पाल के पिता दूध बेचकर परिवार का भरण पोषण करते थे। माता मिथिलेश कभी स्कूल नहीं गई, जबकि पिता सतीशपाल पांचवीं पास हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई जाए। अनुराधा पाल ने पांचवीं तक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद नवोदय विद्यालय, रोशनाबाद में दाखिला लिया। रिश्तेदार बेटी को बाहर भेजने के पक्ष में नहीं थे।
वहीं स्थानीय लोग भी विरोध कर रहे थे, लेकिन मां का पूर्ण सहयोग रहा और अनुराधा पाल ने नवोदय विद्यालय में 12वीं तक पढ़ाई की। इसके बाद 2008 में जब स्कालरशिप मिली तो तभी पहली बार देहरादून राजभवन देखा। लोन लेकर आइआइटी रुड़की में इंजीनियरिंग की। इसके बाद कोचिंग के लिए दिल्ली चली गईं। 2012 में पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी, जिसमें आइआरएस में नंबर आ गया, लेकिन मन पूरी तरह से संतुष्ट नहीं था। इसलिए 2015 में दोबारा यूपीएससी की परीक्षा दी, जिसमें अच्छी रैक आई। मौजूदा समय में नगर मजिस्ट्रेट के पद पर तैनात हैं।
स्कूल की लाइब्रेरी में किताबें पढ़ पाया मुकाम
आइपीएस डॉ. विशाखा अशोक भदाणो के पिता अशोक भदाणो नासिक के उमराने गांव में छोटे से स्कूल में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे। परिवार की वित्तीय स्थिति ठीक न होने के कारण माता कोकिला भदाणो को स्कूल के बाहर छोटी सी दुकान खोलनी पड़ी। आइपीएस डॉ. विशाखा के अनुसार पैसे न होने के कारण जब स्कूल की दो महीने की छुट्टियां रहती थी तब तीनों भाई बहन लाइब्रेरी में जाकर किताबें पढ़ते थे। स्कूल के अध्यापकों से मिले प्रोत्साहन के चलते तीनों भाई बहनों ने कुछ करने की ठानी।
यह भी पढ़ें: International Womens Day 2020 : कठिन दौर से गुजर रही हैं दून की दीपा शाहबकौल डॉ. विशाखा जब 19 साल की थीं तो उस समय उनकी माता का निधन हो गया। घर को संभालने वाला कोई नहीं था। डॉ. विशाखा बतातीं हैं वह खाना, कपड़े धोने के बाद पढ़ाई करती थी। उनके भाई और उनका सरकारी आयुर्वेदिक कॉलेज बीएएमएस में नंबर आ गया। पिता ने लोन लेकर दोनों को पढ़ाया। बहन की शादी हो गई थी, ऐसे में पिता अकेले पड़ गए थे। ऐसे में उन्होंने खुद अपने पिता की शादी करवाई। इसी बीच उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी। लाइब्रेरी में काम करने के साथ ही वह तैयारी भी करती थी। दूसरी बार में उन्हें कामयाबी मिली।
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